IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी प्रश्नोत्तरी
प्रिय पाठकों !!
ईर्ष्या में प्रयत्नोत्पादिनी शक्ति बहुत कम होती है. उसमें वह वेग नहीं होता जो क्रोध आदि में होता है क्योंकि आलस्य और नैराश्य के कारण अपनी उन्नति के हेतु प्रयत्न करना तो दूर रहा, हम अपनी उन्नति का ध्यान तक अपने मन में नहीं ला सकते, तभी हम हारकर दूसरे की स्थिति की ओर बार-बार देखते हैं और सोचते हैं कि यदि उसकी स्थिति ऐसी न होती तो हमारी स्थिति जैसी है वैसी रहने पर भी बुरी न दिखाई देती. अपनी स्थिति को ज्यों-की-त्यों रख सापेक्षिकता द्वारा सन्तोष-लाभ करने का ढीला यत्न आलस्य और नैराश्य नहीं तो और क्या है? जो वस्तु उज्जवल नहीं है उसे मैली वस्तु के पास रखकर हम उसकी उज्ज्वलता से कब तक और कहाँ तक सन्तोष कर सकते हैं? जो अपनी उन्नति के प्रयत्न में बराबर लगा रहता है उसे न तो नैराश्य होता है और न हर घड़ी दूसरे की स्थिति से अपनी स्थिति के मिलान करते रहने की फुरसत. ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा है उद्योग और आशा. जिस वस्तु के लिए उद्योग और आशा निष्फल हो, उस पर से अपना ध्यान हटाकर दृष्टि की अनन्तता से लाभ उठाना चाहिए.
जिससे ईर्ष्या की जाती है उस पर उस ईर्ष्या का प्रभाव क्या पड़ता है यह भी देख लेना चाहिए. ईर्ष्या अप्रेष्य मनोविकार है. यह पहले ही कहा जा चुका है कि किसी मनुष्य को अपने से ईर्ष्या करते देख हम उससे घृणा करते हैं. दूसरे की ईर्ष्या का फल भोग कर हम उस पर क्रोध करते हैं. जिससे अधिक अनिष्टकारिणी शक्ति उत्पन्न होती है. अतः ईर्ष्या ऐसी बुराई है, जिसका बदला यदि मिलता है तो कुछ अधिक ही मिलता है. इससे इस बात का आभास मिलता है कि प्रकृति के कानून में ईर्ष्या एक पाप या जुर्म है. अपराधी ने अपने अपराध से जितना कष्ट दूसरे को पहुँचाया, अपराधी को भी केवल उतना ही कष्ट पहुँचाना सामाजिक न्याय नहीं है, अधिक कष्ट पहुँचाना न्याय है, क्योंकि निरपराध व्यक्ति की स्थिति को अपराधी की स्थिति से अच्छा दिखलाना न्याय का काम है.
1. जो अपनी उन्नति के प्रयास में लगा रहता है, उसे
(a) इतनी फुरसत नहीं रहती कि हर दम वह दूसरे की स्थिति से अपनी स्थिति की तुलना करता रहे.
(b) निराशा होने का समय नहीं मिलता.
(c) क्रोध करने से बचे रहने का अवसर मिलता है.
(d) किसी से ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं होती है.
(e) इनमें से कोई नहीं
2. किसी को अपने से ईर्ष्या करते देख बदले में हम
(a) उससे ईर्ष्या करने लगते हैं.
(b) उस पर क्रोध नहीं करते हैं.
(c) उससे बदला लेने की भावना को जन्म देने लगते हैं.
(d) उससे घृणा करने लगते हैं.
(e) इनमें से कोई नहीं
3. ईर्ष्या का सबसे अच्छा उपचार है कि
(a) ईर्ष्यालु व्यक्ति से ईर्ष्या की जाए.
(b) ईर्ष्यालु को दण्डित किया जाए.
(c) आशापूर्ण ढंग से अपना उद्योग किया जाए.
(d) ईर्ष्यालु को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए.
(e) इनमें से कोई नहीं
4. उपर्युक्त अवतरण के अनुसार
(a) ईर्ष्या में क्रोध की तुलना में अधिक वेग होता है.
(b) ईर्ष्या में क्रोध की तुलना में कम वेग होता है.
(c) जो वेग क्रोध में होता है वह ईर्ष्या में नहीं होता.
(d) क्रोध और ईर्ष्या में बराबर वेग होता है.
(e) इनमें से कोई नहीं
5.निम्नलिखित में से ’उन्नति’ का विलोम क्या है?
(a) अवनति
(b) प्रगति
(c) अनवती
(d) उत्थान
(e)इनमें से कोई नहीं
निर्देश (6-10): नीचे दिये हुये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर गद्यांश में वर्णित तथ्यों के आधार पर दीजिए.
जैसे धृतराष्ट्र ने लौह-निर्मित भीम को अपने अंक में भर कर चूर-चूर कर दिया था-वैसे ही प्रायः पार्थिव व्यक्तित्व कल्पना-निर्मित व्यक्तित्व को खण्ड-खण्ड कर देता है. पर इसे में अपना सौभाग्य समझती हूँ कि रवीन्द्र के प्रत्यक्ष दर्शन ने मेरी कल्पना-प्रतिमा को अधिक दीप्त सजीवता दी; उसे कहीं से खण्डित नहीं किया. पर उस समय मन में कुतूहल का भाव ही अधिक था जो जीवन के शैशव का प्रमाण है. दूसरी बार जब उन्हें ‘शान्ति निकेतन’ में देखने का सुयोग प्राप्त हुआ तब मैं अपना कर्म-क्षेत्र चुन चुकी थी. वे अपनी मिट्टी की कुटी ‘श्यामली’ में बैठे हुए ऐसे जान पडे़ मानो काली मिट्टी में अपनी उज्जवल कल्पना उतारने में लगा हुआ कोई अद्भुत कर्मा शिल्पी हो. तीसरी बार उन्हें रंगमंच पर सूत्रधार की भूमिका में उपस्थित देखा. जीवन की सन्ध्या बेला में ‘शान्ति निकेतन’ के लिए उन्हें अर्थ-संग्रह में यत्नशील देखकर न कुतूहल हुआ न प्रसन्नता; केवल एक गम्भीर विषाद की अनुभूति से हृदय भर आया. हिरण्यगर्भा धरती वाला हमारा देश भी कैसा विचित्र है! जहाँ जीवन-शिल्प की वर्णमाला भी अज्ञात है वहाँ वह साधनों का हिमालय खड़ा कर देता है और जिसकी उँगलियों में सृजन स्वयं उतरकर पुकारता है उसे साधन-शून्य रेगिस्तान में निर्वासित कर जाता है. निर्माण की इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि शिल्पी और उपकरणों के बीच में आग्नेय रेखा खींचकर कहा कि कुछ नहीं बनता या सब कुछ बन चुका!
6. अन्तिम बार टैगोर का दर्शन करने पर लेखिका को विषाद क्यों हुआ?
(a) इसलिए कि टैगोर जैसे महान कलाकार को भी भौतिक साधन जुटाना पड़ रहा है.
(b) इसलिए कि टैगोर भीख माँगने पर मजबूर हुए.
(c) इसलिए कि अच्छे कार्य के लिए भी आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है.
(d) इसलिए कि लोग कला में विशेष रूचि नहीं रखते हैं.
(e) इनमें से कोई नहीं
7. इस गद्यांश में लेखिका पाठकां को क्या बतलाना चाहती हैं?
(a) कल्पना जगत् और वास्तविक जगत् का भेद
(b) रवीन्द्रनाथ ठाकुर का संक्षिप्त परिचय
(c) भारतवर्ष के लिए शांति निकेतन का अवदान
(d) टैगोर जैसे कलाकार की वृद्धावस्था में साधनहीनता पर दुःख
(e) इनमें से कोई नहीं
8. गद्यांश का केन्द्रीय भाव निम्नलिखित में से किस कथन में है?
(a) महान लोगों को भी सत्कार्य हेतु धन एकत्र करने के लिए भीख माँगना पड़ जाता है.
(b) भारत जैसे विशाल देश में भी शिल्प-कार्य के लिए धन की कमी है.
(c) धन के बिना किसी संस्था का संचालन नहीं हो सकता है.
(d) बड़े लोगों को किसी संस्था के लिए धन एकत्र करने में कठिनाई नहीं होती.
(e) इनमें से कोई नहीं
9. इस गद्यांश के आधार पर कौन-सा कथन उपयुक्त है?
(a) धृतराष्ट्र को भ्रम हो गया था.
(b) कल्पना वास्तविकता के प्रकट हो जाने पर खण्डित हो जाती है.
(c) कल्पना-निर्मित शरीर असत्य है और पार्थिव शरीर सत्य है.
(d) कवीन्द्र रवीन्द्र के दर्शन से लेखिका का भ्रम मिट गया.
(e) इनमें से कोई नहीं
10. ‘विडम्बना’ का क्या अर्थ है?
(a) अपेक्षित और घटित के बीच होने वाली असंगति
(b) सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया
(c) मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता
(d) समन्वित विकास की प्रक्रिया
(e) इनमें से कोई नहीं
निर्देश (11-15): निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर गद्यांश में वर्णित तथ्यों के आधार पर दीजिए.
भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है. यहाँ सभी ऋतुएँ अपने समय पर आती हैं और पर्याप्त काल तक ठहरती हैं. ऋतुएँ अपने अनुकूल फल-फूलों का सृजन करती हैं. धूप और वर्षा के समान अधिकार के कारण यह धरती शस्य श्यामला हो जाती है. यहाँ का नगाधिराज हिमालय कवियों को सदा से प्रेरणा देता आ रहा है और यहाँ की नदियाँ मोक्षदायिनी समझी जाती रही हैं. यहाँ कृत्रिम धूप और रोशनी की आवश्यकता नहीं पड़ती. भारतीय मनीषी जंगल में रहना पसन्द करते थे. प्रकृति-प्रेम के कारण ही यहाँ के लोग पत्तों में खाना पसन्द करते हैं. वृक्षों में पानी देना एक धार्मिक कार्य समझते हैं. सूर्य और चन्द्र दर्शन नित्य और नैमित्तिक कार्यां में शुभ माना जाता है. यहाँ पशु-पक्षी, लता, गुल्म और वृक्ष तपोवनों के जीवन का एक अंग बन गये थे.
11. भारतीय मनीषी जंगल में रहना क्यों पसन्द करते थे?
(a) इसलिए कि वे संन्यास ले लेते थे.
(b) इसलिए कि जंगल में फल-फूल, कन्द- मूल अधिक मिलते थे.
(c) इसलिए कि जंगल में वे निर्द्वन्द्व रहते थे.
(d) इसलिए कि वे प्रकृति-पेमी थे.
(e) इनमें से कोई नहीं
12. ‘गुल्म’ का क्या तात्पर्य है?
(a) फूल
(b) झाड़
(c) फल
(d) गुच्छा
(e) इनमें से कोई नहीं
13. उपर्युक्त गद्यांश निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?
(a) हिमालय के महत्त्व से
(b) प्रकृति-प्रेम से
(c) ऋतु-वर्णन से
(d) वृक्षारोपण से
(e) इनमें से कोई नहीं
14. इस गद्यांश में ‘शस्य श्यामल’ से क्या तात्पर्य है?
(a) हरी-भरी घासों वाली
(b) हरी-भरी फसलों वाली
(c) श्यामल वृक्षों वाली
(d) हरे-भरे वन प्रदेश वाली
(e) इनमें से कोई नहीं
15. भारत में मोक्षदायिनी किसे समझा जाता है?
(a) नदियाँ
(b) पहाड़
(c) झरने
(d) प्रकृति
(e) इनमें से कोई नहीं
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