IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी प्रश्नोत्तरी
प्रिय पाठकों !!
IBPS RRB की अधिसूचना जारी की जा चुकी है. ऐसे में आपकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए हम आपके लिए हिंदी की प्रश्नोतरी लाये है. आपनी तैयारी को तेज करते हुए अपनी सफलता सुनिश्चित कीजिये…
निर्देश (1-15) : नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यान से पढ़िए और उस
पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए. कुछ शब्द मोटे अक्षरों में मुद्रित किए गए हैं, जिससे आपको कुछ
प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी. दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त
का चयन कीजिए.
पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए. कुछ शब्द मोटे अक्षरों में मुद्रित किए गए हैं, जिससे आपको कुछ
प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी. दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त
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साहित्य का इतिहास न तो वर्तमान से पलायन का साधन है और न
अतीत की आराधना का मार्ग, वह न तो अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ने का फल है और न वर्तमान
के कटु यथार्थ के दंश से बचानेवाला कल्पनालोक. इतिहास न अतीत की अंध पूजा
है और न वर्तमान का तिरस्कार . इतिहास वर्तमान की समस्याओं से बचने का
बहाना नहीं है, वह विकास, प्रगति और कर्म
का निषेध नहीं है. साहित्य का इतिहास अतीत की विलुप्त रचनाओं और रचनाकारों के
उद्धार का केवल साधन नहीं है, वह काल प्रवाह में अपनी कलात्मक अक्षमता के कारण अपने अस्तित्व
की रक्षा में असमर्थ रचनाओं और रचनाकारों का अजायबधर नहीं है. वह न तो रचना और
रचनाकार संबंधी तिथियों और तथ्यों का कोश है और न ‘कविवृत्त संग्रह’ मात्र. वह किसी रचना को अपने काल का केवल ऐतिहासिक
दस्तावेज या कीर्ति स्तंभ ही नहीं मानता, रचना को अपने युग के
यथार्थ के प्रतिबिंबन का केवल साधन नहीं समझता है और रचना की परंपरा, परिवेश और प्रभाव
का विशलेषण करके उसे भूल नहीं जाता. साहित्य का इतिहास कोवल विचारों का इतिहास
नहीं होता, वह संस्कृति के
इतिहास का परिशिष्ट भी नहीं है. वह रचनाओं के कलात्मक बोध का बाधक नहीं, साहित्य सिद्धांत
निर्णय का विरोधी नहीं, आलोचना का दुश्मन
नहीं है. वह केवल महान प्रतिभाओं और महान रचनाओं का स्तुति-गायन भी नहीं है. वह रचनाओं और
रचनाकारों का ऐसा जंगल नहीं है, जिसमें रचना और रचनाकार की विशिष्टता या अद्वितीयता खो जाए.
साहित्य का इतिहास न तो रचनाओं की केवल अंतर्वस्तु का इतिहास है और न मात्र रूपों
का . वह रचनाओं की साहित्यिकता या पाठक की ग्रहणशीलता या शब्दों के विज्ञान का
इतिहास नहीं है. वह रचना और रचनाकारों से संबंधित आलोचकीय प्रतिक्रियाओं का सारांश
नहीं है और न मुक्त चिंतन के नाम पर वैचारिक दृष्टिहीनता का फल. वह न तो
पुरातात्विक चिंतन है और न कलावादी आलोचना का विस्तार मात्र. वह साहित्य की धारणा
और इतिहास की धारणा के मेल का फल नहीं है. साहित्य का इतिहास ऐतिहासिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रिय, भाषावैज्ञानिक और
सौंदर्यशास्त्रीय साहित्यानुशीलन का सारसंग्रह भी नहीं है.
अतीत की आराधना का मार्ग, वह न तो अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ने का फल है और न वर्तमान
के कटु यथार्थ के दंश से बचानेवाला कल्पनालोक. इतिहास न अतीत की अंध पूजा
है और न वर्तमान का तिरस्कार . इतिहास वर्तमान की समस्याओं से बचने का
बहाना नहीं है, वह विकास, प्रगति और कर्म
का निषेध नहीं है. साहित्य का इतिहास अतीत की विलुप्त रचनाओं और रचनाकारों के
उद्धार का केवल साधन नहीं है, वह काल प्रवाह में अपनी कलात्मक अक्षमता के कारण अपने अस्तित्व
की रक्षा में असमर्थ रचनाओं और रचनाकारों का अजायबधर नहीं है. वह न तो रचना और
रचनाकार संबंधी तिथियों और तथ्यों का कोश है और न ‘कविवृत्त संग्रह’ मात्र. वह किसी रचना को अपने काल का केवल ऐतिहासिक
दस्तावेज या कीर्ति स्तंभ ही नहीं मानता, रचना को अपने युग के
यथार्थ के प्रतिबिंबन का केवल साधन नहीं समझता है और रचना की परंपरा, परिवेश और प्रभाव
का विशलेषण करके उसे भूल नहीं जाता. साहित्य का इतिहास कोवल विचारों का इतिहास
नहीं होता, वह संस्कृति के
इतिहास का परिशिष्ट भी नहीं है. वह रचनाओं के कलात्मक बोध का बाधक नहीं, साहित्य सिद्धांत
निर्णय का विरोधी नहीं, आलोचना का दुश्मन
नहीं है. वह केवल महान प्रतिभाओं और महान रचनाओं का स्तुति-गायन भी नहीं है. वह रचनाओं और
रचनाकारों का ऐसा जंगल नहीं है, जिसमें रचना और रचनाकार की विशिष्टता या अद्वितीयता खो जाए.
साहित्य का इतिहास न तो रचनाओं की केवल अंतर्वस्तु का इतिहास है और न मात्र रूपों
का . वह रचनाओं की साहित्यिकता या पाठक की ग्रहणशीलता या शब्दों के विज्ञान का
इतिहास नहीं है. वह रचना और रचनाकारों से संबंधित आलोचकीय प्रतिक्रियाओं का सारांश
नहीं है और न मुक्त चिंतन के नाम पर वैचारिक दृष्टिहीनता का फल. वह न तो
पुरातात्विक चिंतन है और न कलावादी आलोचना का विस्तार मात्र. वह साहित्य की धारणा
और इतिहास की धारणा के मेल का फल नहीं है. साहित्य का इतिहास ऐतिहासिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रिय, भाषावैज्ञानिक और
सौंदर्यशास्त्रीय साहित्यानुशीलन का सारसंग्रह भी नहीं है.
साहित्य के इतिहास का आधार है, साहित्य को
विकासशील स्वरूप की धारणा. साहित्य की निरंतरता और विकासशीलता में आस्था के बिना
साहित्य का इतिहास लेखन असंभव है. साहित्येतिहास के सभी प्रकार के विरोधी यह
विश्वास करते हैं कि कला स्थिर रहती है, उसका सौंदर्यबोधीय स्वरूप
स्थायी और शाश्वत होता है. कृतियों के कलात्मक मूल्य की शाश्वतता में विश्वास
रखनेवालों के अनुसार साहित्येतिहास स्वतंत्र और पृथक् रचनाओं की श्रृंखला मात्र रह
जाता है. लेकिन, जैसाकि रेनेवेलेक
ने लिखा है, साहित्य के
इतिहास का प्रयोजन है साहित्य की प्रगति, परंपरा, निरंतरता और
विकास की पहचान करना. विकास की धारणा के भी अनेक रूप हैं. उन्नीसवीं शताब्दी के
यूरोपीय चिंतन में प्रगति की धारणा का बोलवाला था और उस प्रगति की धारणा की
समाजशास्त्रीय तथा मनोवैज्ञानिक व्याख्याएँ साहित्य के संदर्भ में हुई हैं. प्रगति
की दो धारणाओं ने इतिहास संबंधी चिंतन को प्रभावित किया है. ये धारणाएँ हैं:
(क) चक्रीय प्रगति की धारणा और (ख) रेखीय प्रगति की धारणा । चक्रीय प्रगति की
धारणा को अनुसार साहित्य का विकास विश्लेषित करने वाले इतिहासकार किसी साहित्य
परंपरा या एक विधा क विकास को उदय, उन्नति और हृस को पुनरावर्ती क्रम को रूप में समझते हैं. रेनेवेलेक ने
लिखा है कि चक्रीय प्रगति की धारणा का परिणाम यह हुआ कि साहित्य का विकास दो
तत्वों के परस्पर संघर्ष का इतिहास या क्रिया प्रतिक्रिया का सिलसिला बनकर रह गया. यह संघर्ष
सर्जनात्मक और प्रतिबिंबात्मक, मौलिक और अनुकरणात्मक, स्वाभाविक और कृत्रिम
अथवा स्वच्छंदतावादी और परंपरावादी प्रवृत्तियों के बीच संघर्ष के रूप में समझा
जाता था.
विकासशील स्वरूप की धारणा. साहित्य की निरंतरता और विकासशीलता में आस्था के बिना
साहित्य का इतिहास लेखन असंभव है. साहित्येतिहास के सभी प्रकार के विरोधी यह
विश्वास करते हैं कि कला स्थिर रहती है, उसका सौंदर्यबोधीय स्वरूप
स्थायी और शाश्वत होता है. कृतियों के कलात्मक मूल्य की शाश्वतता में विश्वास
रखनेवालों के अनुसार साहित्येतिहास स्वतंत्र और पृथक् रचनाओं की श्रृंखला मात्र रह
जाता है. लेकिन, जैसाकि रेनेवेलेक
ने लिखा है, साहित्य के
इतिहास का प्रयोजन है साहित्य की प्रगति, परंपरा, निरंतरता और
विकास की पहचान करना. विकास की धारणा के भी अनेक रूप हैं. उन्नीसवीं शताब्दी के
यूरोपीय चिंतन में प्रगति की धारणा का बोलवाला था और उस प्रगति की धारणा की
समाजशास्त्रीय तथा मनोवैज्ञानिक व्याख्याएँ साहित्य के संदर्भ में हुई हैं. प्रगति
की दो धारणाओं ने इतिहास संबंधी चिंतन को प्रभावित किया है. ये धारणाएँ हैं:
(क) चक्रीय प्रगति की धारणा और (ख) रेखीय प्रगति की धारणा । चक्रीय प्रगति की
धारणा को अनुसार साहित्य का विकास विश्लेषित करने वाले इतिहासकार किसी साहित्य
परंपरा या एक विधा क विकास को उदय, उन्नति और हृस को पुनरावर्ती क्रम को रूप में समझते हैं. रेनेवेलेक ने
लिखा है कि चक्रीय प्रगति की धारणा का परिणाम यह हुआ कि साहित्य का विकास दो
तत्वों के परस्पर संघर्ष का इतिहास या क्रिया प्रतिक्रिया का सिलसिला बनकर रह गया. यह संघर्ष
सर्जनात्मक और प्रतिबिंबात्मक, मौलिक और अनुकरणात्मक, स्वाभाविक और कृत्रिम
अथवा स्वच्छंदतावादी और परंपरावादी प्रवृत्तियों के बीच संघर्ष के रूप में समझा
जाता था.
साहित्य और कला के संदर्भ में प्रगति की धारणा की एक नई
व्याख्या आर्थर कोएस्लर ने अपने एक निबंध में की है. उनका विचार है
कि विज्ञान या कला में प्रगति न तो पूर्ण रूप में होती है और न अनवरत ; वह काल विशेष में
एक सीमित अर्थ और निश्चित दिशा में होती है. कला में प्रगति
के चक्र की चार अवस्थाएँ हैं.
व्याख्या आर्थर कोएस्लर ने अपने एक निबंध में की है. उनका विचार है
कि विज्ञान या कला में प्रगति न तो पूर्ण रूप में होती है और न अनवरत ; वह काल विशेष में
एक सीमित अर्थ और निश्चित दिशा में होती है. कला में प्रगति
के चक्र की चार अवस्थाएँ हैं.
Q1. साहित्य के
इतिहास का मुख्याधार है–
इतिहास का मुख्याधार है–
(a) साहित्य के
विकासशील स्वरूप की धारणा
विकासशील स्वरूप की धारणा
(b) साहित्य के
सांस्कृतिक स्वरूप की धारणा
सांस्कृतिक स्वरूप की धारणा
(c) साहित्य के
राजनीतिक स्वरूप की धारणा
राजनीतिक स्वरूप की धारणा
(d) साहित्य को
सामायिक स्वरूप की धारणा
सामायिक स्वरूप की धारणा
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
Q2. साहित्य को
इतिहास का प्रयोजन, उसकी प्रगति, परंपरा और विकास
की पहचान है, कथन है–
इतिहास का प्रयोजन, उसकी प्रगति, परंपरा और विकास
की पहचान है, कथन है–
(a) हॉब्स का
(b) लुकाच का
(c) ब्रेख्त का
(d) रेनवेलेक का
(e) वाल्टेयर का
Q3. साहित्य और कला
के संदर्भ में प्रगति की नई धारणा की व्याख्या की है–
के संदर्भ में प्रगति की नई धारणा की व्याख्या की है–
(a) आर्थर कोएस्कर ने
(b) रेनवेलेक ने
(c) लुकाच ने
(d) ग्रास्शी ने
(e) ब्रेख्त ने
Q4. विज्ञान और कला
में प्रगति होती है–
में प्रगति होती है–
(a) पूर्ण रूप से
(b) नये सिरे से
(c) आंशिक रूप से
(d) अनवरत
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
Q5. गद्यांश में
प्रयुक्त ‘गड़े मुर्दे
उखाड़नें’ का अर्थ है-
प्रयुक्त ‘गड़े मुर्दे
उखाड़नें’ का अर्थ है-
(a) किसी का नुकसान
करना
करना
(b) किसी की बुराई
करना
करना
(c) व्यर्थ सन्देह
करना
करना
(d) पुरानी बातों को
याद करना
याद करना
(e) जाँच-पड़ताल करना
Q6. साहित्य का
इतिहास है–
इतिहास है–
(a) वर्तमान से पलायन
का साधन
का साधन
(b) एक कल्पनाशील
दुनिया
दुनिया
(c) अतीत की आराधना
का मार्ग
का मार्ग
(d) उपर्युक्त सभी
(e) इनमें से कोई नही
Q7. गद्यांश में
प्रयुक्त ‘अजायबघर‘ से क्या अभिप्राय
है
प्रयुक्त ‘अजायबघर‘ से क्या अभिप्राय
है
(a) विविध प्रकार की
उपयोगी वस्तुओं का संग्रह
उपयोगी वस्तुओं का संग्रह
(b) विविध प्रकार की
अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह
अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह
(c) विविध प्रकार की
उपयोगी-अनुपयोगी वस्तुओं का सग्रह
उपयोगी-अनुपयोगी वस्तुओं का सग्रह
(d) उपर्युक्त सभी
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
Q8. गद्यांश में
प्रयुक्त ‘मुक्त चिन्तन’ किसका परिणाम है
प्रयुक्त ‘मुक्त चिन्तन’ किसका परिणाम है
(a) वैचारिक विषमता
(b) वैचारिक
दृष्टिहीनता
दृष्टिहीनता
(c) कलावादी आलोचना
(d) लेखक की
ग्रहणशीलता
ग्रहणशीलता
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
Q9. उपर्युक्त
गद्यांश के अनुसार साहित्य को इतिहास का प्रयोजन है–
गद्यांश के अनुसार साहित्य को इतिहास का प्रयोजन है–
(I) साहित्य की
प्रगति
प्रगति
(II) साहित्य की
परंपरा
परंपरा
(III) साहित्य की
निरंतरता
निरंतरता
(a) केवल (I) और [II]
(b) केवल (II) और (III)
(c) केवल (III) और (I)
(d) (I),
(II) और (III) तीनों
(II) और (III) तीनों
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
Q10. उपर्युक्त
गद्यांश के अनुसार साहित्य का इतिहास निम्नलिखित
में से क्या नहीं है?
गद्यांश के अनुसार साहित्य का इतिहास निम्नलिखित
में से क्या नहीं है?
(I) कवल विचारों का
इतिहास
इतिहास
(II) रचनाओं के
कलात्मक बोध का अवरोधक
कलात्मक बोध का अवरोधक
(III) साहित्य निर्माण
का विरोधी
का विरोधी
(a) केवल (I) और (II)
(b) केवल (II) और (III)
(c) केवल (III) और (I)
(d) (I),
(II) और (III) तीनों
(II) और (III) तीनों
(e) इनमें से कोई
नहीं
नहीं
निर्देश (11 – 13) : निम्नलिखित प्रश्नों में गद्यांश में प्रयुक्त
शब्द मोटे रूप में दिए गए है. जिस विकल्प में समानार्थी शब्द नहीं है, वही आपका उत्तर
है.
शब्द मोटे रूप में दिए गए है. जिस विकल्प में समानार्थी शब्द नहीं है, वही आपका उत्तर
है.
Q11. आराधना
(a) पूजा
(b) निवेदन
(c) प्रार्थना
(d) प्रशंसा
(e) अर्चना
Q12. यथार्थ
(a) वास्तविक
(b) मौलिक
(c) सच्चाई
(d) अकाल्पनिक
(e) सुगम्य
Q13. मुक्त
(a) बन्धनहीन
(b) मोती
(c) स्वतन्त्र
(d) आजाद
(e) उन्मुक्त
Q14. निम्नलिखित
प्रश्नों में गद्यांश में प्रयुक्त शब्द मोटे रूप में दिए गए है और उसके सामने
पाँच शब्द दिए गए हैं इनमें से विपरीतार्थी शब्द का चयन कीजिए.
प्रश्नों में गद्यांश में प्रयुक्त शब्द मोटे रूप में दिए गए है और उसके सामने
पाँच शब्द दिए गए हैं इनमें से विपरीतार्थी शब्द का चयन कीजिए.
तिरस्कार
(a) बहिष्कार
(b) प्रेम
(c) श्रद्धा
(d) स्वागत
(e) समर्थन
Q15. निम्नलिखित
प्रश्नों में गद्यांश में प्रयुक्त शब्द मोटे रूप में दिए गए है और उसके सामने
पाँच शब्द दिए गए हैं इनमें से समानार्थी शब्द का चयन कीजिए.
प्रश्नों में गद्यांश में प्रयुक्त शब्द मोटे रूप में दिए गए है और उसके सामने
पाँच शब्द दिए गए हैं इनमें से समानार्थी शब्द का चयन कीजिए.
आस्था
(a) स्नेह
(b) भावना
(c) विश्वास
(d) मेल-मिलाप
(e) परंपरा