हम अक्सर जीवन में बहुत सी कठिनाईयों का सामना करते है और यह कठिनाइयाँ कहीं न कहीं हमारे करियर पर भी प्रभाव डालती है… हम अक्सर समस्याओं से हार मान लेते है, थक जाते है सोचते है कि जो हम देख रहे है वो शायद जीवन की सबसे भयानक स्थिति है, पर हम अक्सर यह भूल जाते है कि कुछ लोग है जो हमसे से भी ज्यादा समस्याओं का सामना कर रहे होंगें, कुछ लोग है जो हमसे भी अधिक अभावों में अपना जीवन व्यतीत कर रहें होगें… हम अपनी छोटी-छोटी समस्याओं से भी भयभीत होने लगते है परन्तु जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है…. कोई भी परिस्थिति जीवन में स्थिर नहीं रहती, इसलिए हमेशा अपना हौसला बनाये रखें और अपनी समस्याओ से जूझते रहें… और तब तक जूझते रहे जब तक आपकी परेशानियाँ आपके सामने झुक न जाएँ.
आज हम ऐसी शख्सियत के बारें में आपसे बात करना चाहते है जिसने अपने जीवन में बेहद संघर्ष किया है. या ये कहें कि जिसने कठिनाइयो की चरम स्थितियों में अपना जीवन व्यतीत किया, परन्तु अंत में वो अपने जीवन में सफल हुई, आज हम भारतीय प्रशासनिक अधिकारी उम्मुल खैर के बारें में बात कर रहें है, उम्मुल ने जीवन में बेहद संघर्ष किया, यहाँ तक की उनके माता-पिता ने भी उन्हें अपने से दूर कर दिया, पर इन सब के बावजूद भी उम्मुल ने मेहनत की और भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बनी.
उम्मुल खेर की कहानी कोई साधारण कहानी नहीं है. वह एक मुस्लिम महिला है और एक दिव्यांग है. उनका जन्म दिल्ली की मलिन बस्ति में हुआ.कवि अब्दुल रहिम खानेखाना की ऐतिहासिक कब्र के पास,जोकि एक ऐसा क्षेत्र था, जहाँ विकास कोसो दूर था. जहाँ हम और आप शायद जाना भी पसंद न करें वो ऐसी जगह रहती थी. 2001 में, विशाल बारापुल्ला पुल के निर्माण के कारण उनका घर भी उनसे छीन लिया गया,वह और उनका परिवार बेघर हो गया.
उसके पिता के पास एक छोटी सी चाय की दुकान थी. इससे ज्यादा मदद नहीं मिली. परिवार, कुछ महीनों तक संघर्ष करने के बाद, राजस्थान में अपने गावं पाली चला गया.
उम्मुल खेर, जो तब सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा में थी, उन्हें उनके परिवार द्वारा वहीँ छोड़ दिया गया,वह अकेली हो गई थीं.
वह कहती है: “मेरी मां ने सोचा कि मैं बहुत पढ़ चुकी हूँ. वह अनपढ़ थी. लेकिन यह शिक्षित परिवारों में भी होता है,जहाँ बेटियों को कमज़ोर समझा जाता है.
वह पढने में बहुत अच्छी थी. एक शिक्षक ने पूर्वी दिल्ली में एक निजी स्कूल में प्रवेश दिलाने में उनकी सहयता की. उम्मुल खैर ने त्रिलोकपुरी में एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया. हलाकि उनकी पढाई का खर्चा उनके स्कूल द्वारा ही उठाया गया, परन्तु जीवन व्यतीत करने के लिए कुछ पैसो की आवश्यकता तो होती ही है. तो इसके लिए उन्होंने आस-पास के बच्चो को ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया.
“उनके छात्र मूल रूप से रिक्शा वालो और मजदूर व्यक्ति के बच्चे थे. जो 50 या 100 रुपये से ज्यादा नहीं दें सकते थे. उन्होंने अच्छे अंको के साथ अपना स्कूल पास किया और गार्गी कॉलेज में एडमिशन लिया.
परन्तु सिर्फ गरीबी ही उनकी समस्या नहीं थी. उम्मुल खेर में एक आनुवांशिक बीमारी है जिसे Fragile Bone Disorder कहा जाता है. उनकी हड्डियाँ बहुत कमजोर है. यहाँ तक की छोटी सी चोट में भी उनकी हड्डियों में बहुत से फ्रैक्चर होने का डर रहता है.
उनके लिए “त्रिलोक पूरी से गार्गी कॉलेज तक बस में सफ़र करना बेहद कठिन था. कई बार उन्हें फ्रैक्चर हुए यहाँ तक कि वह एक साल तक व्हील चेयर पर भी रही. उन्होंने किसी तरह अपना एप्लाइड मनोविज्ञान में बीए पूरा किया. उसके बाद उन्हें जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में स्नातकोत्तर में प्रवेश मिला.
उम्मुल खैर विकलांग व्यक्तियों पर काम कर रही बहुत से गैर-सरकारी संगठनों से जुडी हुई है. 2015 में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा विकलांगता पर उनके असाधारण काम के लिए उन्हें रोल मॉडल के रूप में सम्मानित किया गया. उसने विभिन्न देशों में विकलांग अधिकार समूहों का प्रतिनिधित्व किया है.
वर्तमान में जे.एन.यू में एक अनुसंधान विद्वान के रूप में नामांकित है, और उन्होंने अपने पहले प्रयास में यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण की.
हम अक्सर अपनी क्षमताओं को पहचानने में भूल कर जाते है, और अक्सर अपनी असफलताओ के लिए बहाने बनाने लगते है. और उसके लिए अपनी समस्याओ की चादर ओढने लगते है. सब से सांत्वना चाहते है परन्तु एक असफल व्यक्ति हमेशा असफल ही रहेगा जब तक वह उस स्थिति से निकलने का प्रयास न करें. किसी विद्वान ने कहा है कि – Don’t make excuse, make improvement. यह बिलकुल सत्य है. जब तक आप अपनी असफलता को छुपाने के लिए बहाने बनाते रहेंगे. आप कभी भी अपनी क्षमताओं को नहीं जान पायेंगें.
Until you cross the bridge of your insecurities, you can’t begin to explore your possibilities.
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