उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI)
Consumer Price Index-CPI – उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एक व्यापक उपाय है जिसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य के माप के लिए एक सूचकांक है. जिसकी गणना सामानों एवं सेवाओं (goods and services) के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना करके की जाती है. आमतौर पर इसका उपयोग अर्थव्यवस्था में खुदरा मुद्रास्फीति को मापने के लिए किया जाता है.
Practice with,
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI)
- यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है।
- यह चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापता है, जिस पर एक परिभाषित समूह के उपभोक्ता अपनी आय खर्च करते हैं।
- CPI के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:
2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer-AL) के लिये CPI
3. ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer-RL) के लिये CPI
4. CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
Statistics and Program Implementation मंत्रालय CPI (UNME) के लिए डेटा एकत्र और संकलित करता है, जबकि श्रम मंत्रालय में श्रम ब्यूरो अन्य तीनों के लिए भी यही करता है.
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के प्रभाव
- यह एक व्यक्ति के रहने की लागत को बढ़ाता है
- यदि मुद्रास्फीति की दर अधिक है, तो यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है. जब माल की लागत अधिक होती है, तो इन वस्तुओं का उत्पादन कम हो जाता है.
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CPI मुद्रा स्फीति में वर्तमान परिवर्तन
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी नवीनतम मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ महीनों में सीपीआई मुद्रास्फीति, जो कि पिछले कुछ महीनों में बढ़ी है, वित्तीय वर्ष के दौरान सबसे अधिक नरम हो जाएगी. रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्ष 2020- 21 में पहली तिमाही में 4.8%, दूसरी तिमाही में 4.4%, तीसरी तिमाही में 2.7% तथा चौथी तिमाही में 2.4% तक कम होने का अनुमान है. RBI ने कहा कि अनुमानित और सुगमता के कारण मुद्रास्फीति में गिरावट आई है, जबकि आपूर्ति में रूकावट की वजह से अपेक्षा से अधिक दबाव बढ़ सकता हैं. केंद्रीय बैंक ने कहा, आगे की ओर देखें तो मुद्रास्फीति के जोखिम का संतुलन नीचे की ओर भी धीमा है.
लॉकडाउन के चलते मार्च तथा आगामी कुछ महीनों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI ) का संकलन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. COVID-19 से स्थिति बिगड़ रही है, जिससे वृहद आर्थिक प्रभाव डालने के कारण वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह से 2020 में भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ सकता है. COVID-19 के बढ़ते खतरे और मौजूदा लॉकडाउन के समय उच्च अनिश्चितता की स्थिति वर्तमान प्रत्याशित मांग तथा ‘कोर मुद्रास्फीति’ में कमी ला सकती है. जन की कीमतों, और अन्य चीजों में गिरावट के साथ, भारतीय रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि वित्तीय वर्ष 2021 के लिए मुद्रास्फीति 3.6 से 3.8% के बीच गिर सकती है
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इसके अलावा, COVID-19 दुनिया भर के 200 से अधिक देशों में तेजी से फैल रहा है, वैश्विक अर्थव्यवस्था 2020 में आसन्न मंदी की ओर जा रही है, जबकि इससे पहले वर्ष में 2.9% की वृद्धि हुई थी.