Jagannath Rath Yatra 2020 : हर साल हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में किया जाता है. इस वर्ष कोरोना के चलते 18 जून को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने इस वर्ष की रथ यात्रा में प्रतिबन्ध लगा दिया था. यह यात्रा वर्ष 1736 से अनवरत चल रही है. धार्मिक श्रद्धा औ भावनाओं को देखते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इस वर्ष भी रथ यात्रा की अनुमति दे दी है. शर्ते इस प्रकार है –
- पुरी में बिना लोगों की भीड़ के रथ यात्रा को मंजूरी दी जा सकती है.
- 500 से ज्यादा लोग एक रथ को नहीं खींच सकते. दो रथों को खींचने के बीच का समय 1 घंटे होगा. रथ खींचने वाले सभी लोगों का कोरोना टेस्ट होगा.
- पुरी में रथ यात्रा के दौरान कर्फ्यू लगाया जाए. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन यात्रा के दौरान किया जाए.
- यात्रा में आने वाले सभी लोगों का रिकॉर्ड रखा जाए. मेडिकल टेस्ट और उनकी सेहत की जानकारी रखी जाए.
- यात्रा और सभी रस्मों को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से कवर की इजाजत दी जाए. सरकार क्रू के मुताबिक कैमरा लागने की अनुमति दे.
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क्या है परंपरा – What a tradition
भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकाली जा रही है. यह यात्रा (Puri Rath Yatra) आज से शुरू हो कर 1 जुलाई को समाप्त होगी. आपको बता दें कि 9 दिन चलने वाली यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर 2.5 किमी दूर गुंडिचा मंदिर जायेंगे. एक बार भगवान् अस्वस्थ हो गए थे. इस कारण उनको एक विशेष कक्ष ओसरगृह में 15 दिन तक आराम करने के लिए ले जाया गया था. इसके बाद जब भगवान् भक्तों के बीच आये तो उन्हें देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. इस दिन को नवयौवन नेत्र उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद ही भद्रा की इच्छा और अनुरोध पर भगवान् जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को बड़े भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा के साथ गर भ्रमण के लिए निकले, जिसे रथ यात्रा के रूप में मनाया जाता है.
Jagannath Rath Yatra 2020 : भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊँचा है और इसमें 18 पहिए लगे हुए हैं. वहीं भगवान बलभद्र अर्थात बलराम जी का रथ भगवान जगन्नाथ के रथ से थोड़ा छोटा है. भगवान बलराम जी का रथ 45 फीट ऊँचा है और इसमें 16 पहिए लगे हुए हैं. कृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा के रथ की लंबाई 44.6 फीट है और जिसमें 14 पहिए लगे हुए हैं. प्रत्येक वर्ष ए रथ बनाए जाते हैं और यह फसी, भुनरा और आसन पेड़ों की लकड़ियों से बनाये जाते हैं.
राजा” सुनहरी झाड़ू से सड़क साफ करते हैं
यहाँ की परंपरा है कि जब भगवान जगन्नाथ के रथ को ले जाते हैं तो यहाँ के राजा सुनहरी झाड़ू से सड़क साफ करते हैं और पुजारी खूबसूरत पंखों से भगवान को हवा करते हैं. पंडित श्लोक पढ़ते हैं और घंटी बजाते हैं. यह परंपरा आज भी है.
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history of rath yatra : क्या है रथ यात्रा का इतिहास –
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हजारों सालों से चल रही है. कहते हैं भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा राजा इंद्रद्युम ने प्रारंभ की थी. इंद्रद्युम कलयुग के प्रारंभिक काल में मालव देश पर शासन करते थे. उन्हें स्वप्न आया था कि भगवान् जगन्नाथ उन्हें दर्शन देंगे. उसके बाद समुद्र से आने वाली लकड़ी से भगवानी की मूर्ति बनवाने की इच्छा प्रकट की. विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने उन लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा और राजा ने हाँ कर दी. जिसके बाद विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि जबतक मैं मूर्ति न बना लूँ कोई मेरे कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा पर कौतुहल वश राजा से नहीं रहा गया और वो वहाँ प्रवेश कर गए. इसी लिए यह मूर्ति अधूरी ही रह गई.
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