पिछले कुछ वर्षों में तेजी से विकास कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार अब धीमी पड़ गई है। भारत की जीडीपी वृद्धि 5% पर आ गई, जो छह वर्षों में सबसे कम है। RBI की नवीनतम रिपोर्ट ने भारतीय अर्थव्यवस्था की ख़राब स्थिति की पुष्टि की है। वर्ष 2018 की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत थी। वहीं अंतिम तिमाही में ये विकास दर 5.8 प्रतिशत थी। यह भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए एक बुरी खबर है। जो भविष्य में आने वाली समस्याओं का संकेत दे रही है। आइये जानते है, भारत में अर्थव्यवस्था की धीमी रफ़्तार के कारण और उससे कैसे बचा जा सकता है।
किसी अर्थव्यवस्था में धीमेपन के दो कारक होते हैं – आंतरिक और बाहरी कारक। अर्थशास्त्रियों द्वारा यह माना जाता है कि अर्थव्यवस्था का टूटना दोनों कारकों का परिणाम है, हालांकि आंतरिक कारकों का बाहरी कारणों की तुलना में अधिक प्रभाव होता है। आजादी के बाद से भारत में यह तीसरी आर्थिक मंदी है। इससे पहले जून 2008 और मार्च 2011 में इस प्रकार की मंदी देखी गई थी।
भारत में आर्थिक मंदी के आतंरिक कारण
- भारत में ऑटो सेक्टर अपने बुरे दौर से चल रहा है। पिछले नौ महीनों से लगातार ऑटो इंडस्ट्री में बिक्री में गिरावट दर्ज हो रही है। इस वर्ष के जुलाई माह में कार और मोटरसाइकिलों की बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट देखि गई है।
- अभीतक ऑटो सेक्टर से जुड़े लगभग साढ़े तीन लाख कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया है, वहीं करीब 10 लाख नौकरियों में खतरा मंडरा रहा है।
- भारत में लगभग 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी हालत खराब है। नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर बताया कि देश के कपड़ा उद्योग में 34.6 फीसदी की गिरावट आई है। विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में 25 से 30 लाख नौकरियां जाने की आशंका है।
- रियल एस्टेट सेक्टर की बात करें तो मार्च 2019 तक भारत के 30 बड़े शहरों में लगभग 12 लाख 80 हज़ार मकान बनकर तैयार किये गए हैं, लेकिन उन्हें कोई खरीद नहीं रहा है।
- RBI ने हाल में ही आंकड़े जारी किये हैं, जिसके अनुसार बैंकों से लिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आई है।
- पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टीलाइजर और टेलिकॉम आदि सेक्टर्स ने पहले के मुकाबले कर्ज लेना बहुत कम कर दिया है।
- इस वर्ष अप्रैल से जून की तिमाही में मांग की कमी की वजह से सोने-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है, जबकि इसी दौरान पिछले वर्ष 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी।
- निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने का असर शेयर बाजार में भी पड़ रहा है। सेंसेक्स 40 हजार का आंकड़ा छूकर, अब 37 हजार पर लुढ़क गया है।
भारत में आर्थिक मंदी के बाहरी कारण
- किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में जितना असर, आतंरिक कारणों से पड़ता है, उतना ही असर बाहरी कारणों का भी पड़ता है। इसलिए उन्हें जानना भी बहुत अवश्यक हो जाता है। भारत में आर्थिक मंदी आने की बाहरी वजहें निम्न हैं-
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं, जिसका असर महंगाई दर पर पड़ रहा है।
- डॉलर के मुकाबले रूपया गिर रहा है, एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 72 रुपये तक पहुँच गई है।
- आयात के मुकाबले निर्यात में कमी की वजह से देश का राजकोषीय घट रहा है और विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी आई है।
- अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है, इसी वजह से दुनिया भर में आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ रहा है और इसी का असर भारत पर भी पड़ा है।
इस स्थिति से उभरने के उपाए करने का प्रयास किया जा रहा है। एफडीआई $ 12.7 बीएन से $ 16.3 बीएन तक बढ़ने की खबर ने अर्थव्यवस्था में थोड़ी ढील दी है। सरकार ने ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए जीएसटी को भी संशोधित किया है, विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई की शुरुआत की है और बैंकिंग क्षेत्र में पुनर्पूंजीकरण (recapitalization) की शुरुआत की है।
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