Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti 2020: देश भर में आज ‘नेताजी’ से नाम से नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती मनाई जा रही है. युवाओं को उनके विचार हमेशा से प्रेरित करते रहे हैं. उन्हें देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत सभी ने श्रृद्धांजली दी :
आईए जानते हैं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन के बारे में :
सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा, बंगाल डिविजन के कटक में हुआ था. वे उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं, जो आज भी हमें प्रेरणा मिलती है. उनका ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया. उन्होंने सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमांडर के रूप में सेना को संबोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया. उन्होंने साल 1920 में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठित आईसीएस की परीक्षा पास करने के बाद भी उन्होंने वह नौकरी नहीं की.
जीवन
नेताजी को स्वामी विवेकानंद की आदर्शता और कर्मठता ने बहुत आकर्षित किया, विवेकानंद जी के साहित्य को पढ़कर उनकी धार्मिक जिज्ञासा और भी प्रबल होती गयी. उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कटक के मिशनरी स्कूल व आर. कालेजियट स्कूल से की और दर्शन शास्त्र को अपना प्रिय विषय बना लिया.
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण में अपने संबोधन के समय ही ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ और ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया. सक्रिय राजनीति में आने व आजाद हिन्द फौज की स्थापना से पहले बोस ने सन् 1933 से 1936 तक यूरोप महाद्वीप का दौरा भी किया था.
आजाद हिंद फौज की स्थापना
उन्होंने 1942 में जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था. उनकी आजाद हिंद फौज में ब्रिटिश मलय, सिंगापुर और अन्य दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्सों के युद्धबंदी और बागानों में काम करने वाले मजदूर शामिल थे. लेकिन इस बात की जानाकारी बहुत कम लोगों है कि इससे काफी पहले उन्होंने यूनीफॉर्म वॉलेंटियर कोर नाम से एक और फोर्स का गठन किया था. नेताजी शुरू से ही सैन्य अनुशासन में यकीन करते थे. इसी उद्देश्य से उन्होंने 1928 में कांग्रेस में यूनीफॉर्म वॉलेंटियर कोर का गठन किया. नेताजी यूनीफॉर्म वॉलेंटियर कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग थे.
जीवन के अंतिम दिन
इतिहासकारों का कहना है कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद दक्षिण-पूर्वी एशिया से भागते हुए एक हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त,1945 को बोस की मृत्यु हो गई. एक मान्यता यह भी है कि बोस की मौत 1945 में नहीं हुई, वह उसके बाद रूस में नजरबंद थे. हालांकि, आज भी उनकी मौत यह एक रहस्य ही है.
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