Cabinet ने दी जातिगत जनगणना 2025 को मंजूरी | जानें इतिहास, राजनीतिक बहस और असर
केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने को हरी झंडी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को जानकारी देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) ने जातिगत गणना को मंजूरी दे दी है।
“यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि सरकार समाज और राष्ट्र के मूल मूल्यों व हितों के प्रति प्रतिबद्ध है।” – अश्विनी वैष्णव
यह फैसला उस समय आया है जब विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जाति आधारित जनगणना को मुख्य राजनीतिक मुद्दा बना चुके हैं।
क्या पहले भी जातिगत आंकड़े जनगणना में शामिल होते रहे हैं?
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1951 से 2011 तक की हर जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े शामिल होते रहे हैं।
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1931 की जनगणना तक अन्य जातियों के आंकड़े भी शामिल किए जाते थे।
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1941 में जातिगत आंकड़े लिए गए, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के चलते उन्हें प्रकाशित नहीं किया गया।
नतीजा: आज़ादी के बाद अब तक ओबीसी (OBC) और अन्य जातियों की सटीक जनसंख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। मंडल कमीशन ने ओबीसी की आबादी को 52% आंका था, पर यह केवल अनुमान पर आधारित था।
मौजूदा सरकार का रुख कैसा रहा है?
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2021 में, गृह मंत्रालय ने लोकसभा में कहा था कि सरकार की कोई जातिगत जनगणना कराने की योजना नहीं है।
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लेकिन 2018 में, गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद कहा गया था कि ओबीसी डेटा भी एकत्र किया जाएगा।
हालांकि जब आरटीआई में उस बैठक के मिनट्स मांगे गए, तो रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (ORGI) ने कहा कि ऐसे कोई दस्तावेज मौजूद नहीं हैं।
पिछली सरकार यानी UPA का क्या स्टैंड था?
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2010 में, तत्कालीन कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने जातिगत आंकड़े शामिल करने की मांग की थी।
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2011 में, गृहमंत्री पी चिदंबरम ने लोकसभा में जातिगत वर्गीकरण से जुड़ी कई जटिलताओं का ज़िक्र किया।
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इसके बाद, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह बना और Socio-Economic Caste Census (SECC) का निर्णय लिया गया।
SECC के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी क्षेत्रों में आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने डेटा एकत्र किया।
इसकी कुल लागत ₹4,893.60 करोड़ थी।
नोट: SECC की जाति संबंधी कच्ची डेटा अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
SECC डेटा का क्या हुआ?
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यह डेटा Ministry of Social Justice को सौंपा गया था, जिसने NITI Aayog के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति बनाई।
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लेकिन अब तक यह साफ नहीं है कि उस समिति ने रिपोर्ट दी या नहीं।
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2016 में, संसद की एक समिति ने बताया कि SECC के 98.87% डेटा में कोई त्रुटि नहीं है।
विरोध की आवाजें और RSS का रुख
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2024 में, RSS ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया लेकिन शर्त रखी कि इसका उपयोग केवल कल्याणकारी योजनाओं में हो, चुनावी लाभ के लिए नहीं।
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लेकिन 2010 में, RSS के तत्कालीन सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना समाज को और विभाजित करेगी और संविधान में निहित जातिविहीन समाज की अवधारणा के खिलाफ है।
क्या जातिगत जनगणना समय की मांग है?
जातिगत जनगणना की मांग दशकों से चली आ रही है, खासकर पिछड़े वर्गों (OBC) की ओर से। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार की जनगणना वाकई में व्यापक और पारदर्शी जातिगत आंकड़े सामने लाएगी। इससे न केवल कल्याणकारी योजनाओं की दिशा तय होगी, बल्कि समाज के असली स्वरूप को समझने में भी मदद मिलेगी।


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