Banking Awareness: Difference Between CRR And SLR Rate in HINDI
BANK EXAM को क्रैक करने के लिए उम्मीदवारों को Banking Awareness में अच्छी पकड़ रखनी चाहिए. यह Banking exam को क्रैक करने के लिए जितना जरुरी है, उतना ही जरुरी है इंटरव्यू को क्रैक करने के लिए. साक्षात्कार के दौरान भी आपसे बैंकिंग क्षेत्र से सम्बंधित विभिन्न टर्म को पूछा जा सकता है. इस लेख के माध्यम से हम आपको CRR और SLR के बारे में बताएँगे. जिससे आपको इनके बीच का Difference समझने में मदद मिलेगी.
Practice With,
Cash Reserve Ratio ( CRR) – नकद आरक्षित अनुपात
भारत में कामकाज कर रहे बैंकों के लिए रिजर्व बैंक ने कुछ दिशा निर्देश बनाए हैं. उन्हीं नियमों में से एक यह भी है. कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है. इसे नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) या कैश रिजर्व रेश्यो कहते हैं. इस नियम को बनाने की मुख्य वजह हैं, कि यदि बैंक में बहुत बड़ी संख्या में ग्राहकों को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसे देने से मना न कर सके.
CRR का आम आदमी पर प्रभाव –
CRR के बढ़ने से बैंक को अपनी पूंजी का एक बड़ा हिस्सा बैंक पर रखना पड़ता है. इससे ग्राहकों को कर्ज देने के लिए कम रकम देश में कामकाज कर रहे बैंकों के पास कम रह जाएगी. बैंकों के पास आम आदमी और कारोबारियों को कर्ज देने के लिए कम पैसे रहेगा. इसके विपरीत यदि सीआरआर को घटाया जाता है तो नगद का प्रवाह बाजार में बढ़ जाता है. RBI इसमें बदलाव तब करता है, जब नकदी की तरलता पर तुरंत असर नहीं डालना हो. क्योंकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में इसमें असर देरी से पड़ता है.
Example.
मान लीजिए किसी बैंक में 100 रुपये हैं और CRR 4% है. तो, बैंक RBI को 4 रुपये देगा और 96 रुपये खुद रहेगा, जो ऋण के रूप में बाजार में वितरित करेगा. अब, RBI ने CRR को 5% तक बढ़ा दिया है, इसलिए बैंक को RBI को 5 रुपये देने होंगे और केवल 95 उसके पास होंगे, जिससे वाणिज्यिक बैंक की lending power कम हो जाएगी.
यह भी पढ़ें –
Statutory Liquidity Ratio (SLR) – वैधानिक तरलता अनुपात
अर्थव्यवस्था में नकदी की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए RBI जिन उपायों का सहारा लेता है उनमें से एक SLR है, वैधानिक तरलता अनुपात या स्टेचुअरी लिक्विडिटी रेश्यो जमा का वह हिस्सा होता है जिसे बैंकों को अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है. नकदी, स्वर्ण भंडार, सरकारी प्रतिभूतियों जैसे किसी भी रूप में एसएलआर हो सकता है.
अपनी जमा पर लोन जारी करने की अनुमति बैंक को तभी दी जाती है, जब बैंक इस अनुपात को सुरक्षित रख लेते हैं. रिजर्व बैंक इसका निर्धारण करता है. 40 फीसदी SLR की अधिकतम सीमा रह चुकी है. रिजर्व बैंक SLR की सीमा 40% से 0% तक रख सकता है.
यह भी पढ़ें –
- Non-cooperation Movement – असहयोग आंदोलन
- भारत के पहले प्रधानमंत्री: पंडित जवाहरलाल नेहरू
- Indian GDP 2020 – STATE WISE GDP | जानें कौन सा राज्य है कितना अमीर
आम आदमी पर प्रभाव –
SLR के माध्यम से RBI बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित करता है. अगर कभी कोई बैंक मुश्किल परिस्थिति में फंस जाता है, ऐसी परिस्थिति में ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई RBI एसएलआर की मदद से कर सकता है.
Example –
यदि किसी बैंक में 100 रुपये और SLR 20% है, तो बैंकों को उन 20 रुपये को अपने पास रखना होगा और उन्हें उधार देने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता है. 100 में से 80 रुपये बैंक के पास बचे हैं जिसका उपयोग वह उधार देने के लिए कर सकता है.
Difference Between CRR and SLR
CRR | SLR |
CRR कुछ निश्चित राशि है जो बैंकों को RBI के पास रखनी होती है | SLR बैंकों के पास जमा का अनुपात है जो उन्हें अपने पास रखना होता है |
CRR केवल मौद्रिक रूप में बनाए रखा जाता है | SLR को स्वर्ण, नकद और RBI द्वारा other securities approved के रूप में बनाए रखा जा सकता है |
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए CRR का उपयोग किया जाता है | जमाकर्ताओं की अचानक मांग को पूरा करने के लिए SLR का उपयोग किया जाता है |
CRR ने Liquidity को विनियमित करता है. | एसएलआर क्रेडिट सुविधा को नियंत्रित करता है |
CRR पर बैंकों द्वारा कोई ब्याज नहीं कमाया जाता है | बैंक एसएलआर पर ब्याज कमा सकते हैं |
Practice With,
4.