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हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विराल आचार्य ने सरकार पर केंद्रीय बैंक के कामकाज में दखल देने का आरोप लगाया है. दूसरी तरफ, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने RBI को तनावग्रस्त संपत्तियों के अप्रबंधनीय आंकड़ों के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि 2008 और 2014 के बीच अंधाधुंध उधार देने में जांच से विफल रहा जिसके कारण बैंकिंग उद्योग में एनपीए का संकट आया.
यह बताया गया था कि सरकार ने RBI को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 की धारा 7 का आह्वान करने के लिए विभिन्न पत्र लिखे हैं, जिससे उन्हे RBI गवर्नर को सार्वजनिक हित के मामलों पर निर्देश जारी करने की इजाजत मिली है जैसे NBFC के लिए तरलता, पूंजी आवश्यकता कमजोर बैंकों और एसएमई को उधार देना आदि. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि “RBI अधिनियम के ढांचे के भीतर केंद्रीय बैंक के लिए स्वायत्तता एक आवश्यक और स्वीकृत शासन आवश्यकता है”.
Section 7 of the Reserve Bank of India (RBI) Act, 1934
RBI अधिनियम की धारा 7 केंद्र सरकार को RBI के गवर्नर को कुछ मुद्दों पर कार्रवाई करने की सलाह देने और निर्देश देने का अधिकार देती है, जिसे सरकार गंभीर और सार्वजनिक हित में समझती है. केंद्र सरकार बैंक के राज्यपाल के परामर्श के बाद समय-समय पर बैंक को जनता के हित में आवश्यकता के विचार का निदेशन दे सकता है. एक बार धारा 7 लागू होने के बाद, बैंक के मामलों और व्यापार की सामान्य अधीक्षण और निदेशन केंद्रीय निदेशक मंडल को सौंपी जाती है जो सभी शक्तियों का उपयोग कर सकता है और बैंक द्वारा किए गए सभी कार्यों को कर सकता है. धारा 7 का अब तक स्वतंत्र भारत में कभी भी उपयोग नहीं किया गया था.इसका उपयोग 1991 में जब देश आर्थिक मंदी के करीब था और 2008 के मंदी संकट के बाद भी नहीं किया गया था.