Major Functions of the Reserve Bank of India : भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना आज ही के दिन यानी, 1 अप्रैल, 1935 को की गई थी. जिसे आरबीआई एक्ट 1934 के अंतर्गत (जॉन हिल्टन यंग कमीशन, 1926, जिसे रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस भी कहा जाता है, की सिफारिशों पर) स्थापित किया गया। यह देश का केंद्रीय बैंक है, और इसका राष्ट्रीयकरण 01 जनवरी, 1949 से प्रभावी किया गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय मुंबई में स्थित है।
मूल रूप से यह एक शेयरधारक बैंक था, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा रिजर्व बैंक (सार्वजनिक स्वामित्व का हस्तांतरण) अधिनियम 1948 के तहत अधिग्रहित किया गया था। (प्रदत्त पूँजी 5 करोड़ रुपए थी)
आरबीआई के कार्य क्या हैं :
मुद्रा जारी करना (Issue of Bank Notes) : भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित करेंसी नोट (जिसे बैंक नोट कहा जाता है) जारी करने वाला प्राधिकारी है। (एक रुपये का नोट जिसे करेंसी नोट कहा जाता है केन्द्र सरकार द्वारा जारी किया जाता है। इस पर वित्त सचिव का हस्ताक्षर होता है।) मुद्रा के भंडार को देश भर में फैले करेंसी चेस्ट की सहायता से वितरित किया जाता है।
सरकार का बैंक (Banker to Government) : आरबीआई सरकार के व्यावसायिक लेनदेन को सम्पादित करता है और सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन करता है। जहाँ आरबीआई का कोई कार्यालय नहीं है वहाँ एसबीआई या अन्य बैंक को अपना एजेंट नियुक्त करता है। यह सरकार को अर्थोपाय अग्रिम प्रदान करता है।
बैंकों का बैंक (Custodian of Cash Reserves of Commercial Banks) : यह वाणिज्यिक बैंकों के जमाओं के एक भाग को (सीआरआर) के रूप में अपने पास रखता है और बैंकों को वित्तीय सहायता प्रदान करके अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है। यह निर्यात ऋण पुनर्वित्त, चलनिधि समायोजन सुविधा और सीमांत स्थायी सुविधा प्रदान करता है।
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बैंकों के नियंत्रक (Controller of Credit) : किसी इकाई को जिसे भारत में बैंकिंग कारोबार का संचालन करना होता है, को आरबीआई से लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता है। यह बैंकों को अधिनियम के दूसरी अनुसूची शामिल करके बैंकों के नियंत्रक के रूप में कार्य करता है। यह दिशानिर्देश जारी करता है, निरीक्षण करता है (प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से) और प्रबंधन पर नियंत्रण रखता है।
साख के नियंत्रक (Central Clearance and Accounts Settlement): आरबीआई बैंक दर सहित, ब्याज दरों को निर्धारित करता है और चयनात्मक साख नियंत्रण के उपाय करता है। इस उद्देश्य के लिए आरबीआई विभिन्न उपकरण जैसे नकद आरक्षित अनुपात में परिवर्तन, प्रतिभूतियों पर मार्जिन की व्यवस्था करके, क्रेडिट दिशा निर्देश जारी करना आदि का प्रयोग करता है। यह प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री भी करता है जिसे खुले बाजार का परिचालन कहा जाता है।
नीतिगत दरें कितने प्रकार की होती हैं :
रेपो रेट
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस दर पर वाणिज्यिक बैंक आरबीआई से छोटी अवधि के लिए लोन लेते हैं. जब भी बैंकों के पास धन की कमी होती है वे आरबीआई से उधार ले सकते हैं.
रिवर्स रेपो रेट
यह रेपो रेट के ठीक विपरीत या उल्टा है. यह वह दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंकों को आरबीआई के पास रखे अपने अतिरिक्त धन पर शुल्क मिलता है. आरबीआई इसका प्रयोग तब करता है जब उसे लगता है कि बैंकिंग तंत्र में धन का प्रवाह बहुत ज्यादा हो रहा है.
सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) दर
SLR दर वह राशि/धन है जितना किसी बैंक को अपने ग्राहकों को उधार देने से पहले, नकद, सोने या सरकार द्वारा अनुमोदित प्रतिभूतियों (बांड्स) के रूप में अपने पास बनाये रखने की जरुरत होती है.
इसका निर्धारण कुल शुद्ध मांग और सावधि जमा (NDTL) के प्रतिशत के रूप में होता है.
बैंक दर
आरबीआई अधिनियम 1934 के भाग 49 में इसे उस मानक दर के रूप में परिभाषित किया गया है, जिस पर इस अधिनियम के तहत खरीदने योग्य बिल्स ऑफ़ एक्सचेंज या अन्य वाणिज्यिक कागजात को खरीदने या पुनर्छूट देने के लिए आरबीआई तैयार होता है.’
नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
सीआरआर, तरलता और अनुसूचित बैंकों की शोधन क्षमता सुनिश्चित करने के लिए बैंक का शुद्ध मांग और सावधिक देयताओं के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ बैंकों के नकद आरक्षित शेष राशि के अनुपात को संदर्भित करता है.
आरबीआई पर महत्वपूर्ण बिंदु:
- RBI से आम जनता की जमा को स्वीकार करना अपेक्षित नहीं है
- RBI का मुख्यालय मुंबई में है
- प्राथमिक ऋण दर RBI द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता है
- प्रथमिक ऋण दर का निर्णय अलग-अलग बैंकों द्वारा लिया जाता है
- RBI निम्नलिखित दरों का निर्धारण करता है; बैंक दर, पुनर्खरीद दर , आरक्षित पुनर्खरीद दर और नकद आरक्षित अनुपात
- RBI हिल्टन यंग कमीशन की सिफारिशों पर बनाया गया था
- RBI के मात्रात्मक साधन हैं – बैंक नीति दर, नकद आरक्षित अनुपात और सांविधिकतरलता अनुपात
- RBI की मौद्रिकनीति का उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है; वस्तुओं को जमाखोरी को हतोसाहित करना और उपेक्षित क्षेत्र में ऋण के प्रवाह को प्रोत्साहित करना है।
- जब RBI रीन देने के अंतिम सहारा होता है, इसका अर्थ होता है कि RBI पात्र प्रतिभूतियों के आधार पर ऋण दे देता है
- भारत सरकार सिक्कों की संख्या निर्धारित करती है
- वर्तमान में मुद्रा को लागू किये जाने वाली प्रक्रिया – न्यूनतम आरक्षित प्रक्रिया है.