भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हाल ही में हुए मैच ने सभी क्रिकेट प्रशंसकों को निराश कर दिया क्योंकि दक्षिण अफ़्रीकी टीम अपने खेल से, अपनी छवि और प्रशंसकों की अपेक्षाओं के साथ न्याय नहीं कर सके.यहां चिंता का विषय दक्षिण अफ्रीका का खराब प्रदर्शन नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाडियों में उत्साह, जीत की लालसा, और खेल के जज्बे का गायब होना है.
एक समय पर दक्षिण अफ्रीका टीम को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक माना जाता था. परन्तु उनके खेल के स्तर में गिरावट उनके टीम प्रबंधन में हलचल करने के लिए पर्याप्त है. अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वे अपने नाम “चोकर्स” पर खरे उतरे है, यह नाम उन्हें तब दिया गया था जब उन्होंने वास्तव में महत्वपूर्ण मैचों में पराजय को अपनी आदत बना ली थी. इसके बिलकुल विपरीत, भारतीय टीम ने किसी भी कठिनाई के बिना अच्छी प्रदर्शन किया.
लेखन के लिए एक विषय के रूप में दक्षिण अफ़्रीकी टीम का इस टूर्नामेंट से बाहर होने का विषय पूरी तरह से हमसे जुड़ा हुआ है. दबाव की स्थिति में हार जाना एक मानव प्रवृत्ति का हिस्सा है. परन्तु दबाव भी दो प्रकार के होते हैं जो एक वह जो व्यक्ति को भुगतना पड़ता है. यह एक निश्चित लक्ष्य प्राप्त करने का दबाव है. यह सामाजिक, पारिवारिक दबाव, सहकर्मी दबाव या आत्म-उत्पन्न दबाव भी हो सकता है. जबकि दूसरा दबाव वह है जो बड़ी जिम्मेदारी के साथ आता है, जब आप पहले से ही सफल हो. यह एक अत्यंत घातक प्रकार का दबाव है. इसलिए इसे चोकिंग कहा जाता है. यह स्थिति तब होती है जब आप उस रास्ते पर चलने के बजाय उसके बारे में सोचते रहते हैं. अधिक सोचने से तनाव बढ़ता है और यह तनाव आपकी उत्पादकता का शत्रु है. इस मैच में दक्षिण अफ्रीका के साथ भी बिलकुल ऐसा ही हुआ. उस दिन नील मैकेंजी को कैमरे पर स्कोर-चार्ट जैसी वस्तु से देखा गया.
इसका क्या तात्पर्य है? स्पष्ट रूप से. दक्षिण अफ्रीका खिलाडी मुक्त रूप से खेलने के पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय स्कोर के बारे में सोच रहे थे. उनका प्रदर्शन देखने के बाद हम आसानी से ‘विश्लेषण द्वारा पक्षाघात’ के रूप में कह सकते है. यह संपूर्ण परिदृश्य कई बी-स्कूलों के लिए अध्ययन का मामले बन सकता है. इसलिए, यहां समझने योग्य बिंदु यह है कि अत्यधिक सोच विचार करने से बेहतर है कि एक उल्लासपूर्ण रवैया के साथ यात्रा को पूरा किया जाएं. इस अध्ययन का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू तब दिखाई देता है जब ज़िम्मेदारी सामने आती है. हम सभी यह जानते हैं कि सभी कंधे जिम्मेदारी के बोझ को सहने में सक्षम नहीं होते. लेकिन वह क्या है जो इन कंधों को बुरी से बुरी परिस्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त मजबूती देता है. क्या इन लोगो की यह क्षमता ईश्वर-देय है या इन्होने समय के साथ अपने गुणों को बेहतर और कड़ा बनाया हैं. तो, जो उत्तर हमारे सामने आता है वह यह है कि इन लोगों के पास तंत्र है जो दबाव और केंद्र को एक उपमार्ग देता है. वह प्रमुख जो शीर्ष पर पहुंचते हैं और अपनी सर्वोच्चता बनाए रखते हैं, उनमें आत्मसंयम का एक बढ़ा भाग होता है जो कठिनाइयों को आसानी से पार करने में उनकी मदद करता है. व्यवहार में इस तरह के परिवर्तन समय, नम्रता और कमजोरियों, भय और बुरी परिस्थितियों का सामना करने की इच्छा से आते है, जिसे हम में से बहुत से लोग अनदेखा कर जाते है .
मित्रों, हमेशा याद रखें कि जब आप कुछ भी नहीं हैं, तो आपसे उम्मीदें कम की जाती हैं, लेकिन जब आप शिखर पर पहुंच जाते हैं, तो उम्मीदों का भार बढ़ता है. और तब आपके पास गलतियों के लिए कोई जगह नहीं होती .
यही वह समय है जब व्यक्ति की क्षमताओं का असली परीक्षण शुरू होता है.जब आप शीर्ष पर हों तो आपको अपने सच्चे कौशल को दिखाने की ज़रूरत है क्योंकि प्रमुखों ने उन सभी भावी प्रमुखों को प्रेरित किया है जो सभी के अंदर छिपे हुए हैं.
इसके अलावा, आत्म सुधार स्वयं को लगातार एक सफल इंसान के रूप में विकसित करने की कुंजी है.
यही वह समय है जब व्यक्ति की क्षमताओं का असली परीक्षण शुरू होता है.जब आप शीर्ष पर हों तो आपको अपने सच्चे कौशल को दिखाने की ज़रूरत है क्योंकि प्रमुखों ने उन सभी भावी प्रमुखों को प्रेरित किया है जो सभी के अंदर छिपे हुए हैं.
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जैसा कि लेखक, कैथरीन पल्सीफायर ने कहाँ है, “जीवन में सिखने योग्य सबसे अच्छा सबक यह हैं की शांत कैसे रहें.” यह हम सभी के लिए सत्य है. तो, दोस्तों, स्वयं को दिन-प्रतिदिन विकसित कर एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करें. स्वयं पर कार्य करें, बाकी सब कुछ अप्रधान है.
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