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IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी की प्रश्नोतरी

प्रिय पाठको!!

IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी की प्रश्नोतरी | Latest Hindi Banking jobs_2.1

IBPS RRB की अधिसूचना जारी की जा चुकी है. ऐसे में आपकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए हम आपके लिए हिंदी की प्रश्नोतरी लाये है. आपनी तैयारी को तेज करते हुए अपनी सफलता सुनिश्चित कीजिये… 

निर्देश (1-5): निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य-खण्ड के लिए उसके नीचे दिए विकल्पों में से एक शब्द चुनिए : 
Q1. जो शत्रु की हत्या करता है: 
(a) शत्रुघ्न
(b) अजातशत्रु 
(c) निर्दय 
(d) आत्महंता 
(e) इनमें से कोई नहीं

Q2. पुरुष एवं स्त्री का जोड़ा : 
(a) पति-पत्नी 
(b) युग्म
(c)  युगल 
(d) दम्पति 
(e) इनमें से कोई नहीं
Q3. किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा :
(a) अपेक्षित 
(b) अभ्यन्तर 
(c)  अभीप्सा 
(d) अरसिक 
(e) इनमें से कोई नहीं
Q4. शरण पाने की इच्छा रखने वाला :
(a) शरणागत 
(b) शरणदाता 
(c)  शरणाथीं  
(d) शरणास्थल 
(e) इनमें से कोई नहीं
Q5. जिसे कठिनाई से धारण किया जा सके : 
(a) दुभार 
(b) दुर्गम 
(c)  दुर्वह 
(d) दुर्भक्ष
(e) इनमें से कोई नहीं
निर्देश (6-15): नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए. कुछ शब्दों को मोटे अक्षरों में मुद्रित किया गया है, जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी. दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए.
आटा चक्की की बदलती आवाज को पहचानकर गुसांईं घट के अंदर चला गया. खप्पर का अनाज समाप्त हो चुका था. खप्पर में एक कम अन्नवाले थैले को उलटकर उसने अन्न का निकास रोकने के लिए काठ की चिड़ियों को उल्टा कर दिया. वह जल्दी-जल्दी आटे को थैले में भरने लगा. केवल चक्की के ऊपरवाले पाट की घिसटती हुई घरघराहट का हल्का-धीमा संगीत चल रहा था. तभी गुसांईं ने सुना अपनी पीठ के पीछे, घट के द्वार पर, इस संगीत से भी मधुर एक नारी का कंठस्वर, “कब बारी आएगी, जी ? रात की राटी के लिए भी घर में आटा नहीं है.”
सर पर पिसान रखे एक स्त्री उससे यह पूछ रही थी. गुसांईं को उसका स्वर परिचित-सा लगा. चौंककर उसने पीछे मुड़कर देखा. पर गुसांईं उसे ठीक से नहीं देख पाया, लेकिन तब भी उसका मन जैसे आशंकित हो उठा.
घट के छोटे कमरे में चारों ओर पिसे हुए अन्न का चूर्ण फैल रहा था, जो अब तक गुसांईं के पूरे शरीर पर छा गया था. इस कृत्रिम सफेदी के कारण वह वृद्ध-सा दिखाई दे रहा था. स्त्री ने भी उसे नहीं पहचाना. उसने दुबारा वही शब्द दुहराए. इस बार गुसांई न टाल पाया, उत्तर देना ही पड़ा, “यहां पहले की टीला लगा है, जल्दी नहीं होगा.”
स्त्री ने किसी प्रकार की अनुनय-विनय नहीं की. शाम के आटे का प्रबंध करने के लिए वह दूसरी चक्की का सहारा लेने को लौट पड़ी. 
मुड़ते समय स्त्री की एक झलक देखकर गुसांईं को संदेह विश्वास में बदल गया था. उसके अंदर की किसी अज्ञात शक्ति ने जैसे उसे वापस जाती हुई उस स्त्री को बुलाने को बाध्य कर दिया. गुसांईं के अंतर में तीव्र उथल-पुथल मच गई. इस बार आवेग इतना तीव्र था कि वह स्वयं को नही रोक पाया, उसने पुकारा, ”लछमा !“
”मुझे पुकार रहे हैं, जी ?
”हां, ले आ, हो जाएगा ।“
गुसांईं की उदारता के कारण ऋणी-सी होकर उसने निकट आते-आते कहा, “तुम्हारे बाल-बच्चे जीते रहें, घटवारजी ! बड़ा उपकार का काम कर दिया तुमने !
“मायके कब आई ?”
दड़िम की छाया में बैठते हुए लछमा ने शंकित दृष्टि से गुसांईं की ओर देखा. कोसी नदी की सूखी धार अचानक जल-प्लावित होकर बहने लगती, तो भी लछमा को इतना आशचर्य न होता, जितना अपने स्थान से केवल चार कदम की दूरी पर गुसांईं को इस रूप में देखने पर हुआ. विस्मय से आंखें फाड़कर वह उसे देखे जा रही थी, जैसे अब भी उसे विश्वास न हो रहा हो कि जो व्यक्ति उसके सम्मुख बैठा है, वह उसका पूर्व-परिचित गुसांईं ही है.
”तुम ?“ शेष शब्द उसके कंठ में ही रह गए.
“हां, पिछले साल पल्टन से लौट आया था, वक्त काटने के लिए यह घट लगवा लिया.” 
बातों का क्रम बनाए रखने के लिए गुसांई ने पूछा, “तू अभी और कितने दिन मायके ठहरनेवाली है ?” 
अब लछमा के लिए अपने को रोकना असंभव हो गया। टप् – टप् – टप्, वह सर नीचा किए आँसू गिराने लगी. 
इतनी देर बाद सहसा गुसांई का ध्यान लछमा के शरीर की ओर गया. उसके गले में चरेऊ (सुहाग – चिह्न) नहीं था । हतप्रभ-सा गुसांई उसे देखता रहा. अपनी व्यावहारिक अज्ञानता पर उसे बेहद झुंझलाहट हो रही थी. 
गुसांई की सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि पाकर लछमा आंसू पोंछती हुई अपना दुखड़ा रोने लगी, “जिसका भगवान नहीं होता, उसका कोई नहीं होता. जेठ-जेठानी से किसी तरह पिंड छुडाकर यहां मां की बीमारी में आई थी, वह भी मुझे छोड़ कर चली गई. मुझे अभागिन का बस एक छोटा बेटी बचा रह गया है, उसी के लिए जीना पड़ रहा है. नहीं तो पेट पर पत्थर बांधकर कहीं डूब मरती, जंजाल कटता.” 
Q6. इस गद्यांश को साहित्य की किस विधा के अंतर्गत रखा जा सकता है ? 
(a) निबंध 
(b) कहानी 
(c)  पत्र 
(d) प्रबंध काव्य 
(e) इस गद्यांश की विधा निर्धारित नहीं की जा सकती 
Q7. गुसाई वृद्ध की तरह किस वजह से दिखाई दे रहा था ? 
(a) वह नौकरी से ही बूढ़ा होकर लौटा था
(b) वह स्त्री वियोग में बूढ़ा हो गया था 
(c) वह अपना वेश बदल कर रहता था 
(d) अपने खिचड़ी बालों के कारण 
(e) आटे की सफेदी उसके शरीर पर पुत गई थी
Q8. “यहां पहले ही टीला लगा है” से क्या तात्पर्य है ? 
(a) बहुत सा अनाज पिसने के लिए बाकी था
(b) एक पर एक धरी अनाज की बोरियां 
(c) पिसने पर आटे का ढेर 
(d) टीले का सहारा लेकर बैठना आसान होता है 
(e) इनमें से कोई नहीं 
Q9. गद्यांश में एक वाक्यांश है – “गुसांई का संदेह विश्वास में बदल गया था”। उसके इस विश्वास का क्या अभिप्राय है? 
(a) उसे बात करने की तमीज आ गई 
(b) कि सारा आटा वक्त से पिस जाएगा 
(c) वह उस स्त्री को पहचान गया 
(d) वह सबका आटा पीस कर ही घर जा पाएगा 
(e) इनमें से कोई नहीं 
Q10. गद्यांश से लछमा की वैवाहिक स्थिति के बारे में क्या पता चलता है ? 
(a) उसका विवाह होने वाला था 
(b) वह सुहागिन थी 
(c) उसकी सगाई होने वाली थी 
(d) वह अब सुहागिन नहीं रह गई थी 
(e) इनमें से कोई नहीं 
Q11. लछमा अब किसके लिए जी रही है ? 
(a) मां की सेवा के लिए 
(b) जेठ जेठानी के लिए 
(c) गुसांईं के लिए 
(d) वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचती 
(e) अपने बेटे के लिए 
Q12. गद्यांश के अनुसार गुसांईं और लछमा क्या प्रतीत होते हैं ? 
(a) पूर्व-परिचित  
(b) दूर के रिश्तेदार 
(c) ग्राहक और घटवारिन 
(d) खेतीहर किसान 
(e) एक दूसरे से अजनबी
Q13. गुसांईं घटवार बनने से पहले क्या करता था?
(a) पुश्तैनी घटवार था 
(b) पल्टन यानी फौज में था
(c) लछमा को ढूंढता था
(d) दूसरे गांव में रहता था
(e) इनमें से कोई नहीं
Q14. लछमा ने जब गुसांईं को पहचान लिया तो उसे इतना अधिक विस्मय क्यों हुआ?
(a) क्योंकि उसके मन की साध पूरी हो गई
(b) क्योंकि उसकी प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा
(c) क्योंकि गुसांईं के रूप में उसे पुत्र का संरक्षक मिल गया
(d) क्योंकि उसे जीवन में कभी गुसांईं से भेंट होने की उम्मीद नहीं थी
(e) इनमें से कोई नहीं 
Q15. गद्यांश से क्या प्रतीत होता है कि गद्यांश में वर्णित घट, गुसांईं, घटवार और लछमा का यह दृश्य कहां घटित हुआ होगा?
(a) शहर की आटा मिल में
(b) हाट से आस-पास
(c) दूर-दराज के किसी इलाके में स्थित आटा चक्की पर
(d) राह-चलते, मिलते-मिलाते 
(e) इनमें से कोई नहीं
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