मौलिक अधिकार – भारतीय संविधान (Fundamental Rights – Indian Constitution)
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution)
- ‘मौलिक अधिकार’ ऐसे अधिकार अथवा मूल अधिकार होते हैं, जो व्यक्ति के जीवन तथा विकास के लिए अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं। व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य के द्वारा भी मनमाने तौर पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
- “मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन सन् 1979 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा ‘संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 एवं 19 क) को मौलिक अधिकार की सूची से हटा कर इसे संविधान के अनुच्छेद 301 (A) के अंतर्गत क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।“
- मूल अधिकार, प्रजातंत्र का आधार स्तंभ हैं, ये नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक अवसर और सुविधाएं तथा अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में मूल अधिकारों के बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
- भारत के संविधान मौलिक अधिकारों की परिकल्पना, संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान को देखते हुए की गयी है। इसका वर्णन संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक किया गया है। संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र कहा जाता है। इसे मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है।
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मौलिक अधिकारों की सूची (List of Fundamental Rights)
1. समता या समानता का अधिकार – अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 (Right To Equality or Equality – Article 14 to Article 18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 (Right To Freedom – Article 19 to Article 22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24 (Rights Against Exploitation – Article 23 to Article 24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 (Right To Freedom of Religion – Article 25 to Article 28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार – अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30 (Cultural And Educational Rights – Article 29 to Article 30)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अनुच्छेद 32 (Right To Constitutional Remedies – Article 32)
1. समानता का अधिकार (Right To Equality or Equality – Article 14 to Article 18):
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right To Freedom – Article 19 to Article 22):
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- अस्त्र शस्त्र रहित तथा शांति पूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता ।
- समुदाय और संघ निर्माण की स्वतंत्रता ।
- भारत राज्य क्षेत्र में अवाध भ्रमण एवं निवास की स्वतंत्रता।
- वृत्ति आजीविका या व्यवसाय की स्वतंत्रता।
- अपराध की दोषसिद्धि के विषय में संरक्षण।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा जीवन की सुरक्षा।
- बंदीकरण की अवस्था में संरक्षण।
- Article 21 A के अंतर्गत राज्य द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार। इसे मूल अधिकारों के अंतर्गत 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Rights Against Exploitation – Article 23 to Article 24):
- मनुष्य के क्रय विक्रय और बेगार पर रोक: इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषेध ठहराया गया है, जिस का उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है।
- बच्चों की कारखानों, खानों आदि में नौकर रखने का निषेध:14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right To Freedom of Religion – Article 25 to Article 28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural And Educational Rights – Article 29 to Article 30)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right To Constitutional Remedies – Article 32)
- इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्रवाई द्वारा उच्च न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को 5 तरह के रिट निकालने का शक्ति प्रदान की गई है। जो निम्न प्रकार से है
i) बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर ज़ारी किया जाता है, जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करें, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके।
ii) परमादेश (Mandamus)
- परमादेश का लेख उस समय ज़ारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।
iii) प्रतिषेध लेख (Prohibition)
- यह आज्ञा पत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्ध न्यायिक न्यायाधिकरणों को ज़ारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही न करें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
iv) उत्प्रेषण (Certiorari)
- इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वह अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें।
v) अधिकार पृच्छा लेख (Quo-Warranto)
- जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिस के रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता वह कार्य नहीं कर सकता है।
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