प्रिय विद्यार्थीयों आप सभी को धनतेरस की बहुत-बहुत बधाई हो, जैसा कि आप जानते हैं त्योहारों के साथ-साथ परीक्षाओं का मौसम भी चल रहा है. परन्तु आप पढ़ाई में किसी भी तरह ही कोताही न बरतें और त्योहारों को भी जोर शोर से मनाएं!!! अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि यह कैसे संभव है तो विद्यार्थियों हम आपको बता दें कि हर काम को करने के लिए योजनाओं की आवश्यकता होती है जिसे हम टाइम मैनेजमेंट कहते हैं, यदि आप एक योजना के अनुसार चलेंगे तो आपकी दोनों चीज़ें व्यस्थ होंगी और आपको किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
दोस्तों,दिवाली का पर्व एक बहुत हर्षोल्लास वाला, उत्साह से भरा पर्व माना जाता है कहते हैं ना दिवाली आने का अहसास तो उसका मौसम ही दे देता है. आज से बाजारों की रौनक देखते ही बनती है. कहा जाता है कि यदि आपको किसी नए काम की शुरुआत करनी है तो आज से करें, इसलिए विद्यार्थियों हम आप को सलाह देते हैं कि आप सभी अपनी पढ़ाई का समय सुबह में रखें और शाम के समय त्योहारों की तैयारी में जुट जाएं, यकीन मानिए ऐसा करने से आपको काफी सकारात्मकता प्राप्त होगी और आप अगले दिन के लिए दोबारा तैयार हो जाएंगे, आप इन त्योहारों के दिनों पर क्या कुछ नया कर सकते हैं जैसे: आप अपने घर को अच्छे से अच्छा सजाएं, अपनी क्रिएटिविटी को जगाएं.
प्रिय विद्यार्थियों चूँकि में हम भारतीय समाज में रहते हैं इसलिए हमें हमारी सभी परंपराओं के बारे में पता होने चाहिए, जैसा कि आप जानते हिन्दू धर्म में सभी त्योहारों का एक महत्व होता है तथा इसके पीछे मानव हित का उद्देश्य होता है तो आइए जानते हैं कि धनतेरस के बारे में…..
धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी।
कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए।
इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा।
इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
इसी के साथ हम इस लेख को यहीं समाप्त करते हैं और आपको दिवाली सप्ताह की ढ़ेरों बधाइयों देते हैं.