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प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, देने-न देने का फैसला राज्यों पर : सुप्रीम कोर्ट

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State Govts not bound to provide reservation: Supreme Court

पिछले कुछ दिनों में आपने प्रमोशन में आरक्षण या Reservation को लेकर चर्चाएँ सुनी होंगी. इस मुद्दे पर देश की राजनीति में उथल-पुथल मच गई है. वहीँ सरकार का कहना है कि इस  ममले में सरकार का कोई लेना -देना नहीं. इसका फैसला लेना सुप्रीम कोर्ट का काम है.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार के एक फैसले में टिप्पणी करते हुए यह कहा था “सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या न करना राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है”.

देश की शीर्ष अदालत का कहना है कि कुछ समुदाय के प्रतिनिधित्व को लेकर राज्यों को आरक्षण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. कोई भी कोर्ट आरक्षण के लिए राज्य सरकार पर दबाव नहीं डाल सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया कि आरक्षण देने न देने का अधिकार राज्य सरकार के पास है. यह फैसला उत्तराखंड से जुड़े एक मामले में कोर्ट ने दिया  है. उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.

प्रमोशन में रिजर्वेशन की शुरुआत :
प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर पहला  केस 16 नवंबर, 1992 को इंदिरा साहनी के रूप में आया, जिसमें OBC आरक्षण पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST को प्रमोशन में दिए जा  रहे आरक्षण पर सवाल उठाये. जिसके बाद कोर्ट ने इसे  पांच साल के लिए ही लागू रखने का फैसला सुनाया था. लेकिन 1995 में संसद ने 77वां संविधान संशोधन पारित करके प्रमोशन में रिजर्वेशन को जारी रखा गया. तभी से यह मामला विवादों में हैं.

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