आज जन्माष्टमी है, आप सभी को जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं...जिस प्रकार गीता के श्लोक, गीता के उपदेश और गीता का सार पूरे विश्व में ज्ञान फैलाता है, उसी प्रकार हम सभी को श्री कृष्ण द्वारा दिए गये गीता के उपदेशों का अपने जीवन में अनुसरण करना चाहिए.
कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।
गीता के श्लोकों पर हम अमल करने लगे तो, हम अपने जीवन को सार्थक होने के साथ सफल बना सकते हैं…आप श्लोक को पढ़ें, जो हमें अपने जीवन में बिना फल की इच्छा किये बस कर्म करते रहने का उपदेश देता है –
अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
हमारे सामने अनेक बार ऐसे मौके आते हैं , जब हम किसी न किस बात पर क्रोध करना शुरू करना शुरू कर देते हैं, हमारा क्रोध पर काबू नहीं होता, कई बार हमें बहुत बातें कह देने के बाद अपने क्रोध पर पछतावा होता है, गीता में क्रोध को मनुष्य का शत्रु कहा गया है, इस श्लोक को पढ़ें,
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
तो, इस जन्माष्टमी आप भी अपने मन और चित्त को शांत रखने का संकल्प करें और यह भी संकल्प करें कि हमने जो भी लक्ष्य बनाया है, उसे हम धैर्य के साथ आगे ले जाएँ और अपने कर्म में पूरी लगन दिखाएँ, यहीं आपको जीवन में सफलता पाने का रास्ता स्पष्ट होता दिखेगा, और आप अपने अंदर एक नई ऊर्जा की अनुभूति कर सकेंगे…