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Non-cooperation Movement – असहयोग आंदोलन

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Non-cooperation Movement:सत्य और अहिंसा, ये वो हथियार हैं, जिनका उपयोग महात्मा गांधी ने अग्रेजों के खिलाफ प्रयोग किया. स्वतंत्रता प्राप्त करने में इन हथियारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके साथ ही विरोध के नए-नए तरीके भी अपनाए गए. महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया, एक ऐसा ही आंदोलन असहयोग आंदोलन था. भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए, सत्याग्रह के अहिंसक साधनों का उपयोग उन नीतियों और अत्याचारों से लड़ने के लिए किया जाता था. जो भारतीयों पर उन दिनों किये जा रहे  थे. 

क्या कारण था असहयोग आंदोलन शुरू करने का 

1919 में पारित रौलट एक्ट के तहत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाया गया और इसने पुलिस शक्तियों को बढ़ा दिया. यह अधिनियम लॉर्ड चेम्सफोर्ड के वायसराय के कार्यकाल में पारित किया गया था, जिसने सरकार को देश में राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिए शक्ति प्रदान की और इसके साथ ही दो साल तक बिना किसी ट्रायल के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दे दी गई. इस अधिनियम का विरोध पूरे देश में किया गया. 
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. जनरल डायर ने रौलट एक्ट के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्रित हजारों लोगों पर गोलियां चलाईं जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए.जैसा कि उन्होंने बाद में घोषित किया था कि उनका  उद्देश्य,   लोगों पर ‘नैतिक प्रभाव’ पैदा करना था. यह भी एक कारण था जिसकी वजह से असहयोग आन्दोलन शुरू किया गया. 

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प्रथम विश्व युद्ध ने देश में एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का निर्माण किया. रक्षा व्यय में भारी वृद्धि की गई, सीमा शुल्क बढ़ाया गया और आयकर पेश किया गया. 1913 और 1918 के बीच के वर्ष के दौरान कीमतें बढ़कर दोगुनी हो गईं, जिससे आम लोगों के लिए अत्यधिक कठिनाई हुई. भारत के कई हिस्सों में फसल खराब हुई, जिसके परिणामस्वरूप भोजन की भारी कमी हो गई, स्थिति आकाल जैसी हो गई. इस समय एक इन्फ्लूएंजा महामारी भी फ़ैल गई. युद्ध समाप्त होने के बाद भी, लोगों की कठिनाई जारी रही और अंग्रेजों द्वारा कोई मदद नहीं की गई. जिसकी वजह से देश में उनका विरोध करने  का फैसला  लिया गया.

असहयोग आंदोलन में क्या था ख़ास –

  • असहयोग आंदोलन की विशेषता यह थी कि अंग्रेजों की क्रूरताओं के खिलाफ लड़ने के लिए शुरुआत में अहिंसक साधनों को अपनाया गया था.
  • इस आंदोलन को सस्फल बनाने के लिए देश भर में लाखों लोगों ने सरकारी काम छोड़ दिया.  सिविल सेवाओं, सेना, पुलिस, अदालतों, विधान परिषदों और  स्कूलों आदि से देश वासियों ने इस्तीफा दे दिया और क्रांति की आग में वो भी कूद गए. इसके साथ ही विदेशी वस्तुओं का  बहिष्कार किया  गया. 
  • शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया और विदेशी कपड़ो की होली जलाई गयी.
  • मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, सी. राजगोपालाचारी और आसफ अली जैसे कई वकीलों ने अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी, उन्होंने अंग्रेजों के  लिए केस लड़ने बंद कर दिए. 
  • इसका परिणाम यह हुआ की विदेशी कपड़े का आयात 1920 और 1922 के बीच बहुत गिर गया.
  • जैसे-जैसे यह आंदोलन फैलता गया, लोगों ने सभी आयत की जाने वाली वस्तुओं का बहिष्कार किया और  त्यागना शुरू कर दिया और केवल भारतीय वस्तुओं का प्रयोग शुरू कर दिया, जिससे भारतीय कपड़ा मिलों और हैंडलूमों का उत्पादन बढ़ गया.

किन कारणों से यह आन्दोलन वापस लेना पड़ा

असहयोग आंदोलन 1921 तक पूरे जोरों पर था, जिससे समाज के सभी वर्ग आंदोलन में शामिल हो रहे थे. गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे इस आन्दोलन ने अंग्रेजों के शासन प्रणाली की जड़े हिला दी. पर इसी दौरान कुछ ऐसी घटनाएँ हुई जिसकी वजह से गाँधी जी को यह आन्दोलन बीच में ही रोकना पड़ा. 
देश के विभिन्न हिस्सों में इस आन्दोलन के साथ हिंसा भी की गई, जिसमें सबसे बड़ी घटना चौरी चौरा कांड थी. 5 फरवरी 1922 को नाराज किसानों ने यूपी के चौरी चौरा में एक स्थानीय पुलिस स्टेशन पर हमला किया. इस घटना में दो पुलिसकर्मी मारे गए. इस समय किसानों को उकसाया गया क्योंकि पुलिस ने उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोलीबारी की थी. इसके चलते गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया.

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