जानें सिंधु जल संधि क्या है? इसके रद्द होने से पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा
एक नाटकीय बदलाव के तहत, भारत ने 1960 में लागू हुई सिंधु जल संधि (इंडस वॉटर ट्रीटी) को पहली बार निलंबित कर दिया है, जिसके दूरगामी भू-राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं। यह कदम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के एक दिन बाद उठाया गया, जिसमें पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की जान ले ली। यह हमला मुंबई 26/11 के बाद सबसे भीषण नागरिक हमला माना जा रहा है।
इस निर्णय के तहत भारत ने कूटनीतिक और सुरक्षा से जुड़ी कई अहम कार्रवाइयां की हैं, जिनमें अटारी-वाघा सीमा को बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाएं रद्द करना, और भारत में तैनात पाकिस्तानी सैन्य व राजनयिक कर्मियों को निष्कासित करना शामिल है।
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) क्या है?
एक ऐतिहासिक समझौता – 1960 में हस्ताक्षरित
सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता और गारंटी में हस्ताक्षर हुए थे। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली की जल-साझेदारी के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करती है, जिसमें छह प्रमुख नदियाँ शामिल हैं: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज।
नदियों का विभाजन
- पूर्वी नदियाँ: सतलुज, ब्यास, रावी – भारत को पूर्ण उपयोग का अधिकार प्राप्त है।
- पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम, चिनाब – पाकिस्तान को आवंटित, परंतु भारत को सीमित गैर-उपभोग उद्देश्यों (जैसे जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई, नौवहन) हेतु प्रयोग की अनुमति है।
यह संधि 12 अनुच्छेद और 8 परिशिष्ट (A से H) में विभाजित है, जिनमें जल उपयोग अधिकार, तकनीकी मानक और विवाद समाधान प्रक्रिया शामिल हैं।
भारत द्वारा निलंबन का वर्तमान महत्व
भारत द्वारा सिंधु जल संधि का निलंबन इसे सिंधु बेसिन के जल संसाधनों के प्रबंधन में अधिक रणनीतिक लचीलापन देता है। हालांकि इससे पाकिस्तान को जाने वाले जल का प्रवाह तुरंत नहीं रुकता, परंतु यह भारत को पाकिस्तान के निरीक्षण और पहुंच को सीमित करने की अनुमति देता है, खासकर निम्नलिखित परियोजनाओं पर:
- किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (झेलम की सहायक नदी पर)
- रैटल जलविद्युत परियोजना (चिनाब नदी पर)
विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान में भारत के पास जल प्रवाह को पूरी तरह रोकने की अधोसंरचना नहीं है, लेकिन यह एक दीर्घकालिक नीति बदलाव का संकेत है।
कानूनी और कूटनीतिक जटिलताएँ
संधि में कोई एकतरफा बाहर निकलने का प्रावधान नहीं
- संधि की कोई समाप्ति तिथि नहीं है।
- इसमें संशोधन केवल दोनों देशों की सहमति से ही संभव है।
- भारत ने पूर्व में अनुच्छेद XII(3) का हवाला दिया है, जो नई संधि के माध्यम से संशोधन की अनुमति देता है।
विवाद समाधान प्रक्रिया
अनुच्छेद IX के तहत तीन-स्तरीय विवाद निपटान प्रक्रिया:
- स्थायी सिंधु आयोग के माध्यम से द्विपक्षीय बातचीत
- न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास संदर्भ
- अंतरराष्ट्रीय पंचाट (कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन) के माध्यम से समाधान
हालाँकि पाकिस्तान इस प्रक्रिया को सक्रिय कर सकता है, लेकिन यदि भारत सहयोग नहीं करता तो न्यायिक निर्णय की वैधता संदिग्ध हो सकती है।
परियोजनाओं पर जारी विवाद
- किशनगंगा और रैटल परियोजनाओं को लेकर पाकिस्तान का आरोप है कि इनके डिज़ाइन संधि का उल्लंघन करते हैं।
- भारत का तर्क है कि ये “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं हैं, जो जल प्रवाह को नहीं रोकतीं और संधि के अनुरूप हैं।
भारत ने जनवरी 2023 और फिर सितंबर 2024 में संधि संशोधन के लिए औपचारिक नोटिस भेजे थे।
न्यूट्रल एक्सपर्ट की भूमिका
2022 में विश्व बैंक ने मिशेल लीनो को न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त किया।
तीन दौर की बातचीत के बाद:
- पाकिस्तान ने कहा कि मामले एक्सपर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
- भारत ने कहा कि ये तकनीकी मुद्दे संधि में स्पष्ट रूप से शामिल हैं।
जनवरी 2025 में, लीनो ने स्वयं को निर्णय देने के लिए सक्षम घोषित किया — जो विवाद के समाधान की दिशा में एक अहम कदम है।
निलंबन के परिणाम
- भारत को रणनीतिक बढ़त – अब भारत को जल परियोजनाओं पर पाकिस्तान को सूचित करने या सहयोग करने की बाध्यता नहीं रहेगी।
- पाकिस्तान के लिए जल सुरक्षा संकट – पाकिस्तान की कृषि का 80% से अधिक सिंधु जल पर निर्भर है, इसलिए किसी भी बाधा से भारी आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं।
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क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका – यह संधि दशकों तक सहयोग का प्रतीक रही है। इसका निलंबन तनाव को और बढ़ा सकता है, खासकर यदि पाकिस्तान प्रतिशोध या अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की राह अपनाता है।