RBI sells $13 billion in August to hold the rupee at 80 in Hindi: भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये को और गिरने से रोकने के अपने प्रयासों के तहत स्पॉट मार्केट में 13 अरब डॉलर बेच दिए। आरबीआई ने यह कदम विदेशी मुद्रा में गिरावट को देखते हुए उठाया है। फिलहाल रुपया 80 रुपये के आसपास टिका हुआ है। फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में आरबीआई द्वारा करेंसी मार्केट में किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा हस्तक्षेप है। यदि भारत विदेशी निवेश के लिए शीर्ष विकल्प बनना चाहता है तो भारत को स्थिर मुद्रा दर की आवश्यकता है। इसके अलावा, भारत का बतौर एक राष्ट्र के रूप में अब मज़बूत आर्थिक विकास का लक्ष्य है, अतः तेल की बढ़ती कीमतें और घटती मुद्रा देश में मुद्रास्फीति की आशंका पैदा करती है।
रुपये के अवमूल्यन को रोकने के लिए आरबीआई ने 13 अरब डॉलर बेचे (RBI sells $13 billion to prevent the rupee from depreciating)
- 29 अगस्त को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.13 पर आ गया।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये को और गिरने से बचाने के लिए स्पॉट मार्केट में क़रीब 13 अरब डॉलर की बिक्री बेचे हैं।
- यह आरबीआई द्वारा 2022-23 में अब तक का उच्चतम मासिक मुद्रा बाजार हस्तक्षेप है।
- इस सेलिंग के पीछे का कारण रुपये के बेतहाशा उतार-चढ़ाव को रोकना था जो भारत के अमेरिकी डॉलर के स्टॉक को भी ख़त्म कर रहा है।
- 1 डॉलर के मुकाबले 80 रूपये के मनोवैज्ञानिक स्तर के दबाव से बचाने के लिए आरबीआई ने जुलाई के अंत से अपना हस्तक्षेप तेज कर दिया है, क्योंकि यह वास्तविक स्थिति की तुलना में मार्केट में अधिक दहशत पैदा करता है।
- आंतरिक अनुमान दिखाते हैं कि 29 जुलाई से 2 सितंबर के बीच 21 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में से, 7 अरब डॉलर का अवमूल्यन नॉन-डॉलर एसेट्स में हो गया। वहीं, ऐसा माना जा रहा है कि बाकी के 13 अरब डॉलर को स्पॉट मार्केट में बेच दिया गया।
- आरबीआई की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 29 जुलाई से दो सितंबर के बीच लगातार पांच सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 21 अरब डॉलर घटकर 553.1 अरब डॉलर रह गया।
- भारत के अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आता हैं, शेष भाग ग़ैर-डॉलर परिसंपत्तियों (Assets) में निवेश से आता है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों गिर रहा है? (Why rupee is falling against the US dollar?)
- अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष, कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमतें और वैश्विक वित्तीय स्थिति का कड़ा होना अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमज़ोर होने के प्रमुख कारण हैं।
- कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमतों का आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी असर पड़ रहा है।
- Tightening of Monetary Policy (मौद्रिक नीति को कड़ा करना): बढ़ती मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए मौद्रिक नीति को कड़ा करने के आरबीआई के प्रयासों से भी रूपये की क़ीमतें गिरी हैं।
रुपये में गिरावट का किन पर होगा ज्यादा असर? (Who will be more affected by the fall in the rupee?)
- सबसे पहले तो रुपया गिरने से आयात महंगा हो जाएगा, क्योंकि भारतीय आयातकों को अब डॉलर के मुकाबले ज्यादा रुपया खर्च करना पड़ेगा।
- भारत अपनी कुल खपत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है, जो डॉलर महंगा होने और दबाव डालेगा।
- ईंधन महंगा हुआ तो माल ढुलाई की लागत बढ़ जाएगी जिससे रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे और आम आदमी पर महंगाई का बोझ भी और बढ़ जाएगा।
- विदेशों में पढ़ाई करने वालों पर भी इसका असर पड़ेगा और उनका ख़र्च बढ़ जाएगा, क्योंकि अब डॉलर के मुकाबले उन्हें ज्यादा रुपये ख़र्च करने पड़ेंगे।
- चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा, जो पहले ही बहुत ऊपर पहुंच गया है। पिछले साल इस समय में यह 55 अरब डॉलर सरप्लस था।
रुपये के अवमूल्यन से क्यों बचना चाहिए? (Why depreciation of the rupee should be avoided?)
- आयातित मुद्रास्फीति के जोखिम से बचने के लिए (To avoid the risk of imported inflation)- भारत आयात के माध्यम से अपनी घरेलू तेल (कच्चे और खाद्य) आवश्यकताओं पर बहुत अधिक निर्भर है। इस प्रकार रुपये का अवमूल्यन इन वस्तुओं को महंगा कर देगा।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक स्थिर विनिमय दर (stable exchange rate) आवश्यक है।
- व्यवसाय को लाभदायक बनाए रखने और आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों को नियंत्रित करने के लिए रुपये के अवमूल्यन को रोकना चाहिए।