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IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी की प्रश्नोतरी

प्रिय पाठको!!

IBPS RRB 2017 के लिए हिंदी की प्रश्नोतरी | Latest Hindi Banking jobs_2.1

IBPS RRB की अधिसूचना जल्दी ही जारी होने वाली है. ऐसे में आपकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए हम आपके लिए हिंदी की प्रश्नोतरी लाये है. आपनी तैयारी को तेज करते हुए अपनी सफलता सुनिश्चित कीजिये… 

निर्देश(1-5): नीचे दिए गये अनुच्छेद पर पांच प्रश्न दिए गए है. अनुच्छेद का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिये और दिए गए विकल्पों में सही विकल्प का चयन कीजिये 
व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत्, चित् और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है. शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला. हम जीते हैं समाज में, अतः शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज. इस प्रकार शिक्षा और समाज का परस्पर घनिष्ठ सम्बंध है. शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं. आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है. यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्याताओं का स्खलन हो रहा है. सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है. आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है.

हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताएँ हमारे मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं. आज शिक्षा का महत्त्व केवल पुस्तकीय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है. यह शैक्षिक-प्रक्रिया केवल मशीनीकरण का पर्याय न बने और व्यावहारिक सद्शिक्षा का स्वरूप विकसित हो इसके लिए अपेक्षित है कि नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाय अन्यथा समाज में अपराध प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती रहेगी. यदि हम जीवन में सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं तो भौतिक प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रगति को भी जागरूक बनाये रखना आवश्यक है. आज विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता, निराशा एवं हतोत्साह के प्रमुख कारण मानसिक एवं आध्यात्मिक अनुशासन का अभाव है. अतएव विद्यार्थियों में प्रारम्भ से ही चरित्र-निर्माण और देशभक्ति की भावना जाग्रत करने के लिए उनमें दृढ़ संस्कारों का निर्माण करने के लिए नैतिक शिक्षा देना अतिआवश्यक है. नैतिक शिक्षा के बिना स्वस्थ समाज की कल्पना असम्भव है. 
1. समाज में शिक्षण-संस्थाएँ इसलिए महत्व रखती हैं, क्योंकि शिक्षण- 
(a) संस्थाओं से ही शिक्षा की गुणात्मकता का बोध होता है 
(b) संस्थाएँ शिक्षार्थियों को उपाधि-पत्र प्रदान करती हैं 
(c) संस्थाओं में ही शिक्षार्थी पढ़-लिख कर होनहार बनते हैं 
(d) संस्थाओं से ही भावी नागरिक ढलकर निकलती हैं 
(e) इनमें से कोई नहीं 
2. हमारी सामाजिक मान्यताओं के विघटन का प्रमुख कारण है-
(a) नैतिक शिक्षा का अभाव 
(b) वैज्ञानिक शिक्षा का अभाव 
(c) अध्यात्मिक शिक्षा का अभाव 
(d) सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अभाव 
(e) इनमें से कोई नहीं 
3. नैतिक शिक्षा से समाज को लाभ होगा-
(a) छात्रों के चरित्र-संस्कार के अभाव का  
(b) छात्रों के समन्वित चरित्र के निर्माण का  
(c) छात्रों में धार्मिक जानकारी का 
(d) संघर्ष की प्रवृत्ति के विकास का 
(e) इनमें से कोई नहीं 
4. उपर्युक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक है-
(a) जीने की कला 
(b) शिक्षा का अर्थ 
(c) शिक्षा और शिक्षण-संस्थाएँ
(d) नैतिक शिक्षा की उपयोगिता 
(e) इनमें से कोई नहीं 
5. शिक्षा का अभिप्राय है-
(a) जिन्दगी में कुछ बनने की कला 
(b) धनार्जन की कला 
(c) जीना सीखने की कला 
(d) सभ्य बनने की कला 
(e) इनमें से कोई नहीं 
निर्देश(6-10): नीचे दिए गये अनुच्छेद पर पांच प्रश्न दिए गए है. अनुच्छेद का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिये और दिए गए विकल्पों में सही विकल्प का चयन कीजिये
विचार-विनिमय के लिए केवल मनुष्य को ही वाणी का वरदान प्राप्त है. पशु-पक्षी आपने भाव और विचार शारीरिक मुद्राओं और संकेतों द्वारा प्रकट करते हैं. वाणी के अनेक रूप हैं जो भाषा या बोली कहलाते हैं. प्रायः सभी स्वतंत्र देशों की अपनी-अपनी भाषाएँ हैं. उनके साथ स्थानीय बोलियाँ भी हैं जो भाषा का ही प्रादेशिक रूप हैं. सबसे अधिक सुगम, सरल और स्वाभाविक भाषा मातृभाषा कहलाती है. यह बालक को जन्मजात संस्कार से मिलती है। अन्य भाषाएँ अर्जित भाषाएँ होती हैं जो अभ्यास द्वारा सीखी जाती हैं. अपने घर- परिवार, वर्ग, जाति और देश के मध्य विचार-विनिमय के लिए सबसे सरल भाषा मातृभाषा ही है. अपनी मातृभाषा द्वारा जितनी सहजता से भाव व्यक्त किया जा सकता है वैसा सहज-सामर्थ्य किसी अन्य अर्जित भाषा में नहीं होता. राष्ट्र की एकता और पारस्परिक विचार-विनिमय की सुविधा के लिए राष्ट्रभाषा की आवश्यकता में किसी को भी संदेह नहीं हो सकता. सभी राष्ट्र अपनी राष्ट्रभाषा को सम्मान देते और व्यवहार में लाते हैं. स्वतंत्र भारत में भी हमें अपने राष्ट्र की भाषओं को अपनाना चाहिए. राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के लिए यह आवश्यकता है. 
6. राष्ट्रभाषा का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि वह- 
(a) राष्ट्र को खंडित करने में सहायक होती है  
(b) राष्ट्रीय एकता की द्योतक है  
(c) राष्ट्रीय शक्तियों को दृढ करती है 
(d) जातीय विकास में सहायक है
(e) इनमें से कोई नहीं 
7. राष्ट्र का गोरव सुरक्षित रह सकता है- 
(a) भाषायी विवादों को प्रश्रय देने से 
(b) विदेशी भाषाओं को अपनाने से 
(c) स्व-भाषाओं को ग्रहण करने से 
(d) राष्ट्रभाषा को विरोध करने से 
(e) इनमें से कोई नहीं 
8. भाषा द्वारा भावाभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं-
(a) चहचहाते पक्षी  
(b) वाणी का वरदान प्राप्त मनुष्य 
(c) कलकल बहता पानी
(d) विभिन्न प्रकार के पशु 
(e) इनमें से कोई नहीं 
9. मातृभाषा वह भाषारूप है जो-
(a) सर्वाधिक ग्राह्य, लचीला और स्वाभाविक है  
(b) कठोर, निरर्थक और दुरूह है 
(c) मस्तिष्ट का विकास अवरूद्ध करता है
(d) ज्ञान-क्षेत्र को सीमित करता है
(e) इनमें से कोई नहीं 
10. मातृभाषा की हमें आवश्यकता होती है क्योंकि वह- 
(a) धनोपार्जन में सहायक होती है
(b) भावाभिव्यक्ति का सहज साधन है 
(c) शारीरिक मुद्राओं और संकेतों का दर्पण है 
(d) ज्ञान-क्षेत्र का संकुचन करती है 
(e) इनमें से कोई नहीं 
निर्देश(11-15): नीचे दिए गये अनुच्छेद पर पांच प्रश्न दिए गए है. अनुच्छेद का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिये और दिए गए विकल्पों में सही विकल्प का चयन कीजिये
कबीर ने समाज में रहकर समाज का बड़े समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडम्बर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ़ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके. कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी. इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगने वालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान् आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धान्तों का निरूपण किया. कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया. कर्मकाण्ड तथा मूर्तिपूजा का विरोध किया. अपनी साखियों, रमैनियों तथा सबदों को बोलचाल की भाषा में रचकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला. इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी की एकता पर बल दिया. वे महान् युगद्रष्टा, समाज-सुधारक तथा महान् कवि थे. उन्होंने हिन्दू, मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की. 
11. कबीर के सामने कोई नहीं टिक पाता था, क्योंकि कबीर-  
(a) उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान् और बहुश्रुत थे 
(b) शास्त्रार्थ में अत्यन्त प्रवीण थे 
(c) का व्यक्तित्व बहुत ऊँचा था 
(d) का सामाजिक निरीक्षण तथ्यात्मक था 
(e) इनमें से कोई नहीं 
12. कबीर ने विरोध किया-
(a) आचरणहीन ढोंगियों का 
(b) शोषकों और दलितों का 
(c) साम्प्रदायिक सामंजस्य का 
(d) शोषितों और पीड़ितों का 
(e) इनमें से कोई नहीं 
13. सन्त कबीर ने प्रशस्त किया-
(a) ज्ञानमार्ग 
(b) भक्तिमार्ग 
(c) वेद-मार्ग 
(d) सत्य और अहिंसा का मार्ग 
(e) इनमें से कोई नहीं 
14. कबीर की रचनाओं की भाषा बोलचाल की भाषा थी, क्योंकि उनके उपदेश थे- 
(a) असाधारण और असामान्य लोगों के लिए 
(b) सम्पन्न एवं समृद्ध लोगों के लिए 
(c) कवियों एवं लेखकों के लिए 
(d) सर्वसाधारण के लिए 
(e) इनमें से कोई नहीं 
15. कबीर के साम्प्रदायिकता विरोधी तर्क अकाट्य थे, क्योंकि-
(a) कबीर ने समाज का निरीक्षण बडे़ समीप से किया था 
(b) उनके तर्क पुष्ट प्रमाणों पर आधारित थे 
(c) वे इनसे व्यक्तिगत लाभ उठाना चाहते थे 
(d) वे इनसे यशोपार्जन करना चाहते थे
(e) इनमें से कोई नहीं 

CRACK IBPS PO 2017



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9 out of every 10 candidates selected in IBPS PO last year opted for Adda247 Online Test Series.

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