वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में कराधान क़ानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया है। यह क़ानून, भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर कर लगाने हेतु 2012 के पूर्वव्यापी क़ानून का उपयोग करके की गई कर की मांगों को वापस लेने का प्रयास करता है।
आयकर अधिनियम, 1961 और वित्त अधिनियम, 2012 के संशोधन करने के लिए इस विधेयक को पेश किया गया है। इस अलोकप्रिय कर नीति, जिसे पहली बार 2012 के बजट में पेश किया गया था, ने निवेश के माहौल को कम कर दिया था तथा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मुकदमेबाजी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुड़े मध्यस्थता को जन्म दिया था, जैसे वोडाफोन और केयर्न का मामला। इन मामलों में भुगतान की गई राशि को बिना किसी ब्याज के वापस करने का भी प्रस्ताव है। इस विधेयक का ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी और वोडाफोन ग्रुप के साथ लंबे समय से चल रहे कर विवादों से सीधा संबंध है।
इस विधेयक का उद्देश्य आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करना है ताकि यह प्रावधान किया जा सके कि यदि लेनदेन 28 मई, 2012 से पहले किया गया है तो भारतीय संपत्ति के किसी भी अप्रत्यक्ष हस्तांतरण के लिए उक्त पूर्वव्यापी संशोधन के आधार पर भविष्य में कोई कर मांग नहीं उठाई जाएगी।
सर्वाधिक विवादास्पद वैश्विक कर विवाद (Most controversial global tax dispute): वर्ष 2007 में वोडाफोन कंपनी द्वारा हच कंपनी की भारतीय संपत्ति के अधिग्रहण पर भारतीय राजस्व अधिकारियों द्वारा 40,000 करोड़ रुपये के एक पूर्वव्यापी कर बिल का दावा किया गया था, जिसमें कथित कर, देनदारी, दंड और ब्याज शामिल है। इस मामले को व्यापक रूप से सीमा पार सौदे पर सबसे विवादास्पद वैश्विक कर विवादों में से एक माना जाता है।
विवाद की समय सीमा (Time Line of controversy):
वर्ष 2012 में, निचली अदालतों में हुए आवेगपूर्ण मुकदमों की संख्या ने सर्वोच्च न्यायालय को कार्रवाई करने के लिए मज़बूर किया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले बताया कि कर विभाग के पास दो ग़ैर-निवासी कंपनियों के बीच एक विदेशी कंपनी के शेयरों के हस्तांतरण के लिए वोडाफोन पर दायित्वों को लागू करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था।
फिर अचानक एक ऐसा दौर आया जिसने वैश्विक कर समुदाय को झकझोर कर रख दिया।
उसी वर्ष वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा घोषित बजट के हिस्से के रूप में भारतीय संसद ने आगे बढ़कर आयकर अधिनियम में पूर्वव्यापी संशोधन पेश किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने निष्प्रभावी कर दिया।
इस संशोधन ने कई संस्थाओं को प्रभावित किया था जो सीमा पार लेनदेन में शामिल थीं, जैसे कि वोडाफोन।
कर की मांगों की वापसी को लेकर प्रतिक्रिया (Response of withdrawal tax demands):
जैसा कि सरकार ने पूर्वव्यापी क़ानून का उपयोग करके, कर की मांगों को वापस लेने के लिए संशोधन किया है, कई कर विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। जबकि कुछ का कहना है कि यह बहुत ज़रूरी राहत प्रदान करेगा और मुकदमेबाजी को समाप्त करेगा और यह स्पष्ट रूप से भारत की निवेशक-अनुकूल छवि को बढ़ाने के लिए सरकार की मंशा को इंगित करेगा। यह निवेश को आकर्षित करेगा और देश में तेजी से आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देगा।


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