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Plasma therapy – अब प्लाज्मा थेरपी से होगा कोरोना का इलाज, जाने क्या है प्लाज्मा थेरपी

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Plasma therapy

इस समय जब पूरी दुनिया कोरोना से परेशान है और उसका इलाज ढूढ़ने में लगी हुई है, ऐसे में भारत को बढ़ी सफलता प्राप्त हुई है, भारत में पिछले सप्ताह से प्लाज्मा थेरपी (Plasma therapy) के माध्यम से इलाज की बात सामने आ रही थी. कल दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द अरविंद केजरीवाल (Chief Minister of Delhi Arvind Kejriwal) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि दिल्ली सरकार ने नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में 4 मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल किया, जिसके हमें सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. दिल्ली के CM ने बताया कि केंद्र से मंजूरी के बाद सबसे सीरियस मरीजों का इलाज इस थेरपी के माध्यम से किया गया, जिसमें हमें सफलता मिली है. LNJP होस्पिटल में 4 लोगों पर किये गए इस ट्रायल के नतीजे बहुत अच्छे हैं. हालाकि अभी भी इसे कोरोना का उचित उपचार माना जाना सही नहीं है. क्योंकि अभी यह केवल शुरूआती नतीजें हैं.
COVID 19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग बस दिल्ली में ही नहीं हो रहा है, इसका दुनिया के कई अन्य देशों में भी  इस्तेमाल किया जा रहा है. दुनिया भर में प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की और चीन समेत कई देशों में हो रहा है. प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल सबसे पहले चीन ने कोरोना वायरस मामले में किया था, जिसके सकारात्मक रिजल्ट आये थे.
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क्या हैं ब्लड प्लाज्मा थेरपी

यह एक ऐसी थेरिपी है जिसमें किसी बिमारी के इलाज के लिए, उन लोगों के खून का इस्तेमाल किया जाता है जो उस इलाज के माध्यम से उस बिमारी से ठीक हो चुके हैं. अर्थात कोरोना वयारस से संक्रमित लोगों  का इलाज, उनके खून से होगा जो कोरोना वायरस से कभी सक्रमित थे पर अब ठीक हो चुके हैं. असल में कोरोना की कोई मेडिसिन नहीं बन पाई है ऐसे जो लोग मानव शरीर में बनने वाले ऐंटीबॉडी की वजह से ठीक हो रहे हैं. इन्हीं  ऐंटीबॉडी को लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 मरीजों के इलाज में किया जायेगा.

प्लाज्मा थेरपी का इतिहास 

असल में यह थेरिपी 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है. इसका प्रयोग 1918 के फ्लू, चेचक, निमोनिया और अन्य कई तरह के संक्रमण के किया जा चुका है. 2002 में इसका प्रयोग सार्स (SARS, Severe Acute Respiratory Syndrome) नामक वायरस के इलाज में किया  गया था, जिसने कई देशों को प्रभावित किया था. वर्ष 2009 में H-1N-1 के इंफेक्शन को रोकने के लिए भी प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किया गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2014 में इबोला जैसे खतरनाक वायरस के खिलाफ़ Plasma therapy के इस्तेमाल को अनुमति दी थी, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले थे. इसके साथ ही वर्ष 2015 में मर्स (Middle East respiratory syndrome) का इलाज करने के लिए भी इसी थेरपी का प्रयोग किया गया था.

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