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World Menstrual Hygiene Day 2020 : मेन्स्ट्रुअल हाईजीन डे, 28 मई

World Menstrual Hygiene Day 2020

World Menstrual Hygiene Day 2020: Date, Theme, Significance, and Quotes for the Occasion

दुनिया भर में हर साल 28 मई को मेन्स्ट्रुअल हाईजीन डे (World Menstrual Hygiene Day) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य मेन्स्ट्रुअल हाईजीन (माहवारी के समय में स्वच्छता) के प्रति जागरुकता फैलाना है. यह  दिन जर्मनी की एक NGO कंपनी वॉश युनाइटेड (Wash United) द्वारा 2014 में पहली बार मनाया गया था. और उस समय भी इस दिन को मनाये जाने का उद्देश्य दुनियाभर की महिलाओं और लड़कियों को अपनी मेन्स्ट्रुअल हाईजीन के बारे में जागरुक करना था; क्योंकि,  मासिक धर्म के ये चार दिन महिलाओं के लिए बेहद पीड़ादायी  और परेशानी से भरे होते हैं.
महिलाओं की जिंदगी में मासिक धर्म की प्रक्रिया अहम हिस्सा है. हर माह में महिलाओं को दो से सात दिन की इस साइकिल से गुजरना पड़ता है, जिसमें उसे दर्द, परेशानी, मूड स्विंग्स भी झेलने पड़ते हैं,  इस हिसाब से देखा जाए, तो एक महिला को अपने जीवनकाल में करीब 3000 दिन तक इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. 
आज के इस मौके पर UNICEF ने भी अपने एक tweet में कहा है, “Periods don’t stop for pandemics – it’s every girl’s right to manage her period safely and with dignity. #MenstruationMatters #MHDay2020 (sic).”

 क्या आपको पता है कि World Menstrual Hygiene Day के लिए 28 तारीख को ही क्यों चुना गया??
इस दिन के लिए 28 तारीख को चुने जाने के पीछे का कारण  है-  आम तौर पर महिलाओं के शरीर में 28 दिनों का चक्र होता है इसी बीच में उन्हें पीरियड्स होते हैं. 28 दिनों के इसी मेन्स्ट्रुअल साइकिल को हाइलाइट करते हुए इस डे के लिए 28 मई को तय किया गया.
World Menstrual Hygiene Day 2020 theme is ‘Periods in Pandemic’. The idea behind choosing this theme is to highlight how the challenges faced by women during menstruation have worsened due to the ongoing pandemic.


पीरियड्स और महिलाओं का जीवन : 
खासकर भारतीय समाज की बात की जाए, तो लड़कियों को, महिलाओं को जब पीरियड्स होते हैं, तो कुछ विशेष समाजों में उन्हें अछूत माना जाता है, उन्हें कुछ छूने से मना कर दिया जाता है, वहीँ दूसरी ओर गरीब परिवारों की लड़कियां व महिलाएं आम तौर पर अपने मेन्स्ट्रुअल हेल्थ को लेकर ज्यादा जागरुक नहीं हैं उनके पास ज्यादा साधन भी नहीं होते हैं और ना ही उनकी सामाजिक परिस्थिति ऐसी होती है कि वे इस बारे में खुल कर अपनी परेशानी को व्यक्त कर सकें. 
इस दुनिया की आधी आबादी यानी महिलाओं को अपने पूरे जीवन में हर मोड़ पर किसी न किसी समस्या का सामना करना पड़ता है, चाहे फिर वह समाज में बराबरी का हिस्सा न मिलने की बात हो या घर में! एक महिला का खुद का शरीर भी उसे खुलकर जीने की इजाज़त नही देता. हाँ यह सच है कि एक लड़की को, एक महिला के कष्टों को हमेशा अनदेखा किया जाता रहा है, उसे तमाम परेशानियों में भी घर, परिवार, समाज और न जाने कितनी ऐसी भूमिकाओं को निभाना पड़ता है, जिनमें उसे आराम करना चाहिए, उसे पति कहें या घर, थोड़ा दुलार चाहिए ….         
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