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जानिये इतिहास : भारत छोड़ो आंदोलन | 77वीं वर्षगांठ

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आइए इतिहास के पन्नों पर  8 अगस्त को करीब से देखें :

इतिहास को हमेशा समय-समय पर साझा किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को उन घटनाओं के बारे में पता चल सके, जिनके कारण आज वे स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं. भारतीय इतिहास में बहुत सी ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जो हमारे महान नेताओं के संघर्ष और लड़ाई को व्यक्त करती हैं, जो कि उन चीज़ों के लिए थीं जो कानूनन हमारी थी. भारत को स्वतंत्रा एक दिन में प्राप्त नहीं हुई थी. यह वर्षों तक निरंतर क्रांति, जीवन और संपत्ति के बलिदान के कारण संभव हो पाया. इसमें से एक ऐसी ही घटना या आंदोलन के ऊपर आज हम चर्चा करेंगे जो है “भारत छोड़ो आंदोलन”. आइये इस से जुडी कुछ बातों पर चर्चा करें.

8 अगस्त 1942 को, ब्रिटिशों के नियमों की अवहेलना करते हुए, महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बॉम्बे(मुंबई) सत्र में आंदोलन की शुरुआत की. इसे अन्य नाम से “अगस्त आंदोलन” के रूप में भी जाना जाता है.

भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के तुरंत बाद:

जैसे ही गांधी जी ने आंदोलन घोषणा की उसके तुरंत बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिसमें ब्रिटिशों के भारत से वापस जाने की मांग की जाने लगी. अपने महान भाषण करो या मरो” में उन्होंने घोषणा की “हर भारतीय जो स्वतंत्रता की इच्छा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है वह खुद अपना मार्गदर्शक होना चाहिए …” “हर भारतीय खुद को एक स्वतंत्र व्यक्ति मानता है”. यह वे शब्द थे जिन्होंने प्रत्येक  भारतीय नागरिक को उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया.
17 अक्टूबर 1939, वायसराय ने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए अपने कारण की घोषणा की, जो विश्व शांति की बहाली के लिए था. अपने बयान में, उन्होंने वादा किया कि युद्ध खत्म होने के बाद, 1935 के अधिनियम में संशोधन किया जाएगा और एक “फेडरेशन ऑफ इंडिया” की स्थापना के लिए प्रावधान किया जाएगा, जिसे कुछ रियासतों और ब्रिटिश इंडिया द्वारा मिलकर बनाया जाना चाहिए था.

कौन किसका समर्थन कर रहा था?

युद्ध में व्यस्तता के बावजूद, अंग्रेज विद्रोह के लिए तैयार थे और महात्मा गांधी के भाषण के कुछ ही घंटों के भीतर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और अगले तीन वर्षों के लिए जेल में डाल दिया गया. जिस कारण से अंग्रेजों का इतना दबदबा था, वह वायसराय की परिषद, कम्युनिस्ट पार्टी, मुस्लिमों, रियासतों और अधिकांश भारतीय व्यापारियों का समर्थन था, जो युद्धकालीन खर्च से लाभान्वित हो रहे थे.

हमारे देश के एकमात्र समर्थक अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट थे, जो ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल पर लगातार दबाव बना रहे थे कि वे कम से कम कुछ मांगों पर भारतीयों से सहमत हों, लेकिन अंग्रेजों ने हर आह्वान का खंडन किया और युद्ध खत्म होने तक सब कुछ टाल दिया.

भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम:

गांधीजी ने हमेशा अहिंसा के मंत्र का जाप किया, लेकिन उनकी निरंतर अपील के बावजूद, देश छोटे पैमाने पर हिंसा में लिप्त था, जिसके कारण अंततः हजारों विद्रोही नेताओं की गिरफ्तारी हुई. कुछ सरकारी कार्यालयों को जला दिया गया और कुछ स्थानों पर बम विस्फोट किए गए. ब्रिटिश लोगों ने गिरफ्तारियों के अलावा, सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया, प्रेस की स्वतंत्रता और भाषण की स्वतंत्रता को छीन लिया.

अंग्रेजों ने युद्ध खत्म होने तक दुनिया से कांग्रेस के नेतृत्व के संपर्क को काटने का फैसला किया. गांधीजी जेल में थे, फिर भी ब्रिटिश शासन का विरोध करते हुए 21 दिन के उपवास पर रहे. और इसके बाद की घटनाओं की श्रृंखला शुरू हुई, गांधीजी की पत्नी और उनके निजी सहायक महादेव देसाई की मृत्यु हो गई और उनका अपना स्वास्थ्य ठीक नहीं था. हालांकि वह अपने बीमार स्वास्थ्य के कारण रिहा हो गए थे, उन्होंने जेल में बंद कांग्रेस के सभी नेताओं की रिहाई की मांग करते हुए अपना विरोध जारी रखा.

अंग्रेजों को कठोर वास्तविकता का एहसास हुआ:

लेकिन एक बात स्पष्ट थी, इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की आँखे खोल दी और उन्हें यह ज्ञात हुआ कि इस राष्ट्र में अधिक समय तक राज करना संभव नहीं है और अब प्रश्न यह था की इस देश को शांति और संपन्नता के साथ कैसे छोड़ा जाए.

यह आंदोलन भले ही विफल रहा हो लेकिन यह इस बात का स्मारक है कि किस प्रकार हम सभी भारतीय अपने देश की आज़ादी के लिए लड़ते रहे. तो, आइये अपना थोडा सा समय निकाल कर उन सभी महान व्यक्तियों को याद करें जिनके बलिदानों और समर्पण के कारण आज हम एक आज़ाद देश के निवासी हैं.

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