National Nutrition Week 2022 in Hindi: राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week (NNW)) पूरे देश में प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहत्तर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास, उत्पादकता, आर्थिक विकास और अंततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है। यह भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया वार्षिक पोषण कार्यक्रम है।
प्रत्येक वर्ष स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा 1 सितंबर से 7 सितंबर तक ‘राष्ट्रीय पोषण सप्ताह’ (National Nutrition Week) मनाया जाता है। इस अवधि के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा और उनकी बेहतरी में उचित पोषण के महत्व के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के लिए एक सप्ताह का अभियान चलाया जाता है।
इतिहास (History)
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह सर्वप्रथम मार्च 1975 में अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन (American Dietetic Association (ADA)), जिसे वर्तमान में एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स (Academy of Nutrition and Dietetics) के नाम से जानते हैं, के सदस्यों द्वारा पोषण शिक्षा की आवश्यकता के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ आहार विशेषज्ञों के पेशे को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। जनता की प्रतिक्रिया इतनी सकारात्मक थी कि सप्ताह भर चलने वाले उत्सव को वर्ष 1980 में एक महीने तक चलाया गया था।
इसके बाद वर्ष 1982 में भारत वर्ष ने इस नई विधा को अपनाया और प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह शुरू करने का निर्णय लिया। यह अभियान लोगों को पोषण के महत्व के बारे में शिक्षित करने और उन्हें एक स्वस्थ और अच्छी जीवन शैली जीने का आग्रह करने के लिए बनाया गया था।
Note:
1. स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2019 के मुताबिक, दुनिया में 5 साल से कम उम्र के क़रीब 70 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हुए।
2. साल 2017 में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत को कुपोषण मुक्त बनाना था।
3. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट 2017 के अनुसार, क़रीब 5 साल तक के बच्चों की मौत की सबसे बड़ी वजह कुपोषण रही है।
महत्त्व (Significance)
कहा जाता है कि ‘एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ दिमाग़ निवास करता है’। पोषण हमारे दैनिक जीवन का सबसे अहम हिस्सा होता है। पोषणयुक्त आहार प्राप्त करना न केवल वर्तमान पीढ़ी का अधिकार है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास का भी मुद्दा है।
पोषणयुक्त आहार न मिल पाने के कारण न केवल कम उम्र के बच्चों में मधुमेह एवं हृदय रोग जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं बल्कि उनमें रोगों से प्रतिरक्षा करने की क्षमता का भी ह्रास होता है। परिणामतः कुपोषित बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, जिसका प्रभाव इनके साथ-साथ देश के भविष्य पर भी पड़ता है। परिणामतः कुपोषित बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, जिसका प्रभाव इनके साथ-साथ देश के भविष्य पर भी पड़ता है।
लोगों को इस बारे में शिक्षित करने के लिए, भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय एक सप्ताह तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का आयोजन करता है। यह मानव शरीर में उचित पोषण के महत्व और कार्य पर ज़ोर देता है। उचित कामकाज और विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार महत्वपूर्ण है। भारत सरकार ने पोषण, सभ्य भोजन, स्वस्थ शरीर, मन और जीवन शैली पर केंद्रित पहल शुरू की है।
थीम/विषय (Theme)
हर साल राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाते हुए, भारत सरकार एक विशिष्ट थीम/विषय भी लॉन्च करती है जिसमें वह उस वर्ष के विशिष्ट थीम/विषय के बारे में अधिक ध्यान केंद्रित करती है।
वर्ष 2021 के राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का विषय है “शुरू से ही स्मार्ट तरीके से खाएं” (feeding smart right from start)। सरकार ने सेमिनारों और शिविरों के माध्यम से सही जानकारी प्रदान करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक कार्यक्रम स्थापित किया है। ये भारत के प्रत्येक बच्चे और नागरिक को यह ज्ञान प्रदान करने में मदद करते हैं कि बच्चे जन्म से ही एक अच्छे पोषण आहार से कैसे लाभान्वित हो सकते हैं।
वर्ष 2022 में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का थीम अभी तक भारत सरकार द्वारा घोषित नहीं किया गया है और इसलिए अभी हमने इसका उल्लेख नहीं किया है। लेकिन जैसे ही भारत सरकार द्वारा इसकी घोषणा की जाएगी हम इसके बारे में अपडेट कर देंगे।
स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2021
‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2021; ऑन माय माइंड: प्रोमोटिंग, प्रोटेक्टिव एंड केयरिंग फॉर चिल्ड्रनस मेंटल हेल्थ’ (The State of the World’s Children 2021; On My Mind: promoting, protecting and caring for children’s mental health) शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड-19 के प्रभाव पर प्रकाश डालती है।
- रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में 15 से 24 साल के लगभग 15% या 7 में से 1 ने अक्सर खुद को अवसादग्रस्त महसूस किया या चीजों को करने में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई।
- यूनिसेफ के सर्वेक्षण में, 21 देशों में औसतन 83% की तुलना में भारत में केवल 41% युवा ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सहायता लेने के इच्छुक थे।
- 2020-2021 के दौरान भारत में कक्षा 6 तक के 286 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर हो गए थे; केवल 60% की ही डिजिटल शिक्षा तक पहुँच थी।
- 2019 में ‘इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री’ के अनुसार, महामारी से पहले भी, भारत में कम से कम 50 मिलियन बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्या से प्रभावित थे; 80 – 90% ने किसी प्रकार की सहायता नहीं ली।
- इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री 2017 के अनुसार, भारत ने सालाना अपने स्वास्थ्य बजट का केवल 0.05% ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया है।