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International Women’s Day Special 2021 : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? और कब से इसे मनाने की शुरुआत हुई?

International Women's Day Special 2021 : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? और कब से इसे मनाने की शुरुआत हुई? | Latest Hindi Banking jobs_2.1
 International Women’s Day Special 

International Women’s Day: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, हर साल 8 मार्च को दुनिया भर में महिलाओं की ऐतिहासिक यात्रा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जिसे दुनिया भर की महिलाओं ने अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए शुरू की है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि महिलाओं के बेहतर भविष्य के लिए अब तक जो भी कुछ हासिल किया गया है, वो सिर्फ एक लम्बी यात्रा का एक छोटा-सा हिस्सा है।


लगभग एक सदी से मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर कई लोगों के मन में ये सवाल है कि इसे केवल नारीवाद (feminism) की वजह से मनाया जाता है जबकि हक़ीक़त में इसकी शुरुआत 1911 में हुई थी जब जर्मनी की मार्क्सवादी महिला नेता क्लारा ज़ेटकिन ने मजदूर आंदोलन के समय इसे आयोजित किया था। वो पेशे से एक शिक्षक थीं। वर्ष 1911 तथा 1912 में ये दिवस 28 फ़रवरी को मनाया गया और 1913 में इसकी तिथि को बदल के 8 मार्च कर दिया गया।


Theme of  International Women’s Day 2021

इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम, “Women in leadership: Achieving an equal future in a COVID-19 world” हैं, जो COVID-19 महामारी से अधिक समान भविष्य और रिकवरी को आकार देने में दुनिया भर की महिलाओं और लड़कियों द्वारा किए गए जबरदस्त प्रयासों को चिन्हित करने पर केन्द्रित है।

महिलाओं की ज़रूरत हमें इस दुनिया में आने से पहले से ही होती है पर समाज के दकियानूसी रिवाज़ों में पड़ के हम महिलाओं के सपनों का गला घोंट देते हैं। आज महिलाएँ हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं लेकिन फिर भी आज अधिकतर महिलाओं को उन तथाकथित नियमों में बाँध के रखा गया है जिन्हें उनकी सुरक्षा के लिए माना जाता है। हम यहाँ भारतीय महिलाओं से संबंधित कुछ आँकड़े बता रहे हैं-

  • वर्ष 2011-19 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी 35.8% से घटकर 26.4% ही रह गई.
  • कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगभग 60% है परंतु इनमें से अधिकांश भूमिहीन श्रमिक हैं जिन्हें स्वास्थ्य, सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा से संबंधित कोई भी सुविधा नहीं मिलती है.
  • वर्ष 2019 में मात्र 13% महिला किसानों के पास अपनी ज़मीन थी और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यह अनुपात मात्र 12.8% था।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labor Organization-ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिक असमानता को 25% कम कर लिया जाता है तो इससे देश की जीडीपी में 1 ट्रिलियन डॉलर तक की वृद्धि हो सकती है।

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यहाँ दिए गए आँकड़ों में ये घटता लिंगानुपात इस बात का प्रमाण है कि हम महिलाओं के प्रति किस प्रकार गैरजिम्मेदार हो गए हैं। आज जब हमें एक साथ चलने की आवश्यकता है, उस समय हम बेटियों को जन्म लेने से पहले गर्भ में या जन्म लेने के कुछ वक़्त बाद ही मार देते हैं।



नारी तो उस ममता रूपी छाँव की तरह है जो किसी को दुख की धूप से जलता देख उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है। नारी तो वो है जो बहन के रूप में कभी हमसे लड़े-झगड़े तो कभी हमसे प्यार पाने के लिए हमसे ही रूठ जाती है। नारी तो वो है जो एक पत्नी के रूप में हमारा हर क्षेत्र में सहयोग देती है। नारी तो वो है जो एक बेटी के रूप में हमे फिर से जीना सिखाती है। नारी हमारी वो सहकर्मी है जो हमें सफलता का मार्ग दिखाती है। हमें ज़रूरत है उसका सहयोग देने की क्योंकि अगर वही ना रही तो ये समाज भी नहीं होगा। नारी को उनके पंखों का उपयोग करना सिखाएँ ना कि उन पंखों को काट के उन्हें सामाजिक बंधनों के पिंजरे में डाल दें जहाँ वो हर रोज अपने ख्वाबों को टूटता देखकर मरती रहे।


वर्तमान में महिलाएँ समाज सेवा, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र-उत्थान के अनेक कार्यों में लगी हैं। शारीरिक एवं मानसिक कोमलता के कारण महिलाओं को रक्षा सम्बन्धी सेवाओं के उपयुक्त नहीं माना जाता था, किंतु भारत की पहली महिला ‘आईपीएस’ श्रीमती किरण बेदी तथा भारत की पहली महिला ट्रांसजेंडर पुलिस अधिकारी के. पृथ्वी यशिनी (2017) ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा से इस मिथक को पूरी तरह तोड़ दिया। दोहरे दायित्वों से लदी महिलाओं ने अपनी दोगुनी शक्ति का प्रदर्शन कर सिद्ध कर दिया है कि समाज की उन्नति आज केवल पुरूषों के कन्धे पर नहीं है। महिलाएँ हर प्रकार से एक उन्नत राष्ट्र के बनने में अपना योगदान दे सकती हैं, उन्हें बस ज़रूरत है तो हमारे साथ की और आगे बढ़ने देने के मौकों की। हम उन्हें उनके सपने पूरे करने से रोक ज़रूर सकते हैं पर सपने देखने से नहीं और जब कोई इंसान सपने देख सकता है तो समझिये वो आज़ाद है। उम्मीद है कि आप सहयोग देने की शुरुआत अपने घर से ज़रूर करेंगे। कवियत्री निर्मला पुतुल की एक लम्बी कविता के अंश के साथ हम इस लेख को यहीं समाप्त करते हैं


सपनों में भागती

एक स्त्री का पीछा करते

कभी देखा है तुमने उसे

रिश्तो के कुरुक्षेत्र में

अपने आपसे लड़ते ।

तन के भूगोल से परे

एक स्त्री के

मन की गांठे खोलकर

कभी पढ़ा है तुमने

उसके भीतर का खौलता इतिहास


अगर नहीं

तो फिर जानते क्या हो तुम

रसोई और बिस्तर के गणित से परे

एक स्त्री के बारे में!


निर्मला पुतुल
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