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Hindi Language Quiz For IBPS SO : 4th December 2018

Hindi Language Quiz For IBPS SO : 4th December 2018 | Latest Hindi Banking jobs_2.1




Directions (1-2: निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न में दो रिक्त स्थान छूटे हैं उनकी पूर्ति करने के लिए विकल्पों में दिए गए शब्दों के सही क्रम का चयन कीजिए।
Q1. हमारी माँ ________ पृथ्वी ने हमें कई सारे महत्वपूर्ण संसाधन भेंट किए हैं और जल उन्हीं _________ में से एक है।

सौजन्य, सन्दर्भों
प्रकृति, प्रयोगों
समतुल्य, संसाधनों
प्रयोज्य, कामनाओं
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ क्रमशः ‘समतुल्य’ एवं ‘संसाधनों’ शब्द का प्रयोग उचित है।

Q2. आम जन जीवन के अलावा वर्षा ऋतु का सबसे अधिक _______किसानों के लिए है क्योंकि खेती के लिए पानी की अत्यधिक __________ होती है जिससे फसलों को पानी की कमी न हो।

उत्सव, दुर्लभता
महत्व, आवश्यकता
परिश्रम, अल्पता
आधिक्य, संभावना
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ क्रमशः ‘महत्व’ एवं आवश्यकता शब्द का प्रयोग उचित है।

Q3. निम्नलिखित में से ‘सृष्टि’ का विलोम शब्द क्या है?

वृष्टि
समष्टि
प्रलय
ग्राह्य
इनमें से कोई नहीं
Solution:

‘सृष्टि’ का विलोम शब्द ‘प्रलय’ है। सृष्टि का अर्थ है- निर्माण, उत्पत्ति। प्रलय का अर्थ है- भयंकर नाश, विनाश।

Q4. ‘लापरवाही’ शब्द के लिए अर्थ की दृष्टि से उचित अंग्रेजी शब्द का चयन कीजिए।

Decorum
Negligence
Seizure
Relinquish
इनमें से कोई नहीं
Solution:

‘लापरवाही’ शब्द के लिए उचित अंग्रेजी शब्द ‘Negligence’ है।

Q5. ‘Jurisdiction’ शब्द के लिए अर्थ की दृष्टि से उचित हिंदी शब्द का चयन कीजिए।

न्यायतंत्र
न्यायिक
अधिकार क्षेत्र
न्यायपालिका
इनमें से कोई नहीं
Solution:

‘Jurisdiction’ शब्द के लिए उचित हिंदी शब्द ‘अधिकार क्षेत्र’ है।

Direction (6-10) निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जंगल में जिस प्रकार अनेक लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं। जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जीवन की अनेक विधियाँ संस्कृत में समन्वय प्राप्त करती हैं। समन्वययुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है।

Q6. रेखांकित अंश का आशय है कि-

राष्ट्र तभी सुखी हो सकता है जब उसका चतुर्मूखी विकास हो
राष्ट्र के सुखी होने के लिए उसमें शान्ति और व्यवस्था का होना आवश्य है
राष्ट्र में कहीं कोई विग्रह या परस्पर संघर्ष न हो तभी राष्ट्र सुखी हो सकता है
राष्ट्र की सभी सांस्कृतिक इकाइयों में परस्पर सौहार्द हो तभी उसमें सुख-चैन हो सकता है
123
Solution:

रेखांकित अंश का आशय है कि- राष्ट्र की सभी सांस्कृतिक इकाइयों में परस्पर सौहार्द हो तभी उसमें सुख-चैन हो सकता है।

Q7. ‘राष्ट्रीय जन’ से तात्पर्य है-

राष्ट्र की सीमाओं में रहने वाली विभिन्न जातियाँ, धार्मिक सम्प्रदाय और सांस्कृतिक इकाइयाँ
राष्ट्र में रहने वाला प्रत्येक नागरिक
राष्ट्र की समग्र जनसंख्या
राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति
123
Solution:

‘राष्ट्रीय जन’ से तात्पर्य है- राष्ट्र की सीमाओं में रहने वाली विभिन्न जातियाँ, धार्मिक सम्प्रदाय और सांस्कृतिक इकाइयाँ।

Q8. राष्ट्रीय जीवन में समन्वय का अर्थ है-

जैसे समुद्र में नदियाँ अपना अस्तित्व समाप्त कर देती हैं
कि जन-संस्कृतियाँ अपना अलग अस्तित्व रखते हुए परस्पर सहयोग करें
कि जन-संस्कृतियाँ आपसी सहयोग से राष्ट्रीय संस्कृतिक का विकास करें
कि जन-संस्कृतियाँ अपने विशिष्ट चरित्र की रक्षा करते हुए राष्ट्रीय संस्कृति में समन्वित हों
123
Solution:

राष्ट्रीय जीवन में समन्वय का अर्थ है- कि जन-संस्कृतियाँ अपने विशिष्ट चरित्र की रक्षा करते हुए राष्ट्रीय संस्कृति में समन्वित हों।

Q9. उपर्युक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक होगा-

जन-संस्कृतियाँ और राष्ट्रीय संस्कृति
समन्वययुक्त राष्ट्रीय जीवन
जन-संस्कृतियों का समन्वय
राष्ट्र का सुखद स्वरूप
123
Solution:

उपर्युक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक होगा- राष्ट्र का सुखद स्वरूप।

Q10. राष्टीय जन की तुलना जंगल की लता-वृक्षों से इस उद्देश्य से की गई है कि-

जंगल के लता-वृक्षों की भाँति राष्ट्रीय जन भी केवल अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्षरत रहें
जैसे जंगल के लता-वृक्ष मनमाना बढ़ते रहते है, वैसे ही राष्टीय जन भी अपनी वृद्धि करते रहें
जैसे जंगल की लता वृक्ष सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर जंगल में उठते-बढ़ते हैं, वैस ही राष्ट्रीय जन को भी आपस में सह -अस्तित्व की भावना रखनी चाहिए
जंगल के राज जैसा कानून राष्ट्रीय जनों के बीच भी लागू होना चाहिए
123
Solution:

राष्टीय जन की तुलना जंगल के लता-वृक्षों से इस उद्देश्य से की गयी है कि- जैसे जंगल की लता वृक्ष सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर जंगल में उठते-बढ़ते हैं, वैस ही राष्ट्रीय जन को भी आपस में सह -अस्तित्व की भावना रखनी चाहिए।

Direction (11-15) नीचे दिए गए प्रत्येक परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (a), (b), (c), (d) और (e) विकल्प दिए गए हैं। इन पाँचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प का चयन करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।

Q11. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।

कल्पना
सभ्यता
अभिव्यक्ति
संचय
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ ‘सभ्यता’ का प्रयोग उचित है।

Q12. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।

राजनैतिक
भौतिक
सामाजिक
भौगोलिक
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ ‘सामाजिक’ शब्द का प्रयोग उचित है।

Q13. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।

प्रचारित
संकुचित
अव्यवस्थित
अनुशासित
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ ‘अनुशासित’ शब्द का प्रयोग उचित है।

Q14. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।

जनसाधारण
साहित्य
शास्त्रों
धार्मिक-ग्रंथों
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ ‘जनसाधारण’ शब्द का प्रयोग उचित है।

Q15. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।

द्वेष
भेदभाव
घृणा
मनमुटाव
इनमें से कोई नहीं
Solution:

यहाँ ‘भेदभाव’ शब्द का प्रयोग उचित है।