Directions (1-2: निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न में दो रिक्त स्थान छूटे हैं उनकी पूर्ति करने के लिए विकल्पों में दिए गए शब्दों के सही क्रम का चयन कीजिए।
Q1. हमारी माँ ________ पृथ्वी ने हमें कई सारे महत्वपूर्ण संसाधन भेंट किए हैं और जल उन्हीं _________ में से एक है।
Q2. आम जन जीवन के अलावा वर्षा ऋतु का सबसे अधिक _______किसानों के लिए है क्योंकि खेती के लिए पानी की अत्यधिक __________ होती है जिससे फसलों को पानी की कमी न हो।
Q3. निम्नलिखित में से ‘सृष्टि’ का विलोम शब्द क्या है?
Q4. ‘लापरवाही’ शब्द के लिए अर्थ की दृष्टि से उचित अंग्रेजी शब्द का चयन कीजिए।
Q5. ‘Jurisdiction’ शब्द के लिए अर्थ की दृष्टि से उचित हिंदी शब्द का चयन कीजिए।
Direction (6-10) निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जंगल में जिस प्रकार अनेक लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं। जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जीवन की अनेक विधियाँ संस्कृत में समन्वय प्राप्त करती हैं। समन्वययुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है।
Q6. रेखांकित अंश का आशय है कि-
Q7. ‘राष्ट्रीय जन’ से तात्पर्य है-
Q8. राष्ट्रीय जीवन में समन्वय का अर्थ है-
Q9. उपर्युक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक होगा-
Q10. राष्टीय जन की तुलना जंगल की लता-वृक्षों से इस उद्देश्य से की गई है कि-
Direction (11-15) नीचे दिए गए प्रत्येक परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (a), (b), (c), (d) और (e) विकल्प दिए गए हैं। इन पाँचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प का चयन करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
Q11. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।
Q12. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।
Q13. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।
Q14. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।
Q15. मानवाधिकार को सामान्यतः आधुनिक _(11)_ से जोड़कर देखा जाता है, कदाचित यह उचित भी है। मानवाधिकारों को संस्थानिक महत्ता आधुनिक समाज की देन है, लेकिन बीज–रूप में यह उतना ही पुराना विचार है, जितनी मानव–सभ्यता की शुरुआत। अंतर बस इतना है कि मानवाधिकार पहले _(12)_ आचार–संहिता का हिस्सा थे। उनका स्तर कानूनी न होकर व्यावहारिक था। भारत जैसे देशों में जहां धर्म मनुष्य की पूरी जीवन–चर्या को _(13)_ करता है, मानवाधिकारों को भी धार्मिक आचार–संहिता के एक हिस्से के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को _(14)_ के बीच लोकप्रिय बनाने में मानवाधिकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मानवाधिकारों को धर्म से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह बात अलग है कि प्रत्येक धर्म की कुछ ऐसी अनुशंसाएं अवश्य होती हैं, जो मनुष्य के मौलिक अधिकारों से साधारणतः मेल खाती हैं। उनकी नींव समानता के सिद्धांत के आधार पर रखी जाती है, जो स्वयं प्राकृतिक न्याय की भावना पर आधारित होती है। चूंकि प्रकृति किसी के साथ _(15)_ नहीं करती, सभी के साथ समान व्यवहार करती है, प्रकृति की संतान होने के कारण मनुष्य को भी उसके मूलभूत अधिकार मिलने ही चाहिए।