कोप 21 (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़), संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ का संयुक्त राष्ट्र अभिसमय है. कोप 21 का आयोजन 30 नवंबर 2015 से 12 दिसम्बर 2015 तक फ़्रांस की अध्यक्षता में पेरिस में आयोजित किया गया था. 1995 से प्रतिवर्ष, कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ के अंतर्गत 196 पार्टियों (195 देश एवं यूरोपीय यूनियन) की बैठक होती है जिसमें विभिन्न देश, इसके कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने और नए प्रतिबद्धताओं पर बातचीत करते हैं और अलग-अलग देश में इस अभिसमय की पुष्टि की जाती है. अब कोप22 का आयोजन 2016 में मोरक्को के मराकेश (Marrakech) में किया जाएगा.
कोप शिखर सम्मेलनों का मुख्य उददेश्य विभिन्न देशों द्वारा हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को घटाना और उसकी निगरानी करना है. पेरिस के कोप 21 में, जलवायु परिवर्तन से राष्ट्रों द्वारा कार्यवाही करने, इस संघर्ष में तेजी लाने, और कार्बन रहित टिकाऊ भविष्य के निर्माण हेतु आवश्यक कार्यों में निवेश बढ़ाने को लेकर पार्टियाँ एक ऐतिहासिक समझौते पर पहुंची थीं.
पेरिस समझौता एक अभिसमय पर आधारित है और इसके द्वारा पहली बार विभिन्न राष्ट्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और इससे लड़ने के लिए एक समान मुद्दे पर सहमत हुए हैं. इसके साथ ही उन्होंने इस कार्य हेतु विकासशील राष्ट्रों को अपना समर्थन बढ़ाने का भी वादा किया है. इस तरह, यह वैश्विक जलवायु के लिए किये जा रहे प्रयासों में एक मील का पत्थर साबित होगा.
पेरिस समझौते का केंद्रीय उददेश्य बढ़ते जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मजबूत होते क़दमों को और बढ़ावा देना है. इसके तहत बढ़ते वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक अवस्था तक यानि 1.5˚ सेल्सियस बनाये रखना है. साथ ही, इस समझौते का उददेश्य देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने में सक्षम बनाना भी है. इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, पर्याप्त वित्तीय प्रवाह, नया तकनीकी फ्रेमवर्क और एक अधिक क्षमता वाला विकसित फ्रेमवर्क रखना होगा जिसमें विकासशील देशों और अत्यंत कमजोर देशों द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए इन लक्ष्यों को आगे रखना होगा. पेरिस समझौता अधिक मजबूत पारदर्शिता ढांचे के माध्यम से कार्रवाई और समर्थन के लिए कार्यों में अधिक पारदर्शिता प्रदान करता है.
2 अक्टूबर 2016 (महात्मा गाँधी जयंती को), भारत ने न्यूयॉर्क में इस समझौते की पुष्टि करते हुए इसमें शामिल होने की घोषणा की है. भारत इस समझौते की पुष्टि करने वाला 62वां राष्ट्र होगा. एक भारतीय एनजीओ ‘स्वयं शिक्षण प्रयोग’ को संयुक्त राष्ट्र जलवायु पुरस्कार 2016 भी दिया गया. यह एनजीओ, भारत के बिहार और महाराष्ट्र राज्यों में महिलाओं को स्वच्छ उद्द्यमी बनने हेतु प्रशिक्षित करता है.
आज पूरी दुनिया के लिए हरित गृह गैसों के उत्सर्जन को घटाना एक बड़ी और जरूरी चुनौती बना हुआ है. वैश्विक तापमान में वृद्धि, बर्फ़ का पिघलना और जल स्तर में वृद्धि सम्पूर्ण विश्व के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है. इसके लिए हम किसी एक विकसित या विकासशील राष्ट्र को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, यह सभी देशों की जिम्मेदारी है कि वे वैश्विक तापमान की वृद्धि को रोकने हेतु आगे आयें. हरितगृह गैसों का एक निश्चित प्रतिशत ही प्राकृतिक रूप से उत्सर्जित होता है, शेष सभी मानवजनित क्रियाकलापों का परिणाम है. जीवाश्म इंधनों जैसे हाइड्रोकार्बन (कोयला, गैस और तेल) का अत्यधिक दोहन, निर्वनीकरण, गहन पशुधन, खेती इत्यादि से अधिक गैसों का उत्सर्जन हो रहा है जो वातावरण में जमा हो रही हैं. यह उत्सर्जन वैश्विक तापमान में वृद्धि कर रही हैं जो मानव समुदाय के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है.
बहुत बहुत शुभकामनाएं