Topic : अपठित गद्यांश / पद्यांश
Directions (1-5) निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उचित विकल्प का चयन कीजिए।
देश-दुनिया और समाज में जिस तेजी से बदलाव हो रहा है उस हिसाब से महिलाओं के प्रति लोगों के नजरिए, मानसिकता और सोच में बदलाव नहीं हो रहा है। हम आज भी उसी पुरानी सोच और परंपरा की बात करते हैं जिस सोच और परंपरा को कट्टरपंथी और समाज के तथाकथित ठेकेदार अपनी बातों को महिलाओं पर लादने की कोशिश करते रहे हैं और करते हैं। इसका ताजा उदाहरण कट्टरपंथियों की धमकियों के बीच कल तक अडिग नजर आ रहीं, कश्मीर का पहला रॉक बैंड ‘परगाश’ बनाने वाली तीन लड़कियों कथित तौर पर न सिर्फ अपने बैंड, बल्कि संगीत से भी तौबा कर ली। दरअसल महिला सशक्तिकरण के बारे में समाज के विभिन्न वर्गो, व्यवसायों एवं आर्थिक स्तरों से जुडे़ व्यक्तियों [पुरूष व महिला दोनों] की नजर में अलग-अलग मायने और दृष्टिकोण हैं। एक ओर जहां यह महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता होना है तो दूसरे रूप में पुरूषों के समान स्थिति को प्राप्त करना।
समाज में एक सोच के अनुसार पूरी तरह पाश्चात्यता अथवा अत्याधुनिकता को अपनाना ही सशक्तिकरण है। उपरोक्त सभी सशक्तिकरण की कतिपय पहलु मात्र है। संपूर्ण एवं समग्र सशक्तिकरण वह स्थिति है जब महिलाओं के व्यक्ति्व का विकास, शिक्षा प्राप्ति, व्यवसाय, परिवार में निर्णय का समान अवसर मिले, जब वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो, शारीरिक व भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करे तथा तमाम रूढि़वादी व अप्रासंगिक रिवाजों, रूढि़वादी बंधनों से पूरी तरह स्वतंत्र हो। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता को न केवल समाज, परिवारों, बल्कि सरकार के स्तर से भी अनुभव किया गया है। हमारे स्वतंत्र देश के संविधान में महिला और पुरूष के आधार पर नागरिकों में भेद नहीं किया गया बल्कि समान अवसर दिए गए है। मतदान का अधिकार महिलाओं को भी दिया गया जो कि स्वयं में एक क्रांतिकारी कदम था। यहां यह उल्लेख करना प्रसांगिक होगा कि अमेरिका एवं यूरोप के विभिन्न देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित होने के कई दशकों बाद महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया था। केंद्र व राज्य सरकार के स्तर से महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था, साईकल देने, अतिरिक्त पोषाहार, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, तथा स्वंय सहायता समूहों को बढ़ावा देना, छात्रवृति तथा व्यवसायिक प्रशिक्षण देने आदि के माध्यम से महिलाओं को सहायता दी जा रही है। शैक्षिक, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न कार्य किये जा रहे हैं जिनके सकारात्मक परिणाम भी दिख रहे है। इसकी मिसाल कुछ राज्यों में हुए पंचायत चुनाव, जिनमें 50 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस पहल साबित हुआ है। इसके बावजूद अभी भी महिलाओं के संपूर्ण सशक्तिकरण की दिशा में बहुत अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
Q1. हम आज भी किस सोच और परम्परा की बात करते हैं?
(a) पाश्चात्यता का विरोध करने वाली सोच और परम्परा
(b) आधुनिकता का समर्थन करने वाली सोच और परम्परा
(c) कट्टरपंथियों और समाज के ठेकेदारों दवारा लादी हुई सोच और परम्परा
(d) स्वछंदतावादी सोच और परम्परा
(e) इनमें से कोई नहीं
Q2. महिला सशक्तिकरण के बारे में समाज के विभिन्न वर्गों का दृष्टिकोण क्या है?
(a) आर्थिक स्वतंन्त्रता या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता
(b) पुरुषों के समान स्थिति को प्राप्त करना
(c) रुढ़िवादी बन्धनों से मुक्ति
(d) (a) और (b) दोनों
(e) इनमें से कोई नहीं
Q3. सशक्तिकरण क्या है?
(a) महिला के व्यक्तित्व का विकास, रूढ़िवादिता से मुक्ति
(b) शिक्षा प्राप्ति, व्यवसाय और परिवार में समान अवसर
(c) आर्थिक, शारीरिक एवं भावनात्मक रूप से सुरक्षा
(d) (a), (b) और (c) सभी
(e) इनमें से कोई नहीं
Q4. वर्तमान परिपेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण की उपयोगिता सिद्धि होती है:
(a) आर्थिक स्तर पर
(b) केवल समाजिक स्तर पर
(c) सामाजिक और सरकारी स्तर पर
(d) पारिवारिक स्तर पर
(e) इनमें से कोई नहीं
Q5. प्रशासनिक स्तर पर महिलाओं को किस प्रकार सहायता दी जा रही है?
(a) संविधान में समानता प्रदान करके
(b) मतदान का अधिकार प्रदान करके
(c) कल्याणकारी योजनाओं तथा नि:शुक्ल शिक्षा एवं व्यावयासिक प्रशिक्षण
(d) इनमें से सभी
(e) इनमें से कोई नहीं
Directions (6-10) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जैन और बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक क्रमशः महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध, ईसा से छह शताब्दी पहले, क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। अपने–अपने दर्शन में दोनों ने ही कर्मकांड और आडंबरवाद का जमकर विरोध किया था। दोनों ही यज्ञों में दी जाने वाली पशुबलियों के विरुद्ध थे। दोनों ने शांति और अहिंसा का पक्ष लिया था, और भरपूर ख्याति बटोरी। जैन और बौद्ध, दोनों ही दर्शनों को भारतीय चिंतनधारा में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इनमें से जैन धर्म अहिंसा को लेकर अत्यधिक संवेदनशील था, जबकि जीवन को लेकर बुद्ध का दृष्टिकोण व्यावहारिक था. अहिंसा के प्रति अत्यधिक आग्रहशीलता के कारण जैन दर्शन प्रचार–प्रसार के मामले में बौद्ध दर्शन से पिछड़ता चला गया. व्यावहारिक होने के कारण बौद्ध दर्शन को उन राजाओं आ समर्थन भी मिला जो ब्राह्मणवाद से तंग हो चुके थे; और उपयुक्त विकल्प की तलाश में थे।
गौतम बुद्ध ने कर्मकांड के स्थान पर ज्ञान–साधना पर जोर दिया था। पशुबलि को हेय बताते हुए वे अहिंसा के प्रति आग्रहशील बने रहे। वेद–वेदांगों में आत्मा–परमात्मा आदि को लेकर इतने अधिक तर्क–वितर्क और कुतर्क हो चुके थे कि बुद्ध को लगा कि इस विषय पर और विचार अनावश्यक है। इसलिए उन्होंने आत्मा, परमात्मा, ईश्वर आदि विषयों को तात्कालिक रूप से छोड़ देने का तर्क दिया। उसके स्थान पर उन्होंने मानव–जीवन को संपूर्ण बनाने पर जोर दिया। समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने पंचशील का सिद्धांत दिया। जिसमें पहला शील है, अहिंसा। जिसके अनुसार किसी भी जीवित प्राणी को कष्ट पहुंचाना अथवा मारना वर्जित कर दिया गया था। दूसरा शील था, अचौर्य। जिसका अभिप्राय था कि किसी दूसरे की वस्तु को न तो छीनना न उस कारण उससे ईर्ष्या करना, तीसरा शील सत्य था। मिथ्या संभाषण भी एक प्रकार की हत्या है, सत्य की हत्या, इसलिए उससे बचना, सत्य पर डटे रहना, तीसरे शील के रूप में तृष्णा न करना शामिल था। व्यक्ति के पास जो है, जो अपने संसाधनों द्वारा अर्जित किया गया, उससे संतोष करना, आवश्यकता से अधिक की तृष्णा न करना, इसलिए कि यह पृथ्वी जरूरतें तो सबकी पूरी कर सकती है, मगर तृष्णा एक व्यक्ति की भी भारी पड़ सकती है। पांचवा शील मादक पदार्थों के निषेद्ध को लेकर है। पंचशील को पाने के लिए उन्होंने अष्ठांगिक मार्ग बताया था, जिसमें उन्होंने सम्यक दृष्टि(अंधविश्वास से मुक्ति), सम्यक वचन(स्पष्ट, विनम्र, सुशील वार्तालाप),सम्यक संकल्प(लोककल्याणकारी कर्तव्य में निष्ठा, जो विवेकवान व्यक्ति से अभीष्ट होता है), सम्यक आचरण(प्राणीमात्र के साथ शांतिपूर्ण, मर्यादित, विनम्र व्यवहार), सम्यक जीविका(किसी भी जीवधारी को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुंचाना), सम्यक परिरक्षण (आत्मनियंत्रण और कर्तव्य के प्रति समर्पण का भाव), सम्यक स्मृति (निरंतर सक्रिय एवं जागरूक मस्तिष्क) तथा सम्यक समाधि(जीवन के गंभीर रहस्यों पर सुगंभीर चिंतन) पर जोर दिया था.
बुद्ध की चिंता थी कि किस प्रकार मानव–जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाया जाए, सुख से उनका अभिप्राय केवल भौतिक संसाधनों की उपलब्धता से नहीं था, इसके स्थान पर वे न केवल मानवजीवन के लिए सुख की सहज उपलब्धता चाहते थे, बल्कि समाज के बड़े वर्ग के लिए सुख की समान उपलब्धता की कामना करते थे. यह वैदिक ब्राह्मणवाद के समर्थकों से एकदम भिन्न था. जिन्होंने परलोक की काल्पनिक भ्रांति के पक्ष में भौतिक सुखों की उपेक्षा की थी, जबकि उनका अपना जीवन भोग और विलासिता से भरपूर था, यही नहीं वर्णाश्रम व्यवस्था के माध्यम से उन्होंने समाज के बहुसंख्यक वर्गों, जो मेहनती और हुनरमंद होने के साथ–साथ समाज के उत्पादन को बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प थे, सुख एवं समृद्धि से दूर रखने की शास्त्रीय व्यवस्था की थी। शूद्र कहकर उसको अपमानित करते थे और इस आधार पर उन्हें अनेक मानवीय सुविधाओं से वंचित रखा गया था।
Q6. जीवन को लेकर बुद्ध का दृष्टिकोण कैसा था?
(a) औपचारिक
(b) धार्मिक
(c) व्यावहारिक
(d) दार्शनिक
(e) इनमें से कोई नहीं
Q7. गौतम बुद्ध ने कर्मकांड के स्थान पर किस पर जोर दिया था।
(a) कर्म-साधना
(b) ज्ञान–साधना
(c) वियोग-साधना
(d) योग-साधना
(e) इनमें से कोई नहीं
Q8. बुद्ध की चिंता किसके जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की थी
(a) मानव-जीवन
(b) शुद्र-जीवन
(c) राजसी-जीवन
(d) ब्राहमण-जीवन
(e) इनमें से कोई नहीं
Q9. शब्द ‘मिथ्या’ का समानार्थी शब्द क्या है?
(a) सत्य
(b) स्पष्टता
(c) भ्रान्ति
(d) यथार्थता
(e) इनमें से कोई नहीं
Q10. शब्द ‘तृष्णा’ का विपरीतार्थक शब्द क्या है?
(a) लोभ
(b) संतोष
(c) चाह
(d) लालच
(e) इनमें से कोई नहीं
SOLUTIONS:
S1. Ans. (c):
S2. Ans. (d):
S3. Ans. (d):
S4 Ans. (c):
S5. Ans. (c):
S6. Ans. (c):
S7. Ans. (b):
S8. Ans. (a):
S9. Ans. (c):
S10. Ans. (b):