National Technology Day 2020 : pokhran parmanu test
हर साल 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस भारत में मनाया जाता है. यह दिन भारत की विज्ञान में दक्षता एवं प्रौद्योगिकी में विकास को दर्शाता है. यह दिन उन सभी लोगों को जो टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्य करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करता है. इस दिन देश राष्ट्र गौरव के साथ-साथ अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को भी याद करता है. एक तरह से, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस दैनिक जीवन में विज्ञान के महत्व पर प्रकाश डालता है और युवाओं को इसे करियर विकल्प के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है.
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11 मई 1998 को हुआ था पोखरण परमाणु टेस्ट
11 मई को National Technology Day मनाने की मुख्य वजह है, कि इस दिन देश ने न्यूक्लियर पॉवर बनने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया. इस दिन पोखरण परीक्षण रेंज में भारत द्वारा किए गए पांच परमाणु बम विस्फोटों की सीरीज की शुरुआत हुई. डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बदौलत भारत ने न्यूक्लियर पॉवर के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की. अमेरिका की पाबंदियों के बाद भी भारत ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और उसके सैटेलाइटों को चकमा दे कर इस परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया था.
अन्य उपलब्धियां –
इसके साथ ही भारत ने आज के ही दिन ऑपरेशन शक्ति मिसाइल का भी सफलता पूर्वक परिक्षण किया था. राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं, बेंगलुरु द्वारा विकसित स्वदेशी विमान- हंसा 3 का भी इसी दिन परिक्षण किया गया था. DRDO (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) ने भारत की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल त्रिशूल का भी सफल परिक्षण इसी दिन किया था.
न्यूक्लियर टेस्ट का इतिहास
वैसे तो भारत ने 1998 से पहले भी न्यूक्लियर बम के क्षेत्र में प्रयास किया था, सबसे पहले वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के समय भारत ने पहली बार परमाणु परिक्षण किया, जिसमें असफलता प्राप्त हुई. इसके बाद भारत पर भारी वैश्विक दबाव पड़ा. इसके बाद भी भारत ने न्यूक्लियर प्रोग्राम जारी रखा. इसके बाद वर्ष 1995 में नरसिम्हा राव सरकार ने न्यूक्लियर टेस्ट के लिए हरी झंडी दी. पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA को सेटेलाइट की मदद से इस परिक्षण की भनक लग गई, जिसके बाद भारत को वैश्विक दबाव के चलते इस परिक्षण पर रोक लगाना पड़ा. इसके बाद वर्ष 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में न्यूक्लियर टेस्ट कराए जाने का आदेश दिया, लेकिन आदेश के महज 2 दिन बाद ही सरकार गिर गई. इसके बाद वर्ष 1998 में एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद को सम्हाला और पोखरण- 2 की फिर अनुमति दी.
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ऐसे दिया भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिका को चकमा –
1995 के बाद से ही अमेरिका लगातार भारत पर नजर बनाये हुए था, अमेरिकी खुफिया एजेंसी (CIA) चार सैटेलाइट की मदद से लगातार भारत की निगरानी कर रहा था. इस लिए सबसे पहले यह पता लगाया गया कि इस समय भारत पर अमेरिका निगरानी नहीं कर रहा होता है. इससे पता लगा कि रात में कुछ घंटे गतिविधियों का पता लगाना मुश्किल था. इस लिए वैज्ञानिक रात में काम करते थे.
इसके साथ ही एपीजे अब्दुल कलाम और उनकी पूरी टीम सेना की वर्दी में रहते थे, जिससे अमेरिका को ये लगे कि सैनिक ड्यूटी दे रहे हैं. परमाणु बमों को मुंबई से जैसलमेर बेस तक प्लेन से और उसके बाद ट्रकों की मदद से पोखरण परिक्षण केंद्र तक पहुंचाया गया. इस बार भारत कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था.
इसके बाद 11 मई 1998 को थार के रेगिस्तान में पोखरण के खेतोलाई गांव के पास भारत ने सुबह परीक्षण किया, यह धमाका व्हाइट हाउस नाम से बनाये शाफ्ट में हुआ. 58 किलो टन क्षमता के परमाणु बम का परीक्षण करके भारत ने पूरी दुनिया को चौका दिया. इसकी क्षमता, अमेरिका की ओर से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम लिटिल बॉय से चार गुना अधिक थी.
इसके बाद प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत परमाणु संपन्न देश बन गया है और दुनियां भर में परमाणु क्लब देशों में शामिल होने वाला छठा देश है.
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