Economic Survey 2019-2020 : केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की. मोदी सरकार ने 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की बनाने का लक्ष्य रखा है. इस साल आर्थिक सर्वेक्षण का थीम – ‘Enable Markets, Promote ‘Pro-Business’ Policies and Strengthen ‘Trust’ in the Economy’ है. मुख्य आर्थिक सलाहकर कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण के दस्तावेज तैयार किये हैं. कल संसद में बजट पेश होने वाला है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 की मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :
धन सृजन : अदृश्य सहयोग को मिला भरोसे का सहारा (Wealth Creation: The Invisible Hand Supported by the Hand of Trust) :
- आर्थिक इतिहास की तीन-चौथाई अवधि के दौरान वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का वर्चस्व इसे अभिव्यक्त करता है।
- कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र‘ में किसी भी अर्थव्यवस्था में कीमतों की भूमिका के बारे में बताया गया है (स्पेंगलर, 1971)।
-
ऐतिहासिक दृष्टि से, भारतीय अर्थव्यवस्था ने भरोसे के सहारे के साथ बाजार के अदृश्य सहयोग पर विश्वास किया :बाजार का अदृश्य सहयोग आर्थिक लेन-देन में खुलेपन में प्रतिबिंबित हुआ।भरोसे का सहारा नैतिक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों में रेखांकित हुआ।
- आर्थिक समीक्षा में बाजार के अदृश्य सहयोग से प्राप्त हो रहे व्यापक लाभों के बारे में बताया गया है।
- उदारीकरण के बाद भारत की जीडीपी और प्रति व्यक्ति जीडीपी में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ धन सृजन भी हो रहा है।
- आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि बंद पड़े सेक्टरों की तुलना में उदार या खोले जा चुके सेक्टरों की वृद्धि दर ज्यादा रही है।
- अदृश्य सहयोग को भरोसे का सहारा देने की जरूरत है, जो वर्ष 2011 से वर्ष 2013 तक की अवधि के दौरान वित्तीय सेक्टर के प्रदर्शन से परिलक्षित होता है।
-
आर्थिक समीक्षा में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने संबंधी भारत की आकांक्षा का उल्लेख किया गया है जो निम्नलिखित पर काफी निर्भर है:बाजार के अदृश्य सहयोग को मजबूत करनाइसे भरोसे का सहारा देनाबिजनेस अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देकर अदृश्य सहयोग को मजबूत करनानए प्रवेशकों को समान अवसर देनाउचित प्रतिस्पर्धा और कारोबार में सुगमता सुनिश्चित करनासरकार के ठोस कदमों के जरिए बाजारों को अनावश्यक रूप से नजरअंदाज करने वाली नीतियों को समाप्त करनारोजगार सृजन के लिए व्यापार को सुनिश्चित करनाबैंकिंग सेक्टर का कारोबारी स्तर दक्षतापूर्वक बढ़ाना
जमीनी स्तर पर पर उद्यमिता और धन सृजन (Entrepreneurship and Wealth Creation at the Grassroots) :
- उत्पादकता को तेजी से बढ़ाने और धन सृजन के लिए एक रणनीति के रूप में उद्यमिता।
- विश्व बैंक के अनुसार, गठित नई कंपनियों की संख्या के मामले में भारत तीसरे पायदान पर।
वर्ष 2014 के बाद से ही भारत में नई कंपनियों के गठन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है:
- वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक की अवधि के दौरान औपचारिक क्षेत्र में नई कंपनियों की संचयी वार्षिक वृद्धि दर 12.2 प्रतिशत रही, जबकि वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2014 तक की अवधि के दौरान यह वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत थी।
- वर्ष 2018 में लगभग 1.24 लाख नई कंपनियों का गठन हुआ जो वर्ष 2014 में गठित लगभग 70,000 नई कंपनियों की तुलना में तकरीबन 80 प्रतिशत अधिक है।
- आर्थिक समीक्षा में भारत में प्रशासनिक पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर यानी 500 से अधिक जिलों में उद्यमिता से जुड़े घटकों और वाहकों पर गौर किया गया है।
- सेवा क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की संख्या विनिर्माण, अवसंरचना या कृषि क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की तुलना में काफी अधिक है।
- सर्वे में यह बात रेखांकित की गई है कि जमीनी स्तर पर उद्यमिता केवल आवश्यकता से ही प्रेरित नहीं होती है।
- किसी जिले में नई कंपनियों के पंजीकरण में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने से सकल घरेलू जिला उत्पाद (जीडीडीपी) में 1.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।
- जिला स्तर पर उद्यमिता का उल्लेखनीय असर जमीनी स्तर पर धन सृजन पर होता है।
-
भारत में नई कंपनियों का गठन विषम है और ये विभिन्न जिलों एवं सेक्टरों में फैली हुई हैं।
-
किसी भी जिले में साक्षरता और शिक्षा से स्थानीय स्तर पर उद्यमिता को काफी बढ़ावा मिलता है:-यह असर सबसे अधिक तब नजर आता है जब साक्षरता 70 प्रतिशत से अधिक होती है।-जनगणना 2011 के अनुसार, न्यूनतम साक्षरता दर (59.6 प्रतिशत) वाले पूर्वी भारत में सबसे कम नई कंपनियों का गठन हुआ है।
- किसी भी जिले में भौतिक अवसंरचना की गुणवत्ता का नई कंपनियों के गठन पर काफी असर होता है।
- कारोबार में सुगमता और लचीले श्रम कानूनों से विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में नई कंपनियों का गठन करने में आसानी होती है।
-
आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि कारोबार में सुगमता बढ़ाने और लचीले श्रम कानूनों को लागू करने से जिलों और इस तरह से राज्यों में अधिकतम रोजगारों का सृजन हो सकता है।बिजनेस अनुकूल बनाम बाजार अनुकूल (Pro-business versus Pro-markets) :
-
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने संबंधी भारत की आकांक्षा निम्नलिखित पर निर्भर करती है:बिजनेस अनुकूल नीति को बढ़ावा देना जो धन सृजन के लिए प्रतिस्पर्धी बाजारों की ताकत को उन्मुक्त करती है।सांठगांठ वाली नीति से दूर होना जिससे विशेषकर ताकतवर निजी स्वार्थों को पूरा करने को बढ़ावा मिल सकता है।
- शेयर बाजार के नजरिये से देखें, तो उदारीकरण के बाद व्यापक बदलाव लाने वाले कदमों में काफी तेजी आई :
- उदारीकरण से पहले सेंसेक्स में शामिल किसी भी कंपनी के इसमें 60 वर्षों तक बने रहने की आशा थी। यह अवधि उदारीकरण के बाद घटकर केवल 12 वर्ष रह गई।
- प्रत्येक पांच वर्ष में सेंसेक्स में शामिल एक तिहाई कंपनियों में फेरबदल देखा गया जो अर्थव्यवस्था में नई कंपनियों, उत्पादों और प्रौद्योगिकियों की निरंतर आवक को दर्शाता है।
-
प्रतिस्पर्धी बाजारों को सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद सांठगांठ को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने अर्थव्यवस्था में मूल्य पर अत्यंत प्रतिकूल असर डाला:वर्ष 2007 से लेकर वर्ष 2010 तक की अवधि के दौरान आपस में संबंधित कंपनियों के इक्विटी इंडेक्स का प्रदर्शन बाजार के मुकाबले 7 प्रतिशत सालाना अधिक रहा जो आम नागरिकों की कीमत पर प्राप्त असामान्य लाभ को दर्शाता है।
- इसके विपरीत वर्ष 2011 पर इक्विटी इंडेक्स का प्रदर्शन बाजार के मुकाबले 7.5 प्रतिशत कम रहा जो इस तरह की कंपनियों में अंतनिर्हित अक्षमता और मूल्य में कमी को दर्शाता है।
2. ईसीए के तहत औषधि मूल्य नियंत्रण ()
- डीपीसीओ 2013 के जरिए औषधियों के मूल्यों को नियंत्रित किए जाने से नियंत्रित दवाओं की कीमतें अनियंत्रित समान दवाओं की तुलना में ज्यादा बड़ी।
- सस्ती दवाओं के फॉर्मुलेशन की कीमत खर्चीली दवाओं के फॉर्मुलेशन से ज्यादा बढ़ी।
- इसने इस बात को साबित किया कि डीपीसीओ सस्ती दवाओं की उपलब्धता के जो प्रयास किए वे उल्टे रहे।
- सरकार दवाओं का एक बड़ा खरीददार होने के कारण सस्ती दवाओं की कीमतें कम करने के लिए दबाव डाल सकती है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सरकार की ओर से दवाओं की खरीद का सौदा अपने हिसाब से करने के इस अधिकार का पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।
3.खाद्यान्न बाजार में सरकार के हस्तक्षेप (Government intervention in Grain markets)
- खाद्यान्न बाजार में सरकारी हस्तक्षेप के कारण, सरकार गेहूं और चावल की सबसे बड़ी खरीददार होने के साथ ही सबसे बड़ी जमाखोर भी हो गई है।
- निजी कारोबार से सरकार का हटना
- सरकार पर खाद्यान्न सब्सिडी का बोझ बढ़ना
- मार्केट की अक्षमताएं बढ़ने से कृषि क्षेत्र का दीर्धावधि विकास प्रभावित
- खाद्यन्न में नीति को अधिक गतिशील बनाना तथा अनाजों के वितरण के लिए पारंपरिक पद्धति के स्थान पर नकदी अंतरण – फूड कूपन तथा स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल करना।
4. कर्ज माफी (Debt waivers)
- केंद्र और राज्यों की ओर से दी जाने वाली कर्ज माफी की समीक्षा
- पूरी तरह से कर्ज माफी की सुविधा वाले लाभार्थी कम खपत, कम बचत, कम निवेश करते हैं जिससे आंशिक रूप से कर्ज माफी वाले लाभार्थियों की तुलना में उनका उत्पादन भी कम होता है।
- कर्ज माफी का लाभ लेने वाले ऋण उठाव के चलन को प्रभावित करते हैं।
- वे कर्ज माफी का लाभ प्राप्त करने वाले किसानों के लिए औपचारिक ऋण प्रवाह को कम करते हैं और इस तरह कर्ज माफी के औचित्य को खत्म कर देते हैं।
समीक्षा के सुझाव
- सरकार को अपने अनावश्यक हस्तक्षेप वाले बाजार के क्षेत्रों की व्यवस्थित तरीके से जांच की करनी चाहिए।
- सुझाव दिया गया है कि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में जो सरकारी हस्तक्षेप कभी सही रहे थे वे अब बदलती अर्थव्यवस्था के लिए अप्रासंगिक हो चुके हैं।
- ऐसे सरकारी हस्तक्षेपों के खत्म किए जाने से बाजार प्रतिस्पर्धी होंगे जिससे निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
नेटवर्क उत्पादों में विशेषज्ञता के जरिए विकास और रोजगार सृजन (Creating Jobs and Growth by Specializing in Network Products)
- समीक्षा में कहा गया है कि भारत के पास श्रम आधारित निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के समान अभूतपूर्व अवसर हैं।
- दुनिया के लिए भारत में एसेम्बल इन इंडिया और मेक इन इंडिया योजना को एक साथ मिलाने से निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2025 तक 3.5 प्रतिशत तथा 2030 तक 6 प्रतिशत हो जाएगी।
- 2025 तक देश में अच्छे वेतन वाली 4 करोड़ नौकरियां होंगी और 2030 तक इनकी संख्या 8 करोड़ हो जाएगी।
- 2025 तक भारत को 5 हजार अरब वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी मूल्य संवर्धन में नेटवर्क उत्पादों का निर्यात एक तिहाई की वृद्धि करेगा।
- समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि निम्नलिखित अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत को चीन जैसी रणनीति का पालन करना चाहिए।
- श्रम आधारित क्षेत्रों विशेषकर नेटवर्क उत्पादों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विशेषज्ञता हासिल करना।
- नेटवर्क उत्पादों के बड़े स्तर पर एसेम्लिंग की गतिविधियों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना।
- अमीर देशों के बाजार में निर्यात को बढ़ावा देना।
- निर्यात नीति सुविधाजनक होना।
- आर्थिक समीक्षा में भारत की ओर से किए गए व्यापार समझौतों का कुल व्यापार संतुलन पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।
- इसके अनुसार भारत की ओर निर्यात किए कुल उत्पादों में 10.9 प्रतिशत की जबकि विनिर्माण उत्पादों के निर्यात में 13.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
- कुल आयातित उत्पादों में 8.6 प्रतिशत तथा विनिर्माण उत्पादों के आयात में 12.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
- प्रति वर्ष भारत के विनिर्माण उत्पादों के व्यापार अधिशेष में 0.7 प्रतिशत तथा कुल उत्पादों के व्यापार अधिशेष में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
भारत में कारोबारी सुगमता लक्ष्य (Targeting Ease of Doing Business in India)
- विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता रैंकिंग में भारत 2014 में जहां 142वें स्थान पर था वहीं 2019 में वह 63वें स्थान पर पहुंच गया।
- हालांकि इसके बावजूद भारत कारोबार शुरू करने की सुगमता संपत्ति के रजिस्ट्रेशन, करों का भुगतान और अनुबंधों को लागू करने के पैमाने पर अभी भी काफी पीछे हैं।
- समीक्षा में कई अध्ययनों को शामिल किया गया है:
- वस्तुओं के निर्यात में लॉजिस्टिक सेवाओं का प्रदर्शन निर्यात की तुलना में आयात के क्षेत्र में ज्यादा रहा।
- बेंगलूरू हवाई अड्डे से इलेक्ट्रॉनिक्स आयात और निर्यात ने यह बताया कि किस तरह भारतीय लॉजिस्टिक सेवाएं किस तरह विश्वस्तरीय बन चुकी है।
- देश के बंदरगाहों में जहाजों से माल ढुलाई का काम 2010-11 में जहां 4.67 दिन था वहीं 2018-19 में करीब आधा रहकर 2.48 हो गया।
कारोबारी सुगमता को और बेहतर बनाने के सुझाव
- कारोबारी सुगमता को बेहतर बनाने के लिए दिए गए सुझावों में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, जहाजरानी मंत्रालय औरअन्य बंदरगाह प्राधिकरणों के बीच में करीबी सहयोग शामिल है।
- o सुझाव में कहा गया है कि पर्यटन या विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में अवरोध खड़े करने वाली नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए ज्यादा लक्षित उपायों की जरूरत है।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की स्वर्ण जयंती एक समीक्षा
- समीक्षा में कहा गया कि 2019 में भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का 50 वर्ष पूरे हुए।
- कहा गया कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के कर्मचारियों ने खुशी मनाई कि सर्वेक्षण सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन का सुझाव दिया गया।
- इसमें कहा गया कि वर्ष 1969 से जिस रफ्तार से देश की अर्थव्यवस्था का विकास हुआ उस हिसाब से बैंकिंग क्षेत्र विकसित नहीं हो सका।
- भारत का केवल एक बैंक विश्व के 100 शीर्ष बैंकों में शामिल हैं। यह स्थिति भारत को उन देशों की श्रेणी में ले जाती हैं जिनकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत के मुकाबले कई गुना कम जैसे कि फिनलैंड जो भारत (लगभग 1/11वां भाग) और (डेनमार्क लगभग 1/8वां भाग)।
- एक बड़ी अर्थव्यवस्था में सशक्त बैंकिंग क्षेत्र को होना बहुत जरूरी है।
- चूकिं भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है इसलिए अर्थव्यवस्था को सहारा देने में इनकी जिम्मेदारी बड़ी है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रदर्शन के पैमाने पर अपने समकक्ष समूहों की तुलना में उतने सक्षम नहीं हैं।
- 2019 में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में औसतन प्रति एक रूपये के निवेश पर 23 पैसे का घाटा हुआ, जबकि गैर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 9.6 पैसे का मुनाफा हुआ।
-
पिछले कई वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में ऋण वृद्धि गैर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में काफी कम रही।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक सक्षम बनाने के उपाय
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयर में कर्मचारियों के लिए हिस्सेदारी की योजना।
- बैंक के बोर्ड में कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना तथा उन्हें बैंक के शेयर धारकों के अनुसार वित्तीय प्रोत्साहन देना।
- जीएसटीएन जैसी व्यवस्था करना ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उपलब्ध आंकड़ों का संकलन किया जा सके और बैंक से कर्ज लेने वालों पर बेहतर निगरानी रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस और मशीन लर्निंग जैसी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना।
एनबीएफसी (NFBC) क्षेत्र में वित्तीय जोखिम
- बैंकिंग क्षेत्र में नकदी के मौजूदा संकट को देखते हएु शेडों बैंकिंग के खतरों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारणों का पता लगाना।
आवर्ती जोखिम के मुख्य घटक
- आस्ति देयता प्रबन्धन (एएलएम) जोखिम
- अंतर संयोगी जोखिम
- गैर-वित्तीय कम्पनी के वित्तीय और संचालन लचीलापन
- अल्पावधि के बड़े फंडिंग पर अत्यधिक निर्भरता
- समीक्षा नैदानिक (हेल्थ स्कोर) की गणना करता है इसके लिए हाउसिंग फाइनान्स कम्पनी और रिटेल गैर-बैंकिंग रिटेल कम्पनियों की आवर्ती जोखिम की गणना की जाती है।
हेल्थ स्कोर का विश्लेषण
- हाउसिंग फाइनान्स कम्पनी क्षेत्र के लिए हेल्थ स्कोर में 2014 के बाद घटते हुए रूझान को प्रदर्शित किया गया है। 2019 के अंत तक सम्पूर्ण क्षेत्र का हेल्थ स्कोर काफी खराब रहा।
- रिटेल गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों हेल्थ स्कोर 2014 से 2019 तक काफी कम था।
- बड़ी रिटेल गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों का हेल्थ स्कोर अधिक था परन्तु मध्यम और छोटी कम्पनियों के पास 2014 से 2019 तक का हेल्थ स्कोर कम था।
- उपर्युक्त निष्कर्षों से पता चलता है कि हेल्थ स्कोर से आसन नगदी समस्याओं की पूर्व चेतावनी का संकेत मिलता है।
निजीकरण और धन सृजन
- समीक्षा में सीपीएससी के विनिवेश से होने वाले लाभों की जांच की गई है और इससे सरकारी उद्यमों के विनिवेश करने को बल मिलता है।
- एचपीसीएल में सरकार की 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी के विनिवेश से राष्ट्रीय सम्पदा में 33,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई।
- 1999-2000 से 2003-04 के दौरान 11 केन्द्रीय उद्यमों के रणनीतिक विनिवेश के प्रदर्शन का विश्लेषण किया गया है।
- केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नेटवर्थ कुल लाभ परिसम्पत्तियों से आय, इक्विटी पर लाभ आदि में वृद्धि दर्ज की गई है।
- निजी हाथों में सौपे गए केन्द्रीय उपक्रमों ने समान संसाधनों से अधिक संपत्ति अर्जित करने में सफलता प्राप्त की है।
- समीक्षा में केन्द्रीय उपक्रमों के विनिवेश का सुझाव दिया गया है।
- अधिक लाभ के लिए
- दक्षता को बढ़ावा देने के लिए
- प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए
- व्यवसायवाद को बढ़ावा देने के लिए
क्या भारत की जीडीपी वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जाता है? नहीं।
- जीडीपी वृद्धि किसी भी निवेश को साथ ही साथ नीति निर्धारकों द्वारा नीति निर्माण के लिए एक जटिल उता-चढ़ाव है। अतः हाल ही के भारत के जीडीपी के सही आकलन के संबंध में छिड़ी बहस में 2011 में आकलन प्रक्रिया में संशोधन को अपनाना अति महत्वपूर्ण है।
- जैसा कि देश विभिन्न देखे अनदेखे तरीकों में मिला है, एक देश से दूसरे देश की तुलना बहुत सावधानीपूर्वक की जाती है जिसमें अन्य उलझाने वाले घटकों के प्रभाव को सावधानी से अलग किया गया है और केवल जीडीपी विकास आकलन पर प्रक्रिया संशोधन के प्रभाव को अलग किया गया है।
- वह मॉडल जिसमें 2001 के बाद जीडीपी विकास 2.7 प्रतिशत गतलीवश अनुमान से अधिक हो गई है उसने सैंपल समय में 95 देशों में से 51 अन्य देशों में भी जीडीपी विकास अनुमान से अधिक हो गई।
- विभिन्न विकसित अर्थव्यवस्थाएं जैसे यूके, जर्मनी और सिंगापुर ने अपनी जीडीपी को गलत आकलन किया, जब कि अर्थमितिक प्रतिमान को गलत रूप निर्दिष्ट किया गया था।
- सही रूप में निर्दिष्ट मॉडल, जिसमें सभी देशों के बीच अनदेखी भिन्नताएं साथ ही भिन्न देशों में जीडीपी वृद्धि में अंतराष्ट्रीय रूझान भारत अथवा अन्य देशों में वृद्धि की किसी भी दोषपूर्ण आकलन का पता नहीं लगा सके।
- दोषपूर्ण रूप से अनुमानित भारतीय जीडीपी की चिंताए डाटा द्वारा निराधार कर दी जाती है अतः इनका कोई आधार नहीं है।
थालीनॉमिक्सः भारत में भोजन की थाली की अर्थव्यवस्था
- पूरे भारत में थाली के लिए आम व्यक्ति द्वारा कितना भुगतान किया जाता है परिमाणित करने का एक प्रयास है।
- 2015-16 को वह वर्ष माना जा सकता है जब खाद्य मूल्य के व्यवहार में परिवर्तन हुआ था।
- पूरे भारत के चारों क्षेत्रों में हम देखते है कि 2015-16 से शाकाहारी थाली के मूल्य में काफी कमी आई है हालांकि मूल्य में 2019-20 में वृद्धि हुई है।
- 2015-16 के बाद
- शाकाहारी थाली के मामले में खाद्य मूल्य में कमी होने से औसत परिवार को औसतन लगभग 11,000 रुपये का लाभ हुआ है।
- जो परिवार औसतन दो मांसाहारी थाली खाता है उसे समान अवधि के दौरान लगभग 12,000 रुपये का लाभ हुआ है।
- 2006-07 से 2019-20 तक
- शाकाहारी थाली की वहनीयता 29 प्रतिशत बेहतर हुई है।
- मांसाहारी थाली की वहनीयता 18 प्रतिशत बेहतर हुई है।
2019-20 में भारत का आर्थिक प्रदर्शन
- भारत की जीडीपी 2019-20 की पहली छमाही में 4.8 प्रतिशत रही इसका कारण कमजोर वैश्विक विनिर्माण, व्यापार और मांग है।
- वास्तविक उपभोग वृद्धि दूसरी तिमाही में बेहतर हुई है। इसका कारण सरकारी खपत में वृद्धि होना है।
- कृषि और सम्बन्धित गतिविधि, लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में 2019-20 की पहली छमाही में वृद्धि 2018-19 की दूसरी छमाही से अधिक थी।
- चालू खाता घाटा कम होकर 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी का 1.5 प्रतिशत रह गया। जबकि 2018-19 में यह 2.1 प्रतिशत था।
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बेहतर हुआ।
- पोर्टफॉलियो प्रवाह मजबूत हुआ।
- विदेशी मुद्रा भण्डार मजबूत हुआ।
- 2019-20 की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में कमी आई।
- महंगाई दर में साल के अंत तक कमी आएगी।
- 2019-20 की पहली छमाही में 3.3 प्रतिशत से बढ़कर दिसम्बर में 7.35 प्रतिशत हो गई।
- सीपीआई तथा डब्ल्यूपीआई में वृद्धि दर्शाती है कि मांग में वृद्धि हुई है।
- जीडीपी में मंदी का कारण विकास चक्र का धीमा होना है।
- निवेश खपत और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के दौरान निम्न सुधार किए गए।
- दिवाला प्रक्रिया (दिवाला एवं दिवालियापन संघीता) को तेज बनाया गया
- राज्यों का वित्तीय घाटा एफआरबीएम अधिनियम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के दायरे में है।
- समीक्षा में कहा गया है कि सरकारें (केन्द्र और राज्य) वित्तीय मजबूती के पथ पर है।
वैदेशिक क्षेत्र
- भुगतान संतुलन (बीओपी):
- भारत की बीओपी स्थिति में सुधार हुआ है। मार्च, 2019 में यह 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था, जबकि सितंबर, 2019 के अंत में बढ़कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गया।
- चालू खाता घाटा (सीएडी) 2018-19 में जीडीपी के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में 1.5 प्रतिशत रह गया।
- विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा।
वैश्विक व्यापार
- 2019 में वैश्विक उत्पादन में 2.9 प्रतिशत अनुमानित वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार 1.0 प्रतिशत की दर पर बढ़ने का अनुमान है, जबकि 2017 में यह 5.7 प्रतिशत के शीर्ष स्तर तक पहुंचा था।
- हालांकि वैश्विक आर्थिक गतिविधि में रिकवरी के साथ 2020 में इसके 2.9 प्रतिशत तक रिकवर होने का अनुमान है।
- वर्ष 2009-14 से लेकर 2014-19 तक भारत की मर्चेंटडाइज वस्तुओं के व्यापार संतुलन में सुधार हुआ है। हालांकि बाद की अवधि में ज्यादातर सुधार 2016-17 में क्रूड की कीमतों में 50 प्रतिशत ज्यादा गिरावट के कारण हुआ।
- भारत के शीर्ष पांच व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सउदी अरब और हांगकांग हैं।
निर्यातः
- शीर्ष निर्यात मदें- पेट्रोलियम उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, औषधियों के नुस्खे और जैविक, स्वर्ण और अन्य बहुमूल्य धातुएं।
- 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) में सबसे बड़े निर्यात स्थलः अमेरिका, उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), चीन और हांगकांग।
- जीडीपी के अनुपात और मर्चेंटाडाइज वस्तुओं के निर्यात में कमी आई है जिससे बीओपी स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- विश्व उत्पादन में कमी आने का प्रभाव निर्यात और जीडीपी अनुपात घटने पर पड़ा है विशेषकर 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही के दौरान।
- 2009-14 से 2014-19 तक नॉन-पीओएल निर्यात में वृद्धि में महत्वपूर्ण कमी आई है।
आयातः
- शीर्ष आयात मदें- कच्चा पेट्रोलियम, सोना, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, कोक एवं ब्रिकेट्स।
- भारत का सर्वाधिक आयात चीन से करना जारी रहेगा, उसके बाद अमेरिका, यूएई और सउदी अरब का स्थान।
- भारत के लिए मर्चेंटाडाइज आयात और जीडीपी अनुपात में कमी आई है जिसका बीओपी पर निवल सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- आयात में बड़े रूप में कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात को कच्चे तेल की कीमतों से जोड़ता है। कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से कुल आयात में कच्चे तेल का हिस्सा बढ़ता है, आयात और जीडीपी अनुपात में वृद्धि होती है।
- स्वर्ण आयात सोने के मूल्यों के साथ भारत के कुल आयात से जुड़ता है, लेकिन 2018-19 तथा 2019-20 की पहली छमाही में मूल्यों में वृद्धि के बावजूद कुल आयात में सोना आयात की हिस्सेदारी वही रही। सम्भवतः आयात शुल्क में वृद्धि के कारण ऐसा हुआ, जिससे सोने के आयात में कमी आई।
- गैर-पीओएल-गैर-सोना आयात सकारात्मक रूप से जीडीपी वृद्धि से जुड़ा है।
- 2009-14 से 2014-19 में जब जीडीपी दर में वृद्धि हुई तो जीडीपी अनुपात के रूप में गैर-पीओएल-गैर-तेल आयात में गिरावट आई।
- ऐसा खपत प्रेरित वृद्धि के कारण संभव है, जबकि निवेश दर में कमी आई और गैर-पीओएल-गैर-स्वर्ण आयात घटा।
- निवेश दर में निरंतर गिरावट के कारण जीडीपी वृद्धि की गति कम हुई, खपत में कमजोरी आई, निवेश परिदृश्य निराशाजनक हुआ, जिसके परिणामस्वरूप जीडीपी में कमी आई और साथ-साथ 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही तक जीडीपी अनुपात के रूप में गैर-पीओएल-गैर-सोना आयात में गिरावट आई।
- व्यापार सहायता के अंतर्गत 2016 की 143 रैंकिंग की तुलना में भारत ने 2019 में अपनी रैंकिंग में सुधार की और भारत की रैंकिंग 68 हो गई। विश्व बैंक द्वारा व्यावसायिक सुगमता रिपोर्ट में ‘ट्रेडिंग ए क्रॉस बोडर्स’ सूचकांक की निगरानी की जाती है।
भारत का लॉजिस्टिक्स उद्योग
- वर्तमान में यह लगभग 160 बिलियन डॉलर का है।
- आशा है कि यह 2020 तक 215 बिलियन डॉलर तक हो जाएगा।
- विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में भारत विश्व में 44वें रैंक पर रहा। 2014 में भारत का रैंक 54वां था।
- कुल एफडीआई आवक 2019-20 में मजबूत बनी रही। पहले छह महीनों में 24.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित हुआ। यह 2018-19 की समान अवधि से अधिक था।
- विदेशों में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों से रकम की प्राप्ति में वृद्धि होती रही। 2019-20 की पहली छमाही में 38.4 बिलियन डॉलर की प्राप्ति हुई, जो पिछले वर्ष के स्तर से 50 प्रतिशत से अधिक है।
बाहरी ऋणः
- सितंबर 2019 के अंत में यह जीडीपी के 20.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहा।
- 2014-15 से गिरावट के बाद भारत की बाहरी देनदारियां (ऋण तथा इक्विटी) जून 2019 के अंत में जीडीपी की तुलना में बढ़ी। ऐसा एफडीआई पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारियों (ईसीबी) में वृद्धि के कारण हुआ।
मौद्रिक प्रबंधन तथा वित्तीय मध्यस्थता
मौद्रिक नीतिः
- 2019-20 में सामंजस्य योग्य रहा।
- कम वृद्धि तथा कम मुद्रास्फीति के कारण वित्तीय वर्ष में एमपीसी की चार बैठकों में रेपो दर में 110 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई।
- लेकिन दिसंबर 2019 में हुई पांचवीं बैठक में इसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया।
- वर्ष 2019-20 के शुरुआती दो महीनों में नकदी की स्थिति कमजोर रही; लेकिन कुछ समय बाद यह सुविधाजनक हो गई।
सकल गैर-निष्पादित अग्रिम अनुपात :
- मार्च और दिसंबर, 2019 के बीच अनुसूचित व्यवसायिक बैंकों के लिए बिना किसी बदलाव के 9.3 प्रतिशत रहा।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय निगमों (एनबीएफसी) के लिए मार्च 2019 में 6.1 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर सितंबर, 2019 में 6.3 प्रतिशत हो गया।
ऋण वृद्धि :
- अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय आवक सीमित रही क्योंकि दोनों बैंकों और एनबीएफसी के लिए ऋण वृद्धि में गिरावट आई।
- बैंक ऋण वृद्धि अप्रैल 2019 में 12.9 प्रतिशत थी जो 20 दिसंबर, 2019 को 7.1 प्रतिशत हो गई।
- पूंजी से एससीबी के जोखिम भरे परिसंपत्ति अनुपात मार्च, 2019 और सितंबर, 2019 के बीच 14.3 प्रतिशत से बढ़कर 15.1 प्रतिशत हो गया।
मूल्य और मुद्रास्फीति
मुद्रास्फीति प्रवृत्तियां :
- 2014 के बाद मुद्रास्फीति नियंत्रित रही
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में 3.7 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर, 2019) में 4.1 प्रतिशत हो गई।
- थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में 4.7 प्रतिशत से गिरकर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर, 2019) में 1.5 प्रतिशत हो गई।
सीपीआई – मिश्रित (सी) मुद्रास्फीति के चालक :
- 2018-19 के दौरान प्रमुख चालक मिलेजुले समूह थे।
- 2019-20 के दौरान (अप्रैल-दिसंबर) खाद्य और पेय पदार्थों ने प्रमुख योगदान दिया।
- खाद्य और पेय पदार्थों में कम आधार के प्रभाव और उत्पादन की अड़चनों जैसे असमय वर्षा के कारण सब्जियों और दालों के दाम बहुत अधिक रहे।
दालों के लिए कोब-वेब अनुभव :
- पिछली विपणन अवधि में देखे गए मूल्यों पर किसानों ने अपने नए बीज बोने का फैसला किया।
- किसानों की रक्षा के लिए किए गए उपायों जैसे मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ), न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अंतर्गत खरीद को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता।
थोक और खुदरा मूल्य के बीच अंतर।
- वर्ष 2014 से 2019 के बीच देश के चार महानगरों में आवश्यक कृषि वस्तुओं की निगरानी।
- प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों के लिए उच्च स्तर की विसंगतियां ऐसा बिचौलियों की मौजूदी और लेनदेन की अधिक मूल्य के कारण हुआ होगा।
कीमतों में अस्थिरता
- 2009-14 की अवधि की तुलना में 2014-19 की अवधि में कुछ दालों को छोड़कर आवश्यक खाद्य वस्तुओं के मूल्यों के उतार-चढ़ाव में कमी आई।
- कम उतार-चढ़ाव बेहतर विपणन चैनलों, भंडार सुविधाओं तथा कारगर एमएसपी प्रणाली की मौजूदगी का संकेतक हो सकता है।
क्षेत्रीय अंतरः
- सीपीआई-सी महंगाई में राज्यों के बीच अंतर रहा है। यह वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में (-) 0.04 प्रतिशत से 8.1 प्रतिशत के बीच में रही है।
- अधिकतर राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में सीपीआई-सी महंगाई शहरी क्षेत्रों में सीपीआई-सी महंगाई से कम रही है।
- शहरी मुद्रास्फीति की तुलना में ग्रामीण मुद्रास्फीति में सभी राज्यों में अधिक अंतर रहा है।
मुद्रास्फीति गतिशीलता
- 2012 से आगे के सीपीआई-सी डाटा के अनुसार हेडलाइन महंगाई और कोर महंगाई में अभिसरण
- सतत विकास और जलवायु परिवर्तन
- भारत अच्छे तरीके से बनाए गए कार्यक्रम के माध्यम से एसडीजी क्रियान्वयन के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।
एसडीजी भारत सूचकांकः
हिमाचल प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और चंडीगढ़ अग्रणी राज्य
असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश आकांक्षी श्रेणी में
भारत ने यूएनसीसीडी के तहत सीओपी-14 की मेज़बानी की, जिसमें दिल्ली घोषणाः भूमि में निवेश और अवसरों को खोलना अपनाया गया।
मैड्रिड में यूएनएफसीसीसी के अंतर्गत सीओपी-25
भारत ने पेरिस समझौते को लागू करने का अपना संकल्प दोहराया
सीओपी-25 के निर्णयों में जलवायु परिवर्तन समाप्ति, विकासशील देशों के पक्षों द्वारा विकसित देशों के क्रियान्वयन उपायों को अपनाना तथा लागू करना शामिल है।
वन और वृक्ष कवरः
- वृद्धि के साथ यह 80.73 मिलियन हेक्टेयर हुआ
- देश के 24.56 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में।
- कृषि अवशेषों को जलाने से प्रदूषण स्तर में वृद्धि तथा वायु गुणवत्ता में गिरावट अभी भी चिंता का विषय है। यद्पि विभिन्न प्रयासों के कारण कृषि अवशेषों को जलाने की घटना में कमी आई है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)
- सदस्य देशों से 30 फेलोशिप को संस्थागत बनाकर सहायक
- एक्जिम बैंक ऑफ इंडिया से 2 बिलियन डॉलर का ऋण और एएफडी फ्रांस से 1.5 बिलियन डॉलर का ऋण
- सौर जोखिम समाप्ति जैसे कार्यक्रमों द्वारा ‘इन्क्यूबेटर’
- 116 मेगावाट सौर तथा 2.7 लाख सौर जल पम्पों की कुल मांग के लिए उपाय विकसित करके ‘एक्सेलेटर’
कृषि तथा खाद्य प्रबंधन
- भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोजगार अवसरों के लिए कृषि पर निर्भर करता है
- देश के कुल मूल्यवर्धन (जीवीए) में कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों की हिस्सेदारी गैर-कृषि क्षेत्रों की अधिक वृद्धि के कारण कम हो रही है। यह विकास प्रक्रिया का स्वभाविक परिणाम है।
- कृषि वानिकी और मछलीपालन क्षेत्र से 2019-20 के बेसिक मूल्यों पर जीवीए में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान
- कृषि में मशीनरीकरण का स्तर कम होने से कृषि उत्पादकता में बाधा। भारत में कृषि का मशीनरीकरण 40 प्रतिशत है, जो चीन के 59.5 प्रतिशत तथा ब्राजील के 75 प्रतिशत से काफी कम है।
भारत में कृषि ऋण के क्षेत्रीय वितरण में असमानता
- पर्वतीय तथा पूर्वोत्तर राज्यों में कम ऋण (कुल कृषि ऋण वितरण का 1 प्रतिशत से भी कम)
- लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन आय दूसरा महत्वपूर्ण आय का साधन
- किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका
- पिछले 5 वर्षों के दौरान पशुधन क्षेत्र सीएजीआर के 7.9 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है
- 2017-18 में समाप्त पिछले छह वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में वृद्धि
- औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) लगभग 5.06 प्रतिशत
- 2011-12 के मूल्यों पर 2017-18 में जीवीए में विनिर्माण और कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी क्रमशः 8.83 प्रतिशत और 10.66 प्रतिशत रही
- यद्पि जनसंख्या के कमजोर वर्गों के हितों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है फिर भी आर्थिक समीक्षा में निम्नलिखित उपायों से खाद्य सुरक्षा की स्थिति को स्थिर बनाने पर बल दिया गया है।
- बढ़ती खाद्य सब्सिडी बिल की समस्या सुलझाना
- एनएफएसए के अंतर्गत दरों तथा कवरेज में संशोधन
उद्योग तथा आधारभूत संरचना
- 2018-19 (अप्रैल-नवंबर) के 5.0 प्रतिशत की तुलना में 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- 2018-19 (अप्रैल-नवंबर) के (-) 1.3 प्रतिशत की तुलना में 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान उर्वरक क्षेत्र में 4 प्रतिशत की वृद्धि।
- इस्पात क्षेत्र में 2019-20 (अप्रैल-नवम्बर) के दौरान 5.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि 2018-19 (अप्रैल-नवम्बर) के दौरान यह 3.6 प्रतिशत थी।
- 30 सितम्बर, 2019 को भारत में कुल टेलीफोन कनेक्शन 119.43 करोड़ पहुंचा।
- बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता बढ़ कर 31 अक्टूबर, 2019 को 3,64,960 मेगावाट हो गई, जो 31 मार्च, 2019 को 3,56,100 मेगावाट थी।
- 31 दिसंबर, 2019 को जारी की गई राष्ट्रीय अवसंरचना पाइप लाइन के संबंध में कार्यबल की रिपोर्ट में भारत में वित्त वर्ष 2020 से 2025 के दौरान 102 लाख करोड़ रुपये के कुल अवसंरचनात्मक निवेश को प्रक्षेपित किया है।
सेवा क्षेत्र
- भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की महत्ता लगातार बढ़ रही है :
- सकल संवर्धन मूल्य और सकल संवर्धन मूल्य वृद्धि में इसका हिस्सा 55 प्रतिशत है।
- भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दो-तिहाई।
- कुल निर्यात का लगभग 38 प्रतिशत।
- 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 15 राज्यों में सेवा क्षेत्र का योगदान 50 प्रतिशत से अधिक।
- सेवा क्षेत्र के सकल मूल्य संवर्धन की वृद्धि 2019-20 में कम हुई है।
- 2019-20 की शुरूआत में सेवा क्षेत्र में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में मजबूत बेहतरी देखी गई है।
सामाजिक अवसंरचना, रोजगार और मानव विकास
- केंद्र और राज्यों द्वारा सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य) पर जीडीपी के अनुपात के रूप में व्यय 2014-15 में 6.2 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 (बजटीय अनुमान) में 7.7 प्रतिशत हो गया है।
- मानव विकास सूचकांक में भारत की रैंकिंग में 2017 की 130 की तुलना में 2018 में 129 हो गई।
- वार्षिक मानव विकास सूचकांक में औसत 1.34 प्रतिशत वृद्धि के साथ भारत तीव्रतम सुधार वाले देशों में शामिल है।
- माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक तथा उच्चतर शिक्षा स्तर पर सकल नामांकन अनुपात में सुधार की जरूरत है।
- नियमित मजदूरी/ वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी में 5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है, जो 2011-12 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 23 प्रतिशत हो गई।
- इस श्रेणी में ग्रामीण क्षेत्रों में 1.21 करोड़ तथा शहरी क्षेत्रों में 1.39 करोड़ नए रोजगारों सहित लगभग 2.62 करोड़ नए रोजगार का सृजन होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि।
- अर्थव्यवस्था में कुल औपचारिक रोजगार में 2011-12 के 8 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 9.98 प्रतिशत वृद्धि हुई।
- महिला श्रमिक बल की प्रतिभागिता में गिरावट आने की वजह से भारत के श्रमिक बाजार में लिंग असमानता का अंतर और बड़ा हो गया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में और लगभग 60 प्रतिशत उत्पादकता आयु (15-59) ग्रुप पूर्ण कालिक घरेलू कार्यों में लगे हैं।
- देशभर में आयुष्मान भारत और मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से अतिरिक्त अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में सुधार हुआ है।
- मिशन इन्द्रधनुष के तहत देशभर में 680 जिलों में 3.39 करोड़ बच्चों और 87.18 लाख गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण हुआ।
- गांवों में लगभग 76.7 प्रतिशत और शहरों में 96 प्रतिशत परिवारों के पास पक्के घर हैं।
- स्वच्छता संबंधी व्यवहार में बदलाव लाने तथा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की पहुंच बढ़ाने पर जोर देने के उद्देश्य से एक 10 वर्षीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-2029) की शुरूआत की गई।
आर्थिक सर्वेक्षण क्या है?
प्रत्येक वर्ष बजट से पहले आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय द्वारा पेश किया जाता है, जिसे वित्त मंत्रालय की देख-रेख में मुख्य आर्थिक सलाहकार तैयार करता है. इस बार मुख्य आर्थिक सलाहकर कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण के दस्तावेज तैयार किये हैं. कल संसद में बजट पेश होने वाला है, उससे पहले आज वित्त मंत्री ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया है. आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति की दशा और दिशा बताई जाती है. इसे अंग्रेजी में इकनॉमिक सर्वे कहा जाता है, वित्त मंत्रालय की तरफ से पेश की जाने वाली एक अधिकारिक रिपोर्ट है. इसके माध्यम से सरकार बीते वर्ष में देश की आर्थिक स्थिति का विस्तृत ब्योरा देगी. किन योजनाओं को सरकार ने पूरा किया और उसके क्या-क्या संभावित परिणाम होंगे. मुख्य रूप से इस सर्वेक्षण के माध्यम से सरकार बीते वर्ष में अपनी उपलब्धियां बताती है साथ ही अर्थिक सर्वेक्षण इस बात का संकेत देता है कि सरकार इस बजट में किन क्षेत्रों में फोकस कर सकता है.
आर्थिक सर्वेक्षण दो खण्डों में क्यों जारी किया जाता है –
आर्थिक सर्वेक्षण को दो खंड में जारी किया जाता है. खंड 1 और 2 प्रकाशित करने की परंपरा का अनुपालन इस वर्ष भी किया गया हैं. खंड 1 में अर्थव्यवस्था की स्थिति- विश्लेषणात्मक सिंहावलोकन और नीतिगत संभावनाएं आदि का विस्तृत वर्णन होता हैं, इस वर्ष भी उन विचारों को प्रस्तुत किया है जो ‘‘आर्थिक आजादी एवं धन सृजन’ सम्बंधित हैं. इसमें विश्वसनीय नीति निर्माण के लिए हाल ही के आर्थिक विकास कार्यों के आर्थिक विश्लेषण पर आधरित साक्ष्य प्रस्तुत किये गए हैं.
खंड 2 में चालू वित्त वर्ष की वर्णनात्मक समीक्षा होती है जिसमें अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को शामिल किया जाता है. इस वर्ष भी खंड 2 में अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में हुए हाल ही के विकास कार्यों की समीक्षा की गई है तथा सम्बंधित डाटा भी प्रस्तुत किया गया है जो क्षेत्रा की मौजूदा स्थिति एवं नीतियों के लिए रैडी रेकनर का कार्य करेगा.