किसी भी समय व स्थान के इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों की सर्वोत्तम विश्वसनीय स्त्रोत माना जाता हैं. सामान्यतः पाषाण खण्ड, पाषाण स्तम्भ ताम्रपत्र धर्म स्मारक, राजमहल, मुद्रा, देवालय स्मारक आदि में अंकित अभिलेख किसी भी क्षेत्र के राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पक्ष का मूक गवाह होता हैं। अभिलेखों से न केवल राजकीय औ प्रशासनिक कार्यों की जानकारी मिलती हैं। बल्कि राजाओं की वशावलियां, दानशीलता व विजयोत्सव का भी सटीक ज्ञान प्राप्त होता हैं। ये अभिलेख प्राचीन भारत में राजाओं व सामंतों द्वारा भिन्न-भिन्न अवसरों पर जारी किए जाते थे। यहाँ के प्राचीन भारतीय अभिलेख प्रायः ब्राह्मी, खरोष्ठी और नागरी लिपि में अंकित हैं। इन अभिलेखों पर प्रायः तिथि का उल्लेख किया जाना इतिहास के कालक्रम निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में अगर अभिलेखों का मार्गदर्शन नहीं होता तो निश्चित रूप से इतिहासकार वास्तविक इतिहास के कुछ विशेष पहलूओं से वंचित रह जाते अभिलेख वास्तव में प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोतों में हमेशा अग्रणी और विश्वासनीय रहे हैं।
अभिलेखों का अध्ययन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है, जिसे पुरालेख शास्त्र (Epigraphy) कहा जाता है। भारत में विभिन्न कालखंडों में राजाओं ने पत्थरों, स्तंभों, गुफाओं और ताम्रपत्रों पर अपने शासन, विजय, कानून और धार्मिक संदेशों को अंकित किया। यह अभिलेख प्राचीन इतिहास को समझने में मदद करते हैं। भारत में प्रारंभिक अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे गए थे, और हड़प्पा सभ्यता के अभिलेख चित्रलिपि में पाए गए हैं, जिन्हें अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ा नहीं गया है।
पूरे भारतीय प्रायद्वीप में अभिलेख लिखने की स्पष्ट व वास्तविक शुरूआत सम्राट अशोक से जानी जाती हैं। मौर्य सम्राट अशोक महान से पूर्व भी अनेक अभिलेख मिले हैं परन्तु उनका स्वरूप धार्मिक ज्यादा रहा हैं तथा वे क्रमबद्ध रूप से भी नहीं पाए जाते । सम्राट अशोक द्वारा सम्पूर्ण भारत तथा दूसरे सीमान्त स्थलों में शिला स्तम्भों व शिला खण्डों पर राजाज्ञा का अंकन कराया गया जिसे अशोक का शासनादेश, लाट, बीजक तथा राजाज्ञा भी कहते हैं।
प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख एवं उनके शासक
भारत के सबसे प्राचीन पढ़े गए अभिलेख सम्राट अशोक के हैं, जिन्हें जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ईस्वी में पढ़ा था। इनके अतिरिक्त कई अन्य राजाओं के अभिलेख भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक साक्ष्य प्रदान करते हैं, जैसे समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति, रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख, और पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख।
अभिलेख का नाम | शासक | स्थान |
महास्थान अभिलेख | चंद्रगुप्त मौर्य | महास्थान (बांग्लादेश) |
गिरनार अभिलेख | रुद्रदामन | गिरनार (गुजरात) |
प्रयाग प्रशस्ति | समुद्रगुप्त | इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) |
उदयगिरि अभिलेख | चंद्रगुप्त द्वितीय | उदयगिरि (मध्य प्रदेश) |
भितरी स्तंभलेख | स्कंदगुप्त | भितरी (उत्तर प्रदेश) |
एरण अभिलेख | भानुगुप्त | एरण (मध्य प्रदेश) |
ग्वालियर प्रशस्ति | राजा भोज | ग्वालियर (मध्य प्रदेश) |
हाथीगुम्फा अभिलेख | खारवेल | उड़ीसा |
नासिक अभिलेख | गौतमी बलश्री | नासिक (महाराष्ट्र) |
देवपाडा अभिलेख | विजय सेन | देवपाडा (बंगाल) |
ऐहोल अभिलेख | पुलकेशिन द्वितीय | ऐहोल (कर्नाटक) |
ये अभिलेख प्राचीन भारतीय इतिहास की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचना को समझने में सहायक हैं।