निर्देश (1-10): नीचे दिए गए
गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
प्रत्येक युग का परिवेश कुछ
नया होता है और प्रत्येक युग में नई बातें सामने आती हैं। उससे विस्मित होने की
बजाय उसका स्वागत करना ही श्रेयस्कर और लाभदायक होता है। आधुनिक युग में जो मौलिक
परिवर्तन हुए हैं उसमें पश्चिम की प्रौद्योगिकी और पूर्व की धर्मचेतना का
सर्वश्रेष्ठ लेकर ही नई मानव संस्कृति का निर्माण संभव है। पूर्व नया ज्ञान चाहता
है तो पश्चिम नया धर्म चाहता है। दोनों की अपने–अपनी आवश्यकता है। यहाँ मंत्र है, यंत्र नहीं, वहाँ यंत्र है
मंत्र नहीं। यहाँ आध्यात्मिक संपन्नता है, वहाँ भौतिक संपन्नता है। पश्चिम के आध्यात्मिक
दैन्य को दूर करने में पूर्व की मैत्री, करुणा और अहिंसा के संदेश महत्वपूर्ण होंगे तो
पूर्व के भौतिक दैन्य को पश्चिम की प्रौद्योगिकी दूर करेगी। पूर्व–पश्चिम के मिलन
से ही मनुष्य की देह और आत्मा को एक साथ चरितार्थता मिलेगी। इससे प्रौद्योगिकी
जड़ता के बंधनों से मुक्त होगी और पूर्व का आध्यात्मवाद, परलोकवाद तथा
निष्क्रियतावाद से छुटकारा पाएगा। भाग्यवाद को प्रौद्योगिकी को सौंपकर हम मनुष्य
की कर्मण्यता को चरितार्थ करेंगे और इस धरती के जीवन को स्वर्गोपम बनाएंगे। जीवन
से भाग करके नहीं, उसके भीतर से ही हमें लोकमंगल की साधना करनी होगी। विरक्तिमूलक आध्यात्मिकता
का स्थान लोकमांगलिक आध्यात्मिकता लेगी। यह आध्यात्मिकता लोकमंगल और लोकसेवा में
ही चरितार्थता पाएगी। मनुष्य मात्र के दुःख, उत्पीड़न और अभाव के प्रति संवेदित और क्रियाशील
होकर ही हम अपनी आध्यात्मकता को प्राणवान, जीवन्त और सार्थक बना सकेंगे। ज्ञान को शक्ति
में नहीं, परमार्थ तथा उत्सर्ग में ढ़ालकर ही हम मानवता को उजागर करेंगे। प्रकृति से हमने
जो कुछ पाया है, उसे हम बलात् छीनी हुई वस्तु क्यो मानें? क्यों न हम यह स्वीकार करें कि प्रकृति ने अपने
अक्षय भण्डार को मानव–मात्र के लिए अनावृत कर रखा है? प्रकृति के
प्रति प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा का भाव क्यों रखा जाए? वस्तुतः प्रकृति
के प्रति सहयोगी, कृतज्ञ तथा सदाशय होकर ही मनुष्य अपनी भीतरी प्रकृति को राग–द्वेष से मुक्त
करता है और स्पर्धा को प्रेम में बदलता है। आज आणविक प्रौद्योगिकी को मानव कल्याण
का साधन बनाने की अत्यन्त आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब मनुष्य की बौद्धिकता के
साथ–साथ उसकी रागात्मकता का विकास हो। रवीन्द्र नाथ टैगोर और गाँधीजी का यही संदेश
है। कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद ने ‘श्रद्धा’ और ‘इड़ा’ के समन्वय पर बल
दिया है। मानवता की रक्षा और उसके विकास के लिए पूर्व–पश्चिम का
सम्मिलन आवश्यक है। तभी कवि पन्त का यह कथन चरितार्थ हो सकेगा–“मानव तुम
सबसे सुन्दरतम”
नया होता है और प्रत्येक युग में नई बातें सामने आती हैं। उससे विस्मित होने की
बजाय उसका स्वागत करना ही श्रेयस्कर और लाभदायक होता है। आधुनिक युग में जो मौलिक
परिवर्तन हुए हैं उसमें पश्चिम की प्रौद्योगिकी और पूर्व की धर्मचेतना का
सर्वश्रेष्ठ लेकर ही नई मानव संस्कृति का निर्माण संभव है। पूर्व नया ज्ञान चाहता
है तो पश्चिम नया धर्म चाहता है। दोनों की अपने–अपनी आवश्यकता है। यहाँ मंत्र है, यंत्र नहीं, वहाँ यंत्र है
मंत्र नहीं। यहाँ आध्यात्मिक संपन्नता है, वहाँ भौतिक संपन्नता है। पश्चिम के आध्यात्मिक
दैन्य को दूर करने में पूर्व की मैत्री, करुणा और अहिंसा के संदेश महत्वपूर्ण होंगे तो
पूर्व के भौतिक दैन्य को पश्चिम की प्रौद्योगिकी दूर करेगी। पूर्व–पश्चिम के मिलन
से ही मनुष्य की देह और आत्मा को एक साथ चरितार्थता मिलेगी। इससे प्रौद्योगिकी
जड़ता के बंधनों से मुक्त होगी और पूर्व का आध्यात्मवाद, परलोकवाद तथा
निष्क्रियतावाद से छुटकारा पाएगा। भाग्यवाद को प्रौद्योगिकी को सौंपकर हम मनुष्य
की कर्मण्यता को चरितार्थ करेंगे और इस धरती के जीवन को स्वर्गोपम बनाएंगे। जीवन
से भाग करके नहीं, उसके भीतर से ही हमें लोकमंगल की साधना करनी होगी। विरक्तिमूलक आध्यात्मिकता
का स्थान लोकमांगलिक आध्यात्मिकता लेगी। यह आध्यात्मिकता लोकमंगल और लोकसेवा में
ही चरितार्थता पाएगी। मनुष्य मात्र के दुःख, उत्पीड़न और अभाव के प्रति संवेदित और क्रियाशील
होकर ही हम अपनी आध्यात्मकता को प्राणवान, जीवन्त और सार्थक बना सकेंगे। ज्ञान को शक्ति
में नहीं, परमार्थ तथा उत्सर्ग में ढ़ालकर ही हम मानवता को उजागर करेंगे। प्रकृति से हमने
जो कुछ पाया है, उसे हम बलात् छीनी हुई वस्तु क्यो मानें? क्यों न हम यह स्वीकार करें कि प्रकृति ने अपने
अक्षय भण्डार को मानव–मात्र के लिए अनावृत कर रखा है? प्रकृति के
प्रति प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा का भाव क्यों रखा जाए? वस्तुतः प्रकृति
के प्रति सहयोगी, कृतज्ञ तथा सदाशय होकर ही मनुष्य अपनी भीतरी प्रकृति को राग–द्वेष से मुक्त
करता है और स्पर्धा को प्रेम में बदलता है। आज आणविक प्रौद्योगिकी को मानव कल्याण
का साधन बनाने की अत्यन्त आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब मनुष्य की बौद्धिकता के
साथ–साथ उसकी रागात्मकता का विकास हो। रवीन्द्र नाथ टैगोर और गाँधीजी का यही संदेश
है। कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद ने ‘श्रद्धा’ और ‘इड़ा’ के समन्वय पर बल
दिया है। मानवता की रक्षा और उसके विकास के लिए पूर्व–पश्चिम का
सम्मिलन आवश्यक है। तभी कवि पन्त का यह कथन चरितार्थ हो सकेगा–“मानव तुम
सबसे सुन्दरतम”
Q1. मैत्री, करूणा और अहिंसा
को अपनाने से क्या दूर होने की संभावना है?
को अपनाने से क्या दूर होने की संभावना है?
(a) प्राच्य भौतिकवाद के दैन्य
(b) पश्चिमी आध्यात्मवाद की विपन्नता
(c) पश्चिमी भौतिकवाद की विपन्नता
(d) पूर्वी आध्यात्मकवाद की विपन्नता
(e) इनमें से कोई नहीं
Q2. मनुष्य का एक साथ दैहिक और
आत्मिक विकास निम्नांकित कथन की क्रियान्विति से ही संभव है–
आत्मिक विकास निम्नांकित कथन की क्रियान्विति से ही संभव है–
(a) पूर्व और पश्चिम के समन्वय से
(b) लोक और परलोक के समन्वय से
(c) पूँजीवाद और साम्यवाद के समन्वय से
(d) तंत्र और मंत्र के समन्वय से
(e) इनमें से कोई नहीं
Q3. श्रद्धा और इड़ा के समन्वय से कवि का
अभिप्रेत है–
अभिप्रेत है–
(a) भौतिकी और जीव विज्ञान का
(b) सहृदयता और दयालुता का
(c) रागात्मकता और विरागात्मकता का
(d) रागात्मकता और बौद्धिकता का
(e) इनमें से कोई नहीं
Q4. प्रकृति के प्रति श्रेयस्कर है मनुष्य का
(a) रागात्मक भाव
(b) कृतज्ञता भाव
(c) स्पर्धात्मक भाव
(d) अनछुआ भाव
(e) इनमें से कोई नहीं
Q5. उपर्युक्त अवतरण का सर्वाधिक उपयुक्त
शीर्षक है–
शीर्षक है–
(a) पूरब और पश्चिम का अभाव
(b) पूरब और पश्चिम का मिलन
(c) पूरब और पश्चिम का मानव–उत्पीड़न से मुक्ति
(d) मानव तुम सबसे सुन्दरतम
(e) इनमें से कोई नहीं
निर्देश (6-10): निम्नलिखित में से कौन–सा शब्द/वाक्यांश, दिए
गए गए शब्द/वाक्यांश का समानार्थी है?
गए गए शब्द/वाक्यांश का समानार्थी है?
Q6. परिवेश
(a) परचम
(b) वातावरण
(c) परिज्ञान
(d) प्रकट
(e) परिचय
Q7. अनावृत्त
(a) ढँका
(b) बंद
(c) खुला
(d) निहाल
(e) बेहाल
Q8. नई मानव संस्कृति का निर्माण संभव है
(a) पूर्व की धर्मचेतना एवं पश्चिम की प्रौद्योगिकी का समावेश
(b) पश्चिम की धर्मचेतना एवं पूर्व की प्रौद्योगिकी का समावेश
(c) केवल पूर्व की धर्मचेतना
(d) केवल पश्चिम की प्रौद्योगिकी
(e) इनमें से कोई नहीं
Q9. प्रौद्योगिकी जड़ता के बंधन हैं
(a) अध्यात्मवाद
(b) परलोकवाद
(c) निष्क्रियतावाद
(d) भाग्यवाद
(e) उपर्युक्त सभी
Q10. स्पर्द्धा
(a) स्पृहा
(b) प्रतियोगिता
(c) द्वंद्व
(d) दुर्योग
(e) इनमें से कोई नहीं
निर्देश (11-15): निम्नलिखित पांच
में से चार समानार्थी शब्द हैं। जिस क्रमांक में इनसे भिन्न शब्द दिया गया है, वही आपका उत्तर
है।
में से चार समानार्थी शब्द हैं। जिस क्रमांक में इनसे भिन्न शब्द दिया गया है, वही आपका उत्तर
है।
Q11.
(a) विभूति
(b) वैभव
(c) अर्थ
(d) विभव
(e) ऊन
Q12.
(a) भीति
(b) सर
(c) सरोवर
(d) तडाग
(e) पुष्कर
Q13.
(a) तोय
(b) जनु
(c) पय
(d) वारि
(e) अंबु
Q14.
(a) ऊर्मि
(b) हिल्लोल
(c) साध्वस
(d) लहरी
(e) लहर
Q15.
(a) कोप
(b) अमर्ष
(c) रोष
(d) समज्ञा
(e) प्रतिघा
हल
S1 Ans. (c)
S2 Ans. (a)
S3 Ans. (d)
S4 Ans. (b)
S5 Ans. (d)
S6 Ans. (b)
S7 Ans. (c)
S8 Ans. (a)
S9 Ans. (e)
S10 Ans. (b)
S11 Ans. (e)
Sol. ‘ऊन’ अल्प का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द
‘संपत्ति’ के पर्यायवाची हैं.
‘संपत्ति’ के पर्यायवाची हैं.
S12 Ans. (a)
Sol. ‘भीति’ डर का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द
‘तालाब’ के पर्यायवाची हैं.
‘तालाब’ के पर्यायवाची हैं.
S13 Ans. (b)
Sol. ‘जनु’ अल्प का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द
‘जल’ के पर्यायवाची हैं.
‘जल’ के पर्यायवाची हैं.
S14 Ans. (c)
Sol. ‘साध्वस’ डर का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द
‘तरंग’ के पर्यायवाची हैं.
‘तरंग’ के पर्यायवाची हैं.
S15 Ans. (d)
Sol.
‘समज्ञा’ कीर्ति का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द ‘क्रोध’
के पर्यायवाची हैं.
‘समज्ञा’ कीर्ति का पर्यायवाची है जबकि अन्य शब्द ‘क्रोध’
के पर्यायवाची हैं.