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THEORY OF DEMAND – मांग का नियम | UPSC EPFO और SEBI परीक्षा

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Theory of Demand
जब कभी भी अर्थव्यवस्था से जुड़े नियमों की बात की जाती है, तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण नियम में से एक Theory of Demand है, जिसे हिंदी में मांग का नियम कहा  जाता  है. नाम से ही स्पष्ट है कि यह नियम मार्किट में उपलब्ध मांग पर आधारित है. अगर आप इस नियम को समझ जाएँ, आप आसानी से समझ सकते हैं कि मार्किट में किसी वस्तु की कीमत क्यों बढ़ती या घटती है. UPSC EPFO और SEBI 2020 परीक्षाओं में Economics के  इस  टॉपिक से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं. इस लिए हम यहाँ आपकी मदद के लिए  डिमांड थ्योरी से नोट्स लाए हैं. आप बेहतर तरीके से समझने के लिए YouTube में एक्सपर्ट मदद भी ले सकते हैं, जिसका लिंक हमने यहाँ  उपलब्ध कराया है.
इसके अंतर्गत वस्तुओं और उसके मूल्य के बीच के सम्बन्ध की व्याख्या की जाती है. बाजार में कोई वस्तु कितनी मात्रा में उपलब्ध है और उसकी कीमत कितनी है. वस्तु की मात्रा अधिक है तो उसकी कीमत कम होगी, वहीं अगर मांग के अनुसार वस्तु की मात्रा कम है, तो उसकी कीमत अधिक होगी.

क्या है डिमांड (मांग)?

डिमांड का अर्थ है, किसी वस्तु की मांग से. किसी वस्तु की मांग कितनी है और कोई भी व्यक्ति उसके लिए कितना भुगतान कर सकता है. मांग उपभोक्ता के खरीदने की इच्छा है और यह भुगतान करने की उसकी क्षमता और भुगतान करने की उसकी इच्छा पर निर्भर करता है.

क्रेता की मांग उन सभी मात्राओं की तालिका होती है जिन्हें वह उस सामग्री के विभिन्न संभावित मूल्यों पर खरीदने के लिए तैयार रहता है”  –   प्रोफेसर मेयर्स 

Also Check,

Demand Function

उपभोक्ता की एक वस्तु प्राप्त करने  की इच्छा और उसकी कीमत के बीच का संबंध बहुत महत्वपूर्ण है और इस संबंध को मांग फ़ंक्शन कहा जाता है. इस प्रकार एक वस्तु के लिए demand function उसकी कीमत तय करने में मदद करता है, 

It is Represented as q = d(p) where q denotes the quantity and p denotes the price of the good.
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Law of Demand

वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की आय और उसके tastes और preferences को देखते हुए, एक वस्तु की मांग का संबंध वस्तु की कीमत के साथ होता है. इसलिए, वस्तु के लिए मांग वक्र सामान्य रूप से, नीचे की ओर झुका हुआ है.
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उपभोक्ता की मांग में वस्तु और वस्तु की कीमत के बीच के inverse relationship को लॉ ऑफ डिमांड कहा जाता है


मांग का निर्धारण(Demand determination) –

किसी भी वस्तु की कीमत का निर्धारण करने में बहुत से कारक कार्य करते हैं –

ग्राहकों की प्राथमिकता (Customer preference)- किसी वस्तु की क्वालिटी भी वस्तु की कीमत में बढ़ा सकती है और अगर वस्तु की क्वालिटी अच्छी है तो ग्राहक भी उसे preference देंगे.

आय (Income) – आय अधिक होने में मांग में बढ़ोत्तरी होती है. ऐसे में ग्राहक को वस्तु खरीदने में कोई परेशानी नहीं होती है.

खरीदने वालों की संख्या ( Number of buyers) – बाजार में खरीदारों की संख्या में वृद्धि से वस्तु की मांग में बढ़ोत्तरी होगी, वहीं अगर खरीदारों की संख्या में कमी होगी तो मांग में कमी होगी.

वस्तु की कीमत 

  • वैकल्पिक वस्तुओं की वजह से भी वस्तुओं की कीमत प्रभावित होती हैं. किसी भी वस्तु की कीमत वैकल्पिक वस्तुओं से सम्बन्धित होती है.
  • कुछ वस्तुएं सहायक वस्तुओं के  रूप में कार्य करती हैं. इनकी जरुरत किसी अन्य  वस्तु के साथ महसूस होती है. अर्थात वत्सुओं की कीमत अन्य वस्तुओं की कीमत पर निर्भर करती हैं.
  • किसी वस्तु की मांग भविष्य में उसकी कीमत बढ़ने की संभावना पर भी निर्भर करती है. जैसे भविष्य में किसी वस्तु की कीमत बढ़ने वाली है और ग्राहकों को पता है तो मांग बढ़ सकती है. साथ ही अगर कीमत में कमी होने की सम्भावना है तो उसकी मांग में भी कमी होती है.
  • ऐसे ही यदि भविष्य में ग्राहक की आये में भविष्य में वृद्धि होने की सम्भावना है तो मांग में इजाफा होगा. वहीं अगर आय में कमी होने की सम्भावना है तो मांग में भी कमी होगी.

मांग के प्रकार(Type of demand)

शून्य मांग (Zero demand)- 
जिन वस्तुओं की मांग बाजार में बिल्कुल नहीं होती या  न के बराबर होती है, उसे जीरो डिमांड की वस्तु होती है. ऐसी वस्तुएं बहुत कम होती हैं.
गिरती हुई मांग(Falling demand) – ब किसी वस्तु की मांग में लगातार गिरावट दर्ज की जाती है, तो इस तरह की वस्तु को गिरती हुई मांग की वस्तुओं में रखा जाता है.
नकारात्मक मांग (Negative demand) –जब बाजार में वस्तु की मांग से ज्यादा मात्रा उपलब्ध होती है तो ऐसे नुकसान होने की सम्भावना होती है. इसी लिए वस्तु को बाजार के विश्लेषण के बाद ही सही मात्रा में बाजार में भेजा जाता है, जिससे उसकी कीमत न गिरे और नेगेटिव डिमांड का सामना न करना पड़े.

अनियमित मांग(Irregular demand) – कई वस्तुएं सीजन के अनुसार बाजार में बिकती हैं, सीजन के ख़त्म होते ही उनकी मांग में भी कमी आ जाती है. जैसे ठण्ड के कपड़े या हीटर, या गर्मियों में AC, कूलर इनकी मांग सीजनल होती है. ऐसी वस्तुओं में अनियमित मांग का सामना करना पड़ता है.
बेलोच मांग(Inelastic demand)- ऐसी मांग जिसमें वस्तु की मांग बराबर बनी रहती है. यह वस्तु की गुणवत्ता या ग्राहक की जरुरत पर निर्भर करता है. कुछ वस्तुओं की मांग में हमेशा उछल होता है वह Inelastic demand के अंतर्गत आते है.

Shifts in the Demand Curve?

1. उपभोक्ता की आय में परिवर्तन.
2. tastes और preferences में बदलाव
3. विकल्प की कीमत बढ़ जाने पर
4. complementary वस्तुओं की कीमत में गिरावट आने पर

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Movements along the Demand Curve

अधिक कीमतों पर, मांग कम है, और कम कीमतों पर, मांग अधिक है.
इस प्रकार, मूल्य में कोई भी बदलाव मांग वक्र की movements पर निर्भर करता है.

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