आज़ादी के समय, दो नव निर्मित स्वतंत्र राष्ट्रों अर्थात भारत एवं पाकिस्तान की सीमा रेखा सिंधु नदी बेसिन के आर-पार खींची गई, जिसमें पाकिस्तान को निचला नदी तट छोड़ना था. इसके अतिरिक्त, दो मुख्य सिंचाई कार्य परियोजना जिसमें एक रावी नदी पर स्थित माधोपुर था तथा दूसरा सतलज नदी पर स्थित फिरोजपुर की परियोजना थी, जिस पर सिंचाई नहर पंजाब (पाकिस्तान) को आपूर्ति की जाती थी और वह जिस पर पूरी तरह निर्भर था, भारतीय क्षेत्र के बायीं तरफ थी. उस समय इन दो देशों के बीच, इन विद्यमान जल सिचाईं सुविधाओं के प्रयोग को लेकर एक विवाद पैदा हुआ. इन दो देशों की इस जल विवाद समस्या के समाधान के क्रम में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किये गए.
सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है जिस पर 19 सितम्बर 1960 को पाकिस्तान के कराची में, भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षर किया गया था. लेकिन 1960 के इस समझौते में विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच छः नदियों के जल प्रवाह का विषय हल हुआ और यह समझौता पूरी तरह अस्तित्व में आया.
सिंधु जल समझौता तीन पूर्वी नदियों – ब्यास, रावी और सतलज पर भारत को नियंत्रण देता है जबकि तीनों पश्चिमी नदियों – सिंधु, चिनाब और झेलम पर पाकिस्तान को नियंत्रण देता है. इस संधि को आज दुनिया में सबसे सफल जल बंटवारे के प्रयासों में से एक माना जाता है.
सिंधु बेसिन का उद्गम स्रोत, जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्यों के तिब्बत और हिमालय की पर्वत श्रेणियां हैं. ये पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के पहाड़ी इलाकों से होती हुई पाकिस्तान में सिंध राज्य में मिलती है और कराची के दक्षिण में अरब सागर में गिरती है. विभाजन के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच अनेक मुद्दों को लेकर नोक-झोंक होती रही है और तनाव भी पैदा होता रहा है लेकिन इस संधि के अनुमोदन के बाद से जल को लेकर इन दो देशों के बीच कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ है. इस समझौते के तहत एक नियमित सिंधु आयोग की स्थापना की गई है जो जल वितरण को लेकर भविष्य में होने वाले किसी विवाद पर निर्णय करेगा. यह संधि इस बात का निर्धारण करती है कि दोनों देशों में बहने वाली सिंधु एवं उसकी सहायक नदियों के जल का प्रयोग किस तरह किया जाएगा. यह संधि सौहार्दपूर्ण ढंग से विवादों को हल करने हेतु मध्यस्तता तंत्र भी प्रदान करती है.
इसके बावजूद भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान द्वारा अनेक प्रयास किये गए हैं. लेकिन भारत ने इस संधि को कभी रद्द नहीं किया है या ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जो आम पाकिस्तानी लोगों को प्रभावित करे. लेकिन हाल ही में कश्मीर के उड़ी में भारतीय सैन्य बलों पर हुए आक्रमण ने भारत को पाकिस्तान के विरुद्ध खड़ा होने और उसके साथ शांति एवं वार्ता पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में एक कड़े सन्देश के माध्यम से इस मुद्दे को संबोधित करते हुए कहा है कि “खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते”.
जाति, रंग और सीमाओं से भी परे जल सभी की एक महत्वपूर्ण जरुरत है. भारत ने सदैव से ही अपने पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों पर जोर दिया है और हमेशा अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ वार्ता एवं सहयोग का माहौल बनाये रखने का समर्थन किया है. भारत अपने शांतिपूर्ण प्रयासों के लिए तथा अन्य राष्ट्रों की सहायता के लिए प्रसिद्ध है और हमेशा इस बात में विश्वास रखता है कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है. लेकिन भारत किसी भी कीमत पर अपने क्षेत्र एवं अपने नागरिकों की सुरक्षा में पूर्णतः सक्षम है. भारत में पहले भी यह सिद्ध किया है और इतिहास को एक बार पुनः दोहराने में पर्याप्त रूप से सक्षम है.
शुभकामनाएं