IBPS SO राजभाषा अधिकारी की अधिसूचना जारी की जा चुकी है. IBPS SO राजभाषा अधिकारी के परीक्षा प्रारूप के अनुसार व्यावसायिक ज्ञान के पाठ्यक्रम के आधार पर हम यहाँ हिंदी की प्रश्नोत्तरी प्रदान कर रहे हैं. प्रति दिन इस QUIZ का अभ्यास कीजिए तथा IBPS SO 2018 के पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन कीजिए. अपनी तैयारी को गति प्रदान करते हुए अपनी सफलता सुनिश्चित कीजिये.
Directions (1-10): नीचे दिए गए प्रत्येक परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (a), (b), (c), (d) और (e) विकल्प दिए गए हैं। इन पाँचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प का चयन करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना हैं।
Q1. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q2. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q3. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q4. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q5. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q6. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q7. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q8. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q9. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Q10. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
Directions.(11-15) निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न में दिए गए हिंदी या अंग्रेजी शब्द के लिए उसका अंग्रेजी या हिंदी में अनुवाद कीजिए।
Q11. ‘Loathe’
Q12. ‘Tranquillity’
Q13. ‘Diminution’
Q14. ‘कृत्रिम’
Q15. ‘मधुर’