मौद्रिक नीति वह उपाय या उपकरण है है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक ब्याज दरों पर नियंत्रण कर अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित करता है, मूल्य स्थिरता बनाये रखता है और उच्च विकास दर के लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करता है. भारतीय सन्दर्भ में, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) वह सर्वोच्च प्राधिकृत संस्था है जो अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता हेतु इस नीति का प्रयोग करता है.
27 जून, 2016 को सरकार ने आरबीआई अधिनियम में संशोधन करते हुए भारत में नीति निर्माण को एक नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को सौंप दिया है.
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) क्या है ?
एमपीसी, दर निर्धारण में अधिक ‘मूल्य एवं पारदर्शिता’ लाने के लिए भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है. नयी एमपीसी में छः सदस्यों का एक पैनल है जिसमें तीन सदस्य आरबीआई से होंगे और तीन अन्य स्वतंत्र सदस्य भारत सरकार द्वारा चुने जायेंगे. आरबीआई के तीन अधिकारीयों में एक गवर्नर, एक डिप्टी गवर्नर तथा एक अन्य अधिकारी शामिल होगा.
मौद्रिक नीति निर्धारण के लिए यह समिति वर्ष में चार बार मिलेगी और सर्वसम्मति से निर्णय लेगी. यदि ‘हाँ’ या ‘न’ को लेकर बराबर का मत आता है तो गवर्नर को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा.
एमपीसी पूर्व की समिति से अलग कैसे ?
इससे पहले की तकनीकी सलाहकार समिति का गठन आरबीआई द्वारा किया गया था जिसमें गवर्नर, डिप्टी गवर्नर, बाहरी सलाहकार समेत आरबीआई के उच्च अधिकारी होते थे जो यह सलाह देते थे कि आरबीआई को क्या करना चाहिए. लेकिन इस प्रक्रिया में दरों को लेकर गवर्नर का निर्णय अंतिम होता था और तकनीकी सलाहकारों की सलाह आरबीआई के लिए बाध्यकारी नहीं होती.
न्यूज़ीलैण्ड, इंग्लैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन आदि कुछ प्रमुख देश हैं जिन्होंने अपनी मौद्रिक नीति लक्ष्यों के लिए मौद्रिक नीति समिति को लागू किया हुआ है. आज जबकि भारत में मुद्रस्फीति एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है ऐसे में दरों के निर्धारण में एमपीसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. एमपीसी यह सुनिश्चित करेगी कि ब्याज दरों के निर्णय विशेषज्ञों के पैनल द्वारा विचार-विमर्श के बाद लिए जाएँ. ‘एक से भले अनेक’ का दृष्टिकोण भी इसमें सहायक होगा कि निर्णय किसी पूर्वाग्रह या पक्ष जुटाव (लॉबिंग) से प्रभावित न हों.
वर्तमान में एमपीसी के तीन गैर-आरबीआई सदस्य, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के निदेशक पामी दुआ, भारतीय सांख्यकी संस्थान के प्रोफ़ेसर चेतन घाटे और आइआइएम अहमदाबाद के प्रोफ़ेसर रविन्द्र ढोलकिया हैं. अन्य तीन सदस्य आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल, डिप्टी गवर्नर आर गाँधी और केंद्रीय बैंक में कार्यकारी निदेशक माइकल पात्रा हैं.
4 अक्टूबर 2016 से भारत की पहली एमपीसी ने ब्याज दरों में कटौती के साथ अपना काम शुरू किया. यह नीतिगत समीक्षा नवनियुक्त आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के साथ-साथ भारत की एमपीसी द्वारा तय की गई पहली नीतिगत समीक्षा थी. हाल ही में गठित एमपीसी ने रेपो रेट (वह दर जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है) में 25 आधार बिन्दुओं की कटौती करते हुए इसे 6.25% कर दिया है.
भारतीय बैंकिंग तंत्र में वर्तमान आरबीआई बैंक दर – 2016
SLR Rate
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CRR
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MSF
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Repo Rate
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Reverse Repo Rate
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Bank Rate
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20.75%
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4%
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6.75%
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6.25%
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5.75%
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6.75%
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रेपो रेट में कमी से, पूरे देश में ऋण के दरों में कमी होने की सम्भावना है. यह निवेश को बढ़ाएगा जो आर्थिक विकास को मजबूती प्रदान करेगा. एमपीसी के अस्तित्व में आने के बाद, अब यह आशा की जा सकती है कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच सार्वजनिक तौर पर चली बहस पर रोक लग सकेगी.